प्राण साब, हो सके तो लौट आइए
मशहूर कार्टूनिस्ट प्राण नहीं रहे
आज 30 से 40 साल तक के 'बच्चों' की आंखें नम है.... उनके बचपन का एक ऐसा कोमल काल्पनिक हिस्सा आहत हुआ है जिसे शब्दों से नही सिर्फ मौन आंसूओं से ही व्यक्त किया जा सकता है। प्राण साब, सिर्फ कार्टूनिस्ट नहीं थे आप। आप ने हम बच्चों के मन पर रंगों और आकृतियों से ऐसे आत्मीय 'इंसानों' को सौंपा है जो कभी लगे ही नहीं कि कल्पना की उपज हो सकते हैं। चाचा चौधरी, साबू, बिल्लू, पिंकी, श्रीमती जी, रमन, चन्नी चाची, गोगी, गब्दू यह क्या सिर्फ नाम भर हैं। क्या इन्हें कोई महज कार्टून मान सकता है? हमारे बचपन के अनन्य साथी थे यह सब, जो गर्मी की छुट्टियों में इतने-इतने पढ़े जाते थे कि सपनों में आने लगते थे। आपके इन पात्रों से मिलने के लिए कभी मां-पापा ने भी नहीं रोका क्योंकि खुद हमने उनको हाथों में आपकी कॉमिक्स को प्यार से पकड़े देखा है।