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Written By WD

मशहूर चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन

भारत की आत्मा थी हुसैन के रंगों में

हुसैन
जन्म : 17 सितंबर 1915
मृत्यु : 9 जून 2011
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मकबूल फिदा हुसैन का जन्म 17 सितंबर को महाराष्ट्र के पंढरपुर में हुआ था और इंदौर में उनकी शिक्षा संपन्न हुई। फिर वे मुंबई पहुंचे, कई फिल्में बनाई, उनकी पहली फिल्म गजगामिनी थी। माधुरी दीक्षित को समर्पित इस फिल्म में माधुरी ने मुख्य भूमिका निभाई थी। इसके बाद अभिनेत्री तब्बू के साथ मीनाक्षी : ए टेल ऑफ थ्री सिटीज भी बनाई। हुसैन एक अच्छे चित्रकार होने के साथ-साथ अच्छे फिल्मकार भी थे।

हुसैन ने चित्रों की शुरुआत फिल्मों में होर्डिंग बना कर की। उन्होंने अपने रंगों से भारतीय चित्रकला को एक ऐसी पहचान दी जो कभी धुंधली नहीं पड़ेगी। उनके रंगों में भारत भूमि, खासतौर पर मालवा की माटी की महक मिलती है।

अखिलेश ब्यौहार के अनुसार अपनी कला को सारा जीवन समर्पित करने वाले दीर्घायु चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन अब दुनिया में नहीं हैं, परंतु भारतीय होते हुए भी उन्हें विदेश में शरण लेनी पड़ी लेकिन भारतीय विरोध अपमान को नजरअंदाज कर कला के लिए जीते रहे।

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भारतीय देवी-देवताओं के विवादित चित्र और सिनेमा कलाकारों के प्रति विशेष लगाव के कारण विरोध हुआ परंतु चित्रकला की रुचि और प्रसार को विदेश तक ले गए और भारत का नाम रोशन किया। जबलपुर में दुर्गावती संग्रहालय में रखी उनकी कृति उनके सरल भावुक सहज कलाकर की प्रतिमूर्ति है। उसकी कीमत उनकी महानता को प्रदर्शित करती है।

धनंजय बाजपेयी के अनुसार दुनिया से जाने के बाद उन्हें आज भी याद किया जाना अपने आपमें एक सम्मान है। वर्ष 1967 में उन्हें पद्मश्री से नवाजा गया था। वे एक सरल इंसान थे, सांस्कृतिक और राजनीतिक, धार्मिक हर क्षेत्रों में कुछ न कुछ उन्होंने दिया, परंतु धार्मिक क्षेत्रों में उनका दखल ठीक नहीं था उसके कारण भारत में ही उनके पुतले जलाए गए और अनेक तरीकों से उनका बहिष्कार किया गया।

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आज वो नहीं रहे इसका हमें दुख तो है परंतु उनके द्वारा किए गए अच्छे कार्यों के बावजूद भी हिन्दूवादी संगठनों के स्मरण अच्छे नहीं हैं फिर भी भारतीय होने पर उन्हें गर्व था अंत तक उन्होंने भारतीय होने का गर्व महसूस किया। भारतीय संस्कृति क्षमा पर आधारित है इसीलिए मरणोपरांत ही सही उन्हें पिकासो का सम्मान दिया जाना न्यायोचित है।

हुसैन और हमें जिस मालवा के चटख-गहरे रंगों ने भारत का पिकासो बनाया उनकी कई जुड़ी यादें हैं वो जवां दिल व्यक्ति थे, मिलनसार थे, साथ ही उनका जीवन में विवादों से भी रिश्ता था। उनकी कलाकृति लाखों और करोड़ों में बिकी। उन्होंने फिल्मों के निर्माण के साथ-साथ अभिनय भी किया।

मकबूल फिदा हुसैन का 9 जून 2011 को 95 वर्ष की उम्र में लंदन में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था। ऐसे विश्वस्तरीय चित्रकार का निधन एक युग समाप्त होने के समान है, जिसकी पूर्ति कभी नहीं हो सकती।

- प्रस्तुति : राजश्री कासलीवाल