शनिवार, 21 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. संगत
  4. मेरी आँखों में ठहरी हुई तुम
Written By रवींद्र व्यास

मेरी आँखों में ठहरी हुई तुम

ख्यात कवि मंगलेश डबराल की कविता और प्रेरित कलाकृति

Sangat | मेरी आँखों में ठहरी हुई तुम
Ravindra Vyas
WD
कभी-कभी कोई बहुत ही सादी सी बात दिल को छू जाती है। और मामला यदि प्रेम कविता को हो तो इसमें सादी सी बात भी गहरा असर करती है। दिल में गहरे उतरकर देर तक गूँजती रहती है। उस गूँज से आप कुछ खोए-खोए से रहते हैं। जैसे बहुत ही गहरी और हरे रंग में खिली किसी घाटी में छोटे-छोटे पीले फूलों के बीच आप सब कुछ भुलाए बैठे हों। कुछ इसी तरह का अहसास होता है एक प्यारी सी और सच्ची सी प्रेम कविता को पढ़कर।

मंगलेश डबराल समकालीन हिंदी कविता के एक बेहतरीन कवि हैं। वे मेरे पसंदीदा कवि हैं और संगत में शामिल उनकी यह कविता मुझे बहुत प्रिय है। इसे वे पुनर्रचनाएँ कहते हैं। ये कविताएँ लोकगीतों से प्रभावित हैं। इसमें उन लोकगीतों के बहुत ही खूबसूरत बिम्बों और भावों की अनुगूँजें हैं बावजूद ये कितनी मौलिक हैं, अपने कहने के अंदाज में भी। सादा लेकिन दिल से निकले बोल। जैसे बरसों से बहती किसी स्वच्छ बहती और कलकल करती नदी में मौन बैठे चिकने पत्थर हों। यह कविता इसी तरह की कविता है। जरा गौर कीजिए इसके सादेपन पर-

तुम्हारे लिए आता हूँ मैं
मेरे रास्ते में हैं तुम्हारे खेत
मेरे खेत में उगी है तुम्हारी हरियाली
मेरी हरियाली पर उगे हैं तुम्हारे फूल
मेरे फूलों पर मँडराती हैं तुम्हारी आँखें
मेरी आँखों में ठहरी हुई तुम


तुम्हारे लिए आता हूँ पंक्ति बहुत सादा है लेकिन इसमें एक खास अर्थ है कि यह आना सिर्फ आनाभर नहीं है, यह आना तुम्हारे लिए आना है। और आने से पहले रास्ते में तुम्हारे खेत हैं जिस पर तुम्हारी ही हरियाली उगी है। लेकिन इस मेरी हरियाली पर तुम्हारे ही फूल खिले हैं। प्रेम यही कर सकता है। वह यही करता है।

वह आपमें, आपके दिल में, आपके सपनों में और आपकी जिंदगी में सिर्फ फूल ही खिला सकता है। उसकी खुशबू से महका सकता है। और ये फूल सिर्फ प्रेम के अहसास से खिले फूल ही नहीं हैं बल्कि उन पर तुम्हारी आँखे मँडराती है। आँखें और मँडराती शब्द का इस्तेमाल बहुत ही खूबसूरती से, चुपचाप आँख को तितली में बदल देता है।

तितली और फूल के अनाम रिश्ते में बदल देता है। उसे प्रेम की खुशबू से सराबोर कर देता है। कवि यही कर सकता है। मंगलेश डबराल ने यही कर दिखाया है लेकिन कुछ भी कर दिखाने के भाव से मुक्त हो कर। कोई अजूबा-अनोखा कर देने की नाटकीय मुद्राएँ नहीं, प्रेम में कोई तारे तोड़कर ला देने की बात नहीं।

बल्कि एक गहरा अहसास जो कविता को और उसमें साँस लेते रिश्तों को महक से भर देता है। यह कविता हमारे जेहन में ठीक उसी तरह ठहर जाती है जिस तरह कवि की आँखों में उसकी प्रेमिका।