किसी भी देश में खुफिया एजेंसियों का महत्व अत्यधिक होता है क्योंकि वे देश की सुरक्षा,स्थिरता और नीति निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यह माना जाता है कि देश के राष्ट्राध्यक्ष अपनी ख़ुफ़िया एजेंसियों द्वारा एकत्र की गई जानकारी और किए गए विश्लेषण पर आंख मूंद कर भरोसा करते है। लेकिन दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका के नये राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अपने देश की ख़ुफ़िया एजेंसियों को लेकर अविश्वास से भरे हुए है और यही हाल ख़ुफ़िया एजेंसियों का भी है।
अब ट्रम्प ने अपने देश की ख़ुफ़िया एजेंसियों पर नकेल कसने के लिए अपने सबसे विश्वस्त सहयोगी विवेक रामास्वामी को डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएन्सी (डीओजीई) का प्रमुख बनाया है। विवेक रामास्वामी एफ़बीआई को बंद करने की वकालत करते हैं। उन्होंने पुनर्गठन का सुझाव दिया जिसमें एफ़बीआई की फंडिंग को सीक्रेट सर्विस,फ़ाइनेंशियल क्राइम्स एनफ़ोर्समेंट नेटवर्क और डिफ़ेंस इंटेलिजेंस एजेंसी में बांटा जाए। राष्ट्रपति ट्रंप एफ़बीआई पर उनके ख़िलाफ़ बदले की भावना से कार्रवाई करने के आरोप लगाते रहे हैं।
दरअसल अमेरिकी की ख़ुफ़िया एजेंसियों और राष्ट्रपति ट्रम्प के बीच टकराव की शुरुआत 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान हुई थी, यह टकराव ट्रम्प के उस राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान लगातार बना रहा था। अमेरिका में सीआईए और एफबीआई,ऐसी दो प्रमुख एजेंसियां है जिन पर देश की सुरक्षा और चुनौतियों का सामना करने का जिम्मा है। सीआईए एक खुफिया संगठन है और इसके द्वारा एकत्रित की गई जानकारी का उपयोग नीति निर्माताओं को सूचित करने के लिए किया जाता है। एफबीआई एक कानून प्रवर्तन संगठन है जो अमेरिका में अपराध को रोकने या अपराधियों पर मुकदमा चलाने के लिए अपनी जानकारी का उपयोग करना चाहता है । इनका सीधा संबंध अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा से है।
ट्रंप को लेकर अमेरिका की ख़ुफ़िया एजेंसियों का रवैया बेहद आक्रामक रहा है और उनकी कई कार्यवाहियों से ट्रम्प कई बार असहज हुए है। ट्रम्प जब पहली बार 2016 में देश के राष्ट्रपति चुने गए थे तो उन्होंने अपने विशेषाधिकार का उपयोग करते हुए फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (एफ़बीआई) के निदेशक जेम्स कोमी को हटाकर सबको हैरान कर दिया था। एफ़बीआई निदेशक ने अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव में रूसी हस्तक्षेप की जांच पर बयान दिया था। इस मामले में ट्रंप के चुनावी कैंपेन के रूसी अधिकारियों के कथित संबंधों की आशंका जताई गई थी। ट्रंप एफ़बीआई निदेशक से नाख़ुश थे। उन चुनावों में ट्रंप रूस संबंध को लेकर काफी बहस हुई थी। अमरीकी खुफिया एजेंसियों का मानना था कि रूस ने अमरीकी चुनाव में रिपब्लिकन का पक्ष लेने की कोशिश की थी। इस चुनाव में डेमोक्रेट हिलेरी क्लिंटन की हार हुई थी।
डोनल्ड ट्रंप के दामाद और उनके सीनियर सलाहकार जैरेड कशनर भी रूस के साथ संबंधों को लेकर एफ़बीआई के निशाने पर रहे। सीआईए ने दावा किया था की रूस ने कुछ महत्वपूर्ण ईमेल हैक कर डोनाल्ड ट्रम्प को जिताने में मदद की थी। इसके बाद तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इसकी जांच के आदेश भी दिए थे। सीआईए एक स्वतंत्र एजेंसी है जो सीधे अमेरिकन राष्ट्रपति को रिपोर्ट करती है,लेकिन ट्रम्प के पूरे कार्यकाल में सीआईए आशंकाग्रस्त रही। राष्ट्रपति के रूप में ट्रम्प ने अपनी ख़ुफ़िया एजेंसी को लेकर सार्वजनिक निराशा जताई थी,वहीं सीआईए ने अपने देश के राष्ट्रपति को ही खुफिया प्रक्रिया के बारे में संदिग्ध और असुरक्षित माना था। यहां तक कि ट्रम्प को अपने शपथग्रहण के कई सप्ताह बाद तक सीआईए के गुप्त कार्रवाई कार्यक्रमों के बारे में कोई ब्रीफिंग नहीं मिली।
