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Written By ND

'प्लीज', हिन्दी में बात कीजिए ना!

- गौतम जोशी

Hindi Day | ''प्लीज'', हिन्दी में बात कीजिए ना!
ND

हिन्दी में बात करने का आग्रह अगर 10 साल पहले कोई करता तो आपके सामने नौकरी की चाह रखने वाले, अँगरेजी न समझने वाले युवा की तस्वीर कौंध जाती। लेकिन अब दृश्य बदलने लगा है। यह डिमांड नौकरी देने वालों की तरफ से भी उठ सकती है। एक बात साफ करना बेहतर होगा कि यहाँ हिन्दी से आशय साहित्यिक भाषा से कतई नहीं है, बल्कि हिन्दी की आत्मा से है।

कुछ वर्षों पहले मेरी मुलाकात एक निजी टेलीकॉम कंपनी के सीईओ से हुई। उद्देश्य था बिजनेस। शुरुआती बातचीत के दौरान ही उन्होंने साफ कर दिया कि 'आपकी अँगरेजी बहुत अच्छी है और अपनी अँगरेजी के बारे में मैं स्वयं जानता हूँ। लेकिन मेरा ग्राहक तो दिन-रात हिन्दी बोलता है। बेहतर होगा कि हमारे सारे डिस्कशन हिन्दी में हों