मंगलवार, 19 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. साहित्य आलेख
  4. A letter from Hindi during Language dispute

हां मैं हिन्दी हूं, 'झगड़ों' की नहीं, संवाद की भाषा हूं....

हां मैं हिन्दी हूं, 'झगड़ों' की नहीं,  संवाद की भाषा हूं.... - A letter from Hindi during Language dispute
मैं हिन्दी हूं। बहुत दुखी हूं। स्तब्ध हूं। समझ में नहीं आता कहां से शुरू करूं? कैसे शुरू करूं? मैं, जिसकी पहचान इस देश से है, इसकी माटी से है। इसके कण-कण से हैं। अपने ही आंगन में बेइज्जत कर दी जाती हूं! कहने को संविधान के अनुच्छेद 343 में मुझे राजभाषा का दर्जा प्राप्त है। 
 
अनुच्छेद 351 के अनुसार संघ का यह कर्तव्य है कि वह मेरा प्रसार बढ़ाएं। पर आज यह सब मुझे क्यों कहना पड़ रहा है? नहीं जानती थी मेरा किसी 'राज्य-विशेष' में किसी की 'जुबान' पर आना 'अपराध' हो सकता है। 
 
मन बहुत दुखता है जब मुझे अपनी ही संतानों को यह बताना पड़े कि मैं भारत के 70 प्रतिशत गांवों की अमराइयों में महकती हूं। मैं लोकगीतों की सुरीली तान में गुंजती हूं। मैं नवसाक्षरों का सुकोमल सहारा हूं। मैं जनसंचार का स्पंदन हूं। 
 
मैं कलकल-छलछल करती नदिया की तरह हर आम और खास भारतीय ह्रदय में प्रवाहित होती हूं। मैं मंदिरों की घंटियों, मस्जिदों की अजान, गुरुद्वारे की शबद और चर्च की प्रार्थना की तरह पवित्र हूं। क्योंकि मैं आपकी, आप सबकी-अपनी हिन्दी हूं। 
 
विश्वास करों मेरा कि मैं दिखावे की भाषा नहीं हूं, मैं झगड़ों की भाषा भी नहीं हूं। मैंने अपने अस्तित्व से लेकर आज तक कितनी ही सखी भाषाओं को अपने आंचल से बांध कर हर दिन एक नया रूप धारण किया है। फारसी, अरबी, उर्दू से लेकर 'आधुनिक बाला' अंग्रेजी तक को आत्मीयता से अपनाया है। 
 
सखी भाषा का झगड़ा मेरे लिए नया नहीं है। जब जब मेरी दक्षिण भारतीय या महाराष्ट्रीयन 'बहनों' की संतानों ने यह स्वर उठाया, मैंने हर बार शांत और धीर-गंभीर रह कर मामले को सहजता से सुलझाया है। मैं दक्षिण भारतीय भाषाओं की संतानों से पूछती हूं इस समय जबकि सारे देश में सांप्रदायिकता और विदेशी ताकतों का खतरा मंडरा रहा है, ऐसे में आपसी दीवारों का टकराना क्या उचित है? 
 
लेकिन कैसे समझाऊं और किस-किस को समझाऊं? 'कोई' दम ठोंक कर कहता है कि मेरा अस्तित्व मिटा देगा। मैं क्या कल की आई हुई कच्ची-पक्की बोली हूं जो मेरा नामोनिशान मिटा दोगे? मैं इस देश के रेशे-रेशे में बुनी हुई, अंश-अंश में रची-बसी ऐसी जीवंत भाषा हूं जिसका रिश्ता सिर्फ जुबान से नहीं दिल की धड़कनों से हैं। 
 
मेरे दिल की गहराई का और मेरे अस्तित्व के विस्तार का तुम इतने छोटे मन वाले भला कैसे मूल्यांकन कर पाओगे? इतिहास और संस्कृ‍ति का दम भरने वाले छिछोरी बुद्धि के प्रणेता कहां से ला सकेंगे वह गहनता जो अतीत में मेरी महान संतानों में थी। 
 
मैंने तो कभी नहीं कहा कि बस मुझे अपनाओ। बॉलीवुड से लेकर पत्रकारिता तक और विज्ञापन से लेकर राजनीति तक हर एक ने नए शब्द गढ़े, नए शब्द रचें, नई परंपरा, नई शैली का ईजाद किया। मैंने कभी नहीं सोचा कि इनके इस्तेमाल से मुझमें विकार या बिगाड़ आएगा। 
 
मैंने खुले दिल से सब भाषा का,भाषा के शब्दों का, शैली और लहजे का स्वागत किया। यह सोचकर कि इससे मेरा ही विकास हो रहा है। मेरे ही कोश में अभिवृद्धि हो रही है। अगर मैंने भी इसी संकीर्ण सोच को पोषित किया होता कि दूसरी भाषा के शब्द नहीं अपनाऊंगी तो भला उद्दाम आवेग से इठलाती-बलखाती यहां तक कैसे पहुंच पाती? 
 
मैंने कभी किसी भाषा को अपना दुश्मन नहीं समझा। किसी भाषा के इस्तेमाल से मुझमें असुरक्षा नहीं पनपी। क्योंकि मैं जानती थी कि मेरे अस्तित्व को किसी से खतरा नहीं है। 
 
मैं और मेरी सखी भाषाएं मिलकर त्रिभाषा फार्मूला की स्थापना के लिए संघर्ष कर रहे हैं। लेकिन इसका अर्थ यह तो कतई नहीं था कि हमारी संतान एक-दूसरे के विरुद्ध नफरत के खंजर निकाल लें। यह कैसा भाषा-प्रेम है? यह कैसी भाषाई पक्षधरता है? क्या 'मां' से प्रेम दर्शाने का यह तरीका है कि 'मौसी' की गोद में बैठने पर अपने ही भाई को दुश्मन समझ बैठो। क्या लगता है आपको, इससे आपकी भाषा संस्कृति खुश होगी? नहीं हो सकती। 
 
हम सारी भाषाएं संस्कृत की बेटियां हैं। बड़ी बेटी का होने का सौभाग्य मुझे मिला, लेकिन इससे अन्य भाषाओं का महत्व कम तो नहीं हो जाता। और यह भी तो सच है ना कि मुझे अपमानित करने से आपकी भाषा का महत्व बढ़ तो नहीं जाएगा? 
 
यह कैसा भाषा गौरव है जो अपने अस्तित्व को स्थापित करने के लिए स्थापित भाषा को उखाड़ देने की धृष्टता करें। मुझे कहां-कहां पर प्रतिबंधित करोगे? 
 
प्रकृति, कला, संस्कृति, साहित्य और संगीत की धरा पर कोई और रचनात्मक काम क्यों नहीं करते? अपनी सोच को थोड़ा सा विस्तार क्यों नहीं देते, मैं आपकी भी हूं। मैं भी आपकी ही हूं.... 
 
बस इतना ही, 
 
आप सबकी 
हमेशा-सी, 
हिन्दी