अमेरिका में मौजूदा और पूर्व राष्ट्रपतियों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी देश की सीक्रेट सर्विस की होती है। इस साल चुनाव में ट्रम्प पर जानलेवा हमलें की दो कोशिशें हुई और एक बार तो ट्रम्प बाल बाल बच गए। इस हादसे की तफ़्तीश की मुख्य ज़िम्मेदारी अमेरिका की संघीय जांच एजेसीं एफ़बीआई की है। अमेरिका में यह बड़ी चर्चा रही है कि सीक्रेट सर्विस हमलावार को गोली चलाने से पहले नहीं रोक पाई। ट्रम्प और ख़ुफ़िया एजेंसियों के बीच अविश्वास से कई संदेह गहराएं हुए है।
राष्ट्रपति बनने के बाद 2017 में डोनाल्ड ट्रम्प ने कमांडर इन चीफ के रूप में केंद्रीय खुफिया एजेंसी के कार्यालय का दौरा किया तो उन्होंने इस कार्यक्रम को गोपनीय रखने के स्थान पर सार्वजनिक किया। कार्यक्रम में शामिल होने के लिए खुला निमंत्रण दिया गया,करीब चार सौ सीआईए के कर्मचारी इसमें शामिल हुए। इस दौरान भीड़ ने ट्रम्प की जय जयकार की और खूब तालियां बजाई। तत्कालीन सी.आई.ए.निदेशक ब्रेनन ने ट्रम्प की इस हरकत को शर्मनाक बताया था।
पिछले साल संयुक्त राज्य अमेरिका में संघीय अभियोजकों ने पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के खिलाफ एक व्यापक अभियोग दायर किया था जिसमें आरोप लगाया गया कि उन्होंने संवेदनशील राष्ट्रीय सुरक्षा जानकारी वाले वर्गीकृत दस्तावेजों को जमा करके रखा और छुपाया। 49 पन्नों के इस दस्तावेज़ में ट्रंप के खिलाफ़ 37 संघीय आरोप लगाए गए हैं। इनमें से 31 आरोप जासूसी अधिनियम के उल्लंघन से संबंधित हैं,जो राष्ट्रीय रक्षा सूचना के अनधिकृत कब्जे को अपराध मानता है। अधिनियम के तहत प्रत्येक आरोप के लिए अधिकतम दस साल की सज़ा का प्रावधान है। ट्रंप के पास से जो दस्तावेज़ मिले है उसमें से कुछ को सिर्फ फाइव आइज़ अलायंस से ही साझा किया जा सकता था। फाइव आइज़ अलायंस खुफिया गठबंधन में ऑस्ट्रेलिया,कनाडा,न्यूजीलैंड,यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका शामिल है।
फाइव आईज किस प्रकार काम करता है,इसकी वास्तविक जानकारी अभी भी उन सुरक्षा उपायों के कारण अस्पष्ट है। इस गठबंधन का प्रत्येक सदस्य दुनिया के विशिष्ट क्षेत्रों में खुफिया जानकारी जुटाने और विश्लेषण के लिए जिम्मेदार है। ब्रिटेन यूरोप,पश्चिमी रूस,मध्य पूर्व और हांगकांग पर नज़र रखता है। अमेरिका भी मध्य पूर्व के साथ साथ चीन,रूस,अफ्रीका और कैरिबियन की निगरानी करता है। ऑस्ट्रेलिया दक्षिण और पूर्वी एशिया के लिए और न्यूजीलैंड दक्षिण प्रशांत और दक्षिण पूर्व एशिया के लिए जिम्मेदार है। कनाडा रूस और चीन के अंदरूनी इलाकों और लैटिन अमेरिका के कुछ हिस्सों पर नज़र रखता है। इस गठबंधन के अंतर्गत खुफिया जानकारी का व्यापक आदान प्रदान ये देश आपस में करते हैं। अभियोग में यह भी आरोप है कि ट्रम्प ने एक विजिटिंग लेखक और प्रकाशक को एक अत्यधिक गोपनीय सैन्य दस्तावेज दिखाया था।
इस समय अदालत में यह केस विचाराधीन है कि ट्रम्प ने पद छोड़ने के बाद वर्गीकृत दस्तावेजों को व्हाइट हाउस से अपने निवास में ले जाकर गलत तरीके से संभाला था। ट्रम्प के खिलाफ मामला इस बात पर भी है कि क्या उन्होंने फाइलें वापस पाने के एफबीआई के प्रयासों में बाधा डाली, साथ ही उनके साथ किए गए व्यवहार की आपराधिक जांच में भी बाधा डाली। यह मामला राष्ट्रीय रक्षा संबंधी जानकारी को जानबूझकर अपने पास रखने के संबंध में हैं, जो जासूसी अधिनियम के अंतर्गत आता है।
