प्रति वर्ष की तरह इंदौर लिटरेचर फेस्टिवल 21, 22 और 23 दिसंबर 2019 को आयोजित किया गया। इस आयोजन का यह पांचवां साल था और खास बात यह है कि प्रति वर्ष इसमें पहले से अधिक निखार आ रहा है। अनुशासन, समयबद्धता, विचारों की अभिव्यक्ति, प्रासंगिक विषय और कुशल वक्ता ये सब इस तरह के आयोजन की पहली शर्त होती है और कहना होगा कि आयोजक प्रवीण शर्मा के नेतृत्व में उनकी टीम ने समस्त शर्तें पूरी की है।
यह आयोजन जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल का नन्हा रूप है लेकिन वैचारिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक रूप से कहीं अधिक व्यवस्थित, प्रखर और विवादों से दूर रहता है।
आज जबकि भावों का नाश, विचारों का विनाश और भाषा के सत्यानाश की कुत्सित परंपरा चल पड़ी है ऐसे में इस तरह के आयोजन आश्वस्ति देते हैं, राहत और तसल्ली देते हैं कि समाज की सभ्यता, साहित्यिक परंपरा और संस्कृति को बचाने में अभी भी कुछ लोग हैं जो लगे हैं। अभी भी बहुत कुछ है जो खूबसूरत है हमारे आसपास। हमारे शहर में जबकि स्वच्छता को लेकर हम चौथी बार जीतने की तैयारी कर रहे हैं तब मानस की स्वच्छता, शुद्धता तथा ऊर्वरता के लिए इस तरह के प्रयास सराहनीय हैं।
इंदौर लिटरेचर फेस्टिवल का आगाज तो रंगारंग हुआ लेकिन कुछ बहुप्रतीक्षित हस्तियों के शामिल न होने का मलाल साहित्य रसिकों के चेहरे पर साफ नजर आया। विशेषकर रस्किन बॉन्ड के आने की खबर पहले दिन से 3 तीन तक हवा में लहराती रही लेकिन समापन तक उन्हें न पाकर बच्चे मायूस हो गए। कवयित्री गगन गिल भी नहीं पंहुच पाई और ख्यात रंगमंच कलाकार नादिरा बब्बर की फ्लाइट भी मिस हो गई।
अंतत: शुभारंभ साहित्यकार प्रयाग शुक्ल, वाणी प्रकाशन के अरुण माहेश्वरी और लोक गायिका मैथिली ठाकुर के हाथों हुआ। इसके पश्चात् तुरंत विजय कुमार का दिलचस्प सत्र हुआ जिसमें उन्होंने बताया कि कैसे इस देश में मूर्तियों की तस्करी का काम कुछ लोगों द्वारा किया जा रहा है और इन मूर्तियों का कितना यशस्वी इतिहास है। विजय कुमार के साथ सुविख्यात ललित निबंधकार और लोक संस्कृति के विशेषज्ञ नर्मदा प्रसाद उपाध्याय को सुनना अत्यंत सुकूनदायक था। नर्मदा प्रसाद उपाध्याय स्वयं कमिश्नर के पद से सेवानिवृत्त हैं लेकिन अपनी रचनाओं के माध्यम से
मालवा और निमाड़ के चहेते साहित्यकार हैं। उन्हें सुनना हमेशा शानदार होता है। एक पूरा सत्र अगर उनके नाम हो तो भी कम है। वे जानते हैं कि उन्हें कब, कितना और कैसे बोलना है। वे सिर्फ लेखन के ही नहीं वाणी के भी शिल्पकार हैं। उनके ललित निबंधों की आकर्षक श्रृंखला है। प्राचीन लोक कला के मिनिएचर पर उनका व्यापक शोध है।
इस सत्र के बाद युवा साहित्यकार डॉ. विक्रम संपत का सत्र था जो वीर सावरकर को समर्पित था। डॉ. दिव्या गुप्ता इस सत्र की मॉडरेटर थीं। इस सत्र में वीर सावरकर से जुड़ी कई भ्रांतियां टूटी कई नई और दिलचस्प जानकारी मिली। डॉ. विक्रम का कहना था कि जब हम किसी को बहुत ज्यादा पसंद करते हैं या नापसंद करते हैं तब उस पर शोध करने से बचते हैं। यह हमारी विडंबना है। सावरकर जी का पूरा सच कभी सामने आने ही नहीं दिया गया।
