इंदौर लिट्रेचर फेस्टिवल के अंतिम दिन का आकर्षण लेखक-पत्रकार विजय मनोहर तिवारी की बहुचर्चित पुस्तक 'भारत की खोज में मेरे 5 साल' पर विमर्श सत्र रहा। विजय जानेमाने पत्रकार तो हैं ही लेकिन उनका लेखकीय व्यक्तित्व इतना प्रबल है कि उनके चाहने पर भी छुप नहीं पाता और निरंतर किताब के रूप में सामने आ जाता है। दिलचस्प तथ्य यह है कि यह उनकी छठी पुस्तक है और पूर्व प्रकाशित पुस्तकों की ही तरह इसका भी विधिवत लोकार्पण समारोह नहीं हुआ है।
उनकी लेखनी का जादू ऐसा है कि हर किताब चर्चा का विषय बनती है और एक बड़े पाठक वर्ग द्वारा सराही जाती है। इंदौर लिट्रेचर फेस्टिवल के इस सत्र में प्रमुख वक्ता के रूप में वेबदुनिया के संपादक जयदीप कर्णिक, वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश हिंदुस्तानी, पत्रकार जयश्री पिंगले शामिल हुए।
वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश हिंदुस्तानी ने चर्चा को आगे बढ़ाते हुए उन दिनों को याद किया जब टीवी पत्रकारिता में वह साथ थे और हरसूद डूब में आ रहा था। देश भर के मीडियाकर्मी वहां थे लेकिन सिर्फ विजय ने ही उस ऐतिहासिक मार्मिक घटनाक्रम को पुस्तक के आकार में ढाला और साहित्य संसार को अद्भुत स्मरणीय दस्तावेज दिया।
पुस्तक ''भारत की खोज में मेरे 5 साल'' में भी उनकी हर यात्रा की ऐसी विलक्षण कहानी है जो उन्हें राहुल सांकृत्यायन, रांगेय राघव और फणिश्वरनाथ रेणु के लिखे यात्रा वृत्तांत की श्रेणी में खड़ा करती है।
पत्रकार जयश्री पिंगले ने कहा कि विजय के भीतर पत्रकार से पहले लेखक का मन धड़कता है। हम जब साथ में थे तब रिपोर्टिंग करते हुए भी उनके भीतर का लेखक पहले खड़ा होता था। मेरा ऐसा मानना है कि लेखक की निरंतर अध्ययन की प्रवृत्ति की भी इसमें बड़ी भूमिका है क्योंकि इसी से वह अपनी बात इतनी विविधता से इतने आकर्षक रूप में अभिव्यक्त कर पाते हैं।
इस अवसर पर लेखक विजय मनोहर तिवारी ने अपनी रचनाधर्मिता पर विनम्रतापूर्वक कहा कि आमतौर पर हम किसी स्थान पर टूरिस्ट की तरह जाते हैं और तस्वीरों को लेकर आ जाते हैं लेकिन मेरी कोशिश रही कि मैंने हर जगह पर वहां के परिवेश से जुड़ने की कोशिश की। लोगों से कनेक्ट हुआ। वहां की माटी की आत्मा तक पहुंचने का प्रयास किया और यह भी उल्लेखनीय है कि इस दौरान मेरे संपादकों ने मुझ पर इतना विश्वास जताया कि मैं इन कहानियों को इस तरह से लिख पाया।
तिवारी ने कहा, जब यह स्टोरी अखबार में प्रकाशित हुई तो इतने चाव से पढ़ी गई कि मुझे लगा कि समकालीन भारत की यह समस्त कहानियां पुस्तक की शक्ल में आना जरूरी है। कार्याधिक्य और व्यस्तता के चलते इतना समय नहीं था बंद कमरों में बैठकर इसे लिख पाता मैंने यात्रा के दौरान ही ट्रेन में बैठकर नोट्स लिए और उन्हें इस तरह प्रस्तुत करने की कोशिश की।
प्रश्नोत्तर के माध्यम से विजय तिवारी ने उपस्थित श्रोताओं को अपनी लेखन यात्रा से परिचित करवाया। कई बार अच्छा लिख सकने वाले भी अपने लिखे को ठीक से प्रस्तुत नहीं कर पाते। विचारों के शिल्प अधूरे छूट जाते हैं। ऐसे में विजय अगर रिपोर्टिंग के साथ ही अपनी पुस्तक पर भी इसलिए कार्य कर पाए, क्योंकि वो सतत सजग होकर अपने लेखन के नोट्स लेते रहे। शुरू से ही रिपोर्टिंग को भी विस्तार देकर लेख की शक्ल देने का कार्य उसी समय कर दिया। खाली समय का सदुपयोग किया। रेल में, होटल की लॉबी मेंं या अस्पताल में बैठकर भी अपने लेखन पर कार्य करते रहे। अपने समय और उस जगह को पूरी तरह निचोड़ लेने की ये प्रवृत्ति ही लेखकीय बेचैनी को ठौर दे सकती है।
जयदीप कर्णिक ने पुस्तक के साथ लेखक के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला और कहा कि अखबार में रहते हुए आमतौर पर जब रिपोर्टिंग की जाती है तो युद्ध भूमि की तरह अनुभव होता है। इतना समय नहीं होता है कि भाषा का परिमार्जन हो सके और तय शब्द सीमा से आगे बढ़ा जा सके लेकिन यह विजय का कमाल है कि वह कुशलतापूर्वक इन सबसे आगे जाते हैं।
उन्होंने कहा कि उनके पास इतिहास, संस्कृति, पुरातन सभ्यता, पुरातत्व की गहरी समझ है, लंबा अनुभव है और समृद्ध शब्द संसार है यही वजह है कि वह सरल तरल रूप में अपनी बात को सुव्यक्त कर पाते हैं। उनकी स्टोरी 500 शब्दों की तय सीमा से आगे जाकर भी अपनी रोचकता नहीं खोती वरन पाठक को भी बहा ले जाती है। आश्चर्य तो इस बात का है अखबार में रहते हुए वे अपने लेखकीय जीवन के लिए न सिर्फ समय निकाल पाते हैं बल्कि इतनी सशक्त कृति भी साहित्य जगत को देने में सफल रहते हैं।
कर्णिक के अनुसार इस कृति को पढ़ते हुए लगातार यह अहसास होता है कि लेखक के मन में भारत के 1000 साल की गुलामी का इतिहास दंश की तरह है जिसे वह बड़ी ही निर्ममता से छेड़ते हैं। उनके लेखन में कहीं ना कहीं भारत के उन आक्रांताओं की झलक स्पष्ट दिखाई पड़ जाती है जिनसे भारत की भूमि बरसों तक संत्रस्त रही। यह पुस्तक उन सभी रिपोर्टर को लिए प्रेरणादायक है जो 'फिल्ड' में रहते हुए यह नहीं जानते कि एक स्टोरी को कितने मानवीय और भावनात्मक स्तर पर महसूस कर प्रस्तुत किया जा सकता है। यह लेखक की 5 वर्षों में की गई 8 यात्राओं की 25 कहानियां हैं जो 500 पेज में सजी हुई है और हर कहानी का अपना एक विशेष करिश्मा है जो पाठक को बांधे रखता है।
इस अवसर पर बड़ी संख्या में साहित्यप्रेमी और देश भर से आए जानेमाने लेखक उपस्थित थे।