सीआईए (केंद्रीय खुफिया एजेंसी) और पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बीच संबंध उनके पहले कार्यकाल के दौरान कई बार चर्चा का विषय बने। सीआईए संयुक्त राज्य अमेरिका की प्रमुख खुफिया एजेंसी है, जो विदेशी खुफिया जानकारी एकत्र करने और विश्लेषण करने का कार्य करती है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को चुनावों में रूस की मदद का आरोप लगाकर वहां की खुफियां एजेंसी सीआईए ने अमेरिकी इतिहास में एक नया राजनीतिक और सामरिक संकट खड़ा कर था। सीआईए ने दावा किया की रूस ने अमेरिकी चुनाव प्रणाली को संदेह के घेरे में डाल दिया है और महत्वपूर्ण ईमेल हैक कर डोनाल्ड ट्रम्प को जिताने में मदद की। अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसियों के अनुसार राष्ट्रपति चुनाव में डोनल्ड ट्रंप को बढ़त दिलाने के लिए रूस ने दबे-छिपे तरीके से काम किया था। राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इसकी जांच का आदेश दिया है वहीं ट्रंप ने इस दावे को सिरे से ख़ारिज कर दिया था।
ट्रम्प ने अपने कार्यकाल के दौरान खुफिया समुदाय, विशेष रूप से सीआईए और एफबीआई, के साथ कई बार सार्वजनिक तौर पर असहमति जताई। उन्होंने खुफिया एजेंसियों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए और उनके काम करने के तरीकों की आलोचना की। 2018 में सऊदी पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या के बाद, सीआईए ने निष्कर्ष निकाला कि सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान इस हत्या के पीछे थे। ट्रम्प ने सीआईए की रिपोर्ट पर सवाल उठाए और सऊदी अरब के साथ अपने प्रशासन के मजबूत संबंधों को बनाए रखा। ट्रम्प ने कई बार खुफिया ब्रीफिंग्स को अस्वीकार किया या उनकी महत्वता को कम करके आंका। उन्होंने दावा किया कि वे अपनी खुद की जानकारी पर अधिक भरोसा करते हैं।
2017 में 16 अन्य अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की निगरानी करने वाली प्रमुख संस्था,राष्ट्रीय खुफिया निदेशक के कार्यालय ने सी.आई.ए. और एफ.बी.आई. से खुफिया जानकारी पर आधारित एक रिपोर्ट जारी की थी। इसमें यह माना गया की रूस ने 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में हस्तक्षेप किया था और ट्रम्प की मदद करने की इच्छा जताई थी। यह भी दिलचस्प है कि जुलाई 2018 में हेलसिंकी में ट्रम्प के साथ एक संवाददाता सम्मेलन में,रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने चुनाव में हस्तक्षेप से इनकार किया था। लेकिन उन्होंने ट्रम्प की जीत होने के पक्ष में अपनी इच्छा को सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया था।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1947 में सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी या सीआईए की स्थापना राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने की थी । यह विभाग विदेशी खुफिया जानकारी एकत्र करने और गुप्त अभियानों को अंजाम देने के लिए जिम्मेदार है। सीआईए द्वारा की जाने वाली अधिकांश गतिविधियां विदेशी व्यक्तियों,समूहों और राज्यों पर केंद्रित होती हैं जिनका उद्देश्य अमेरिका की सुरक्षा,आर्थिक समृद्धि और मैत्रीपूर्ण राजनयिक संबंधों को सुनिश्चित करने के लिए विदेशी उद्देश्यों और व्यवहारों को समझना होता है। सीआईए रूस को प्रभावित करने की अपनी योजनाओं और रणनीतियों में जुटा रहता है और वह यूरोप की कई ख़ुफ़िया एजेंसियों से सूचनाओं को साझा भी करता है। वहीं एफबीआई एक प्रमुख संघीय कानून प्रवर्तन एजेंसी है जो संयुक्त राज्य अमेरिका की न्याय विभाग के अंतर्गत काम करती है। एफबीआई का मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा करना और संघीय कानूनों को लागू करना है।
ट्रम्प के पुतिन से मित्रवत संबंध,ट्रम्प की नाटो और यूरोप से साझेदारी पर सवाल,यूक्रेन को दी जा रही मदद को लेकर निराशा तथा उनका सेव अमेरिका अभियान न तो सीआईए को रास आ सकता है और न ही एफबीआई इसे स्वीकार कर पायेगी। दूसरी और ट्रम्प के सहयोगी विवेक रामास्वामी ने संकेत दे दिया है कि जो ज़िम्मेदारी उन्हें मिली है,उसे आक्रामकता के साथ लागू करेंगे। जाहिर राष्ट्रपति के रूप में ट्रम्प का कार्यकाल बेहद आक्रामक और दिलचस्प होने की संभावना है जहां ख़ुफ़िया एजेंसियों के अस्तित्व का सवाल भी गहरा सकता है।