सावरकर जी के काला पानी से आने के बाद उन्हें वीर की उपाधि से नवाजा गया था। इस पूरे सत्र का निचोड़ यह था कि प्रतिशोध के बजाय परिवर्तन की सोच को प्राथमिकता दी जाए तो आगे बढ़ा जा सकता है।
डॉ. विक्रम संपत ने सत्र में बताया कि वीर सावरकर ने क्षमा नहीं मांगी थी ब ल्कि वह एक याचिका थी चूंकि वे बैरिस्टर थे और कानून की बारीकियों को जानते थे ऐसे में उन्हें लगा कि जेल में सड़ने से बेहतर है कि बाहर निकला जाए जो उनके लिए नहीं बल्कि अन्य क्रांतिकारियों के लिए जरूरी था क्योंकि वे सभी तकनीकी पक्ष के लिए सावरकर पर निर्भर थे। ब्रिटिश सरकार उन्हें बहुत खतरनाक मानती थी इसलिए पोर्ट ब्लेयर से उन्हें रिहा नहीं
किया गया।
हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा पर डॉ. संपत ने स्पष्ट किया कि उनकी संकल्पना थी कि एक ऐसा राष्ट्र होगा जिसमें हर किसी को अपना धर्म मानने की स्वतंत्रता होगी। समानता और सद्भावना की बात होगी। वीर सावरकर की सोच और विचारधारा को बहुत व्यापक परिप्रेक्ष्य में समझने की जरूरत है।
इसके तत्काल बाद पुस्तक विमोचन सत्र संपन्न हुआ जिसमें देश के विख्यात संपादक और वरिष्ठ पत्रकार पद्मश्री श्री अभय छजलानी की किताब अपना इंदौर का भाग 4 लोकार्पित किया गया। इस अवसर पर अभय जी के पुत्र और वेबदुनिया के संस्थापक श्री विनय छजलानी ने बताया कि चुंकि अभय जी की धड़कन में इंदौर बसता है इसलिए उनसे बेहतर इंदौर के बारे में और कौन लिख सकता है। शहर के ऐतिहासिक तथ्य, इंदौर की गाथा, किस्से, अनुभवों का यह एक ऐसा दस्तावेज है जिसे हर वर्ग हर उम्र के लोगों द्वारा पसंद किया जाएगा। इसमें इंदौर शहर की तथ्यात्मक सामग्री रोचक और अनूठे अंदाज में समेटी गई है। इसमें बीते जमाने के घाट, छत्री, नदी से लेकर बढ़ते विकास, फैलती आबादी और स्थापित होते मूल्यों की जानकारी सहेजी गई है। इंदौर की सबसे पहली हो या सबसे बड़ी, सबसे खास हो या सबसे अलग, हर तरह की जानकारी इस संकलन के पन्नों पर सजी हैं।
पत्रकार निर्मला भुराड़िया ने कहा कि किस्सागोई की दृष्टि से तो पुस्तक अद्भुत है कि प्रिंटिंग, चित्र, ले आऊट, पृष्ठ के लिहाज से भी यह बेजोड़ बन पड़ी है। सत्र के आखिरी में रमेश बाहेती ने भी अभय जी का शाब्दिक अभिनंदन किया।
*अगले दिन का सत्र तारेक फतेह के नाम रहा। तारेक फतेह ने अपनी चिरपरिचित शैली में खूब खुलकर बोला और जमकर बोला। विवादास्पद मुद्दों पर उन्हें मंच से ही संभाल लिया लेकिन फिर भी उन्हें सुनने के लिए दर्शक एक विशेष अपेक्षा से आता है और यकीनन उन्होंने निराश भी नहीं किया।
इसी दिन तस्लीमा नसरीन, ज्ञान चतुर्वेदी, प्रयाग शुक्ल, शरद सिंह, नीलोत्पल मृणाल, लीलाधर जगूड़ी, ललित कुमार, बेली कानुनगो, अर्पणा उपाध्याय सान्याल, गौतम चिकरमाने को सुनना भी दिलचस्प रहा।
तीसरे और अंतिम दिन तारेक फतेह और महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने अपने सत्र में हर मुद्दे और विषय पर बेबाकी से चर्चा की।
इसके तुरंत बाद एक बेहद दिलचस्प और उद्देश्यपूर्ण सत्र लघुकथा पर संपन्न हुआ। 'संक्षिप्त ही सुंदर है' विषय से आयोजित इस सत्र की मॉडरेटर लघु कथाकार ज्योति जैन थीं। इस सत्र के भागीदार थे सूर्यकांत नागर, सतीश राठी, योगेन्द्रनाथ शुक्ल, सीमा व्यास, अंतरा करवड़े और चंद्रशेखर बिरथरे।
इस सत्र के आरंभ में अंतरा करवड़े ने 2 लघुकथाएं 'बूंदें' और 'लहर' का पाठ किया। सीमा व्यास ने 'किसकी बारी' और 'लुगड़ो' शीर्षक से रचना पाठ किया। वरिष्ठ लघु कथाकार सूर्यकांत नागर ने 'भविष्य की चिंता' और 'रावण दहन' के नाम से लघुकथा का वाचन किया। योगेंद्र नाथ शुक्ल ने जुनून और औपचारिकता शीर्षक से 2 रचनाओं का पाठ किया। सतीश राठी ने 'खुली किताब'और 'रोटी की कीमत' शीर्षक से रचना वाचन किया।
जीवन के विविध रंगों से सजी लघुकथाओं ने सभी को प्रभावित किया। मॉडरेटर ज्योति जैन ने लघुकथा 'वर्तमान और शबरी के बेर' का वाचन कर भरपूर तालियां बटोरीं।
अंतिम सत्र में 'कविताओं के गांव में' आयोजित किया गया जिसमें कैंसर विजेता कोमल रामचंदानी, अमर चड्ढा, रोशनी वर्मा, दीपा मनीष व्यास, नीलोत्पल मृणाल, रश्मि रमानी और कैलाशचंद्र शर्मा ने रचनाएं प्रस्तुत की। कोमल ने अपनी स्वयं की व्यथा पर 'नया मौसम मेरा कैंसर दोस्त लाया है पंक्तियों से सुनाकर भावुक कर दिया। रोशनी ने अपनी रचना में खाली होना हमेशा खत्म होना नहीं होता का जिक्र किया वहीं रश्मि रमानी की रचना प्रेम चंदनवन है, प्रेम घुंघरू की तरह बजता है, प्रेम सब खामोश हो तब भी लंबी दास्तां बयां करता है सराही गई। उन्होंने सिक्का शीर्षक से भी रचना पढ़ी। भारत-पाकिस्तान पर रची उनकी कविता भी उल्लेखनीय रही।
कैलाशचंद्र शर्मा ने रावण रचित तांडव के 'मीटर' में अपने छात्रों को आगे बढ़ने और निरंतर पढ़ने का संदेश दिया। वहीं मधुशाला की तर्ज पर रची बच्चन को ही समर्पित उनकी रचना को सस्वर गाकर समां बांध दिया। दीपा व्यास ने पिता पर रचना प्रस्तुत की तथा अमर चड्ढा ने ' तुझे गुमां है, फिक्र नहीं वक्त ने रखी मुलाकात कहीं.. रचना पेश की। इस सत्र को गरिमा संजय दुबे के मॉडरेट किया।
इस तरह तीन दिवसीय इंदौर लिटरेचर फेस्टिवल खूबसूरत यादों को समेट कर संपन्न हुआ। इस तरह के आयोजन होते रहें तो नकारात्मकताओं से भरी इस दुनिया में सार्थकता की कहीं कहीं न कहीं कोई न कोई बूंद तो पड़ ही जाती है। और बूंदों से ही तो सागर बनता है। इस साहित्य बगिया में लहलहाए पौधों और वटवृक्षों के बीज अगर आने वाली पीढ़ी के कुछ बच्चों के दिलों में भी रह गए तो यकीनन कई नन्हे रोपे तैयार होते रहेंगे साहित्य, कला और संस्कृति की खुशबू को आगे बढ़ाने के लिए....आयोजक प्रवीण शर्मा की टीम बधाई के साथ प्रशंसा की भी हकदार है।