पंडित जवाहरलाल नेहरू : एक स्वप्नदृष्टा राजनयिक
मील के पत्थर- 2
मानव-सभ्यता के विकास के समय से ही नेतृत्व करने वाले 'नायक' की भूमिका प्रमुख रही है। मनुष्य के सामुदायिक और सामाजिक जीवन को उसी के समूह में से उभरे किसी व्यक्ति ने दिशा-निर्देशित और संचालित किया है। समस्त समुदाय और उस सभ्यता का विकास नेतृत्व करने वाले व्यक्ति की सोच, समझ, व्यक्तित्व और कृतित्व पर ही निर्भर रहा है। धरती पर रेखाएं खिंची और कबीले के सरदार राष्ट्रनायकों में परिवर्तित हुए। 100
साल की लंबी अवधि में पसरी बीसवीं सदी में इन राष्ट्रनायकों ने प्रमुख किरदार निभाया। एक तरह से तमाम सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक परिवर्तनों की बागडोर ही इन महारथियों के हाथ में रही। राजतंत्र, उपनिवेशवाद और लोकतंत्र के संधिकाल वाली इस सदी में अपने-अपने देश का परचम थामे इन राजनेताओं ने विश्व इतिहास की इबारत अपने हाथों से लिखी। इस श्रृंखला में वर्णित राजनेताओं की खासियत यह है कि उन्होंने अपने देश को एक राष्ट्र के रूप में विश्व के मानचित्र पर स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस कड़ी में प्रस्तुत है पंडित जवाहरलाल नेहरू कहा जाता है कि बचपन में उनके कपड़े भी धुलने के लिए लंदन जाते थे! खानदान की जन्मभूमि कश्मीर की खूबसूरती। दादा पंडित गंगाधर नेहरू के दिल्ली के कोतवाल होने का रौब! पिता पंडित मोतीलाल नेहरू इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सबसे प्रसिद्ध और सबसे रईस वकील- बेहद अनुशासनप्रिय, शानो-शौकत और अंग्रेजी चाल-ढाल तथा पहनावे को पसंद करने वाले। ऐसे में उनके इकलौते पुत्र जवाहर को विलासितापूर्ण बचपन मिलना जिसमें अंग्रेज शिक्षक घर पर पढ़ाने आते हों, स्वाभाविक ही था। 15 वर्ष की उम्र के बाद तो स्कूली शिक्षा भी लंदन के हैरो स्कूल में और विश्वविद्यालयीन शिक्षा कैम्ब्रिज में हुई।
इलाहाबाद के पूरे प्रांत की सबसे पहली मोटर कार भी जवाहरलाल के घर ही आई। सात साल बाद लंदन में बेहद खर्चीली और आराम-तलब जिंदगी बिताकर जब वे भारत लौटे तो पं. मोतीलाल नेहरू ने आनंद भवन को शानदार रूप से सजाने और ऊपर की मंजिल पर दो नए कमरे बनवाने का हुक्म दिया। उन्होंने कहा- 'यह मकान उस आदमी की बर्दाश्त के लायक तो हो जाए जिसका दिमाग शानदार महलों से भरा है।'