Deep festival : दीप पर्व का महात्म्य न केवल पौराणिक कथाओं में है बल्कि गौतम बुद्ध के 'अप्प दीपो भवः' से लेकर दिनकर, निराला, महादेवी, त्रिलोचन, कुबेरनाथ राय से चली आ रही भारतीय साहित्य परम्पराओं में भी उसी उल्लास से दर्शनीय है। अनेकता में एकता का पाठ पढ़ाती भारतीय संस्कृति की अनेक विशेषताओं में एक विशेषता यहां का पर्व अनुराग भी है। उल्लास और आनंद के प्रशांत महासागर-सा गहरा उत्साह विविधताओं के चलते भी अद्भुत और अलौकिक है।
कार्तिक माह में मनाया जाने वाला पर्व दीपोत्सव अपने साथ कई कथाओं के आयतन को दर्शाता है। उसी तरह भारतीय साहित्य ने भी दीपोत्सव यानी दीपावली को पर्याप्त स्थान दिया है। राजा हर्ष के संस्कृत में लिखे नाटक 'नागानंद' में दीपावली को दीपप्रतिपादुत्सव कहा गया है। उसी तरह राजशेखर ने काव्यमीमांसा में दीपावली को दीपमालिका कहा है। कवि अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध (1865-1947) रोशनी और अंधेरे पर कुछ ऐसे कहते हैं-
पेड़ पर रात की अंधेरी में / जुगनुओं ने पड़ाव हैं डाले
या
दिवाली मना चुड़ैलों ने/ आज हैं सैंकड़ो दीये बाले।
सोहनलाल द्विवेदी की कविता 'जगमग-जगमग' में दीपावली की उजियाली का वर्णन है। हरिवंश राय बच्चन की कविता 'आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ' में दीपोत्सव वर्णित है।
यही नहीं, बच्चन जी की जग प्रसिद्ध कृति मधुशाला में वे लिखते हैं कि-
एक बरस में एक बार ही जगती होली की ज्वाला / एक बार ही लगती बाज़ी जलती दीपों की माला,
दुनियावाले, किन्तु किसी दिन आ मदिरालय में देखो / दिन को होली रात दिवाली रोज़ मनाती मधुशाला।
माखनलाल चतुर्वेदी ने अपनी कविता 'दीप से दीप जले' में दिवाली की चर्चा की है। गद्य साहित्य की बात करें तो 14 वर्ष की मेहनत के बाद प्रसिद्ध बंगाली उपन्यासकार शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय की प्रामाणिक जीवनी 'आवारा मसीहा' लिखने वाले विष्णु प्रभाकर ने अपनी पहली कहानी 'दिवाली के दिन' शीर्षक से ही लिखी थी। वे कहते भी हैं कि 'मैंने लिखना शुरू किया, पहले कविता लिखी, फिर गद्य काव्य। लेकिन उनमें मन इतना रमा नहीं इसलिए कहानी लिखनी शुरू कर दी। इन सबका परिणाम अंततः दिवाली के दिन कहानी के रूप में हुआ।'
आधुनिक हिन्दी के कबीर हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ने निबंध आलोक पर्व में लिखा है कि 'दीपावली प्रकाश का पर्व है। इस दिन जिस लक्ष्मी की पूजा होती है, वह गरुड़वाहिनी है- शक्ति, सेवा और गतिशीलता उसके मुख्य गुण हैं। उनके लिए, दीपावली का पर्व आद्या शक्ति के विभिन्न रूपों के स्मरण का दिन है।'
जबकि हिंदी के प्रसिद्ध ललित निबंधकार कुबेरनाथ राय अपने निबंध संग्रह 'मराल' में दिवाली को मात्र धन-समृद्धि का पर्व मानने की भ्रांति को दूर करते हुए बड़े पते की बात लिखते हैं। वे कहते हैं कि 'सारा उत्तर भारत इसे अर्थ की देवी माधवी या लक्ष्मी के त्योहार के रूप में ही मनाता है। तब क्या प्रकाश के जगमगाते असंख्य दीपकों की पांत अर्थ गरिमा की द्योतक है।
भारत का गरीब से गरीब आदमी भी जिसका एकमात्र गौरव उसका धर्म बोध ही है, माटी का एक जोड़ा दीया अपने दरवाज़े के सामने इस दिन ज़रूर रखता है। उन दीपकों से उसका अंहकार नहीं, उसकी श्रद्धा प्रकाशित हो रही है। यह श्रद्धा उसके अन्तर्निहित मनुष्यता की गरिमा है और श्रद्धा धर्मबोध और पवित्रताबोध से जुड़ी है, अतः यह हमारे अवचेतन को धर्म-मोक्ष के मार्ग पर ठेलती है।'
कविताओं, नाटकों, कहानियों में दीपोत्सव के वर्णन के साथ-साथ लगभग प्रत्येक कवि की कविता की दीपमालिका को पर्याप्त स्थान मिला है। उर्दू शायरों ने भी दीपोत्सव पर भरपूर लिखा है। चाहे फ़िराक़ गौरखपुरी हों चाहे वली दकनी।
वली दकनी ने लिखा है कि-
तिरी ज़ुल्फ़ों के हल्के में है यूं नक्श-ए-रुख-ए-रोशन/
कि जैसे हिंद के भीतर लगें दीवे दिवाली में।
फ़िराक़ ने लिखा है कि 'धरती का रस डोल रहा है दूर-दूर तक खेतों के/ लहराये वो आंचल धानी दिवाली के दीप जले।
त्रिलोक सिंह ठकुरेला अपनी कविता में लिखते हैं कि-
दिवाली के पर्व की, बड़ी अनोखी बात।
जगमग-जगमग हो रही, मित्र, अमा की रात।।
मित्र, अमा की रात, अनगिनत दीपक जलते।
हुआ प्रकाशित विश्व, स्वप्न आंखों में पलते।
ठकुरेला कविराय, बजी ख़ुशियों की ताली।
ले सुख के भंडार, आ गई फिर दिवाली।।'
इसी तरह सुमित्रानंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला से लेकर अज्ञेय, नागार्जुन, नरेन्द्र कोहली, राजकुमार कुंभज, कथा साहित्य में सैंकड़ो कथाकारों ने दीपोत्सव को अपने शब्दों में चित्रित किया है।
दीप पर्व ने अपने संग साहित्य के दीपों को भी दृष्टि संपन्नता के साथ आंचल में स्वीकार किया है। भारतीय साहित्य के इतर भी दृष्टि विस्तारित की जाए तो विश्व साहित्य ने भी दीपावली को अपने शब्दों में जगह दी है। जैसे वर्मोंट की रहने वाली हन्ना इलियट ने बच्चों के लिए एक पुस्तक 'दिवाली' लिखी है। ऐसी समृद्धता को समाहित करने वाले दीप पर्व की असंख्य कीर्ति रश्मियां जीवन को सदैव अलौकित करती रहें। साहित्य ने अपनी दृष्टि विन्यास के विपुल वैभव से दीपमालिका का अनूठा व अद्भुत गुणगान किया है। दीप पर्व मंगलमय हो, यही कामना है।
[लेखक डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तथा देश में हिन्दी भाषा के प्रचार हेतु हस्ताक्षर बदलो अभियान, भाषा समन्वय आदि का संचालन कर रहे हैं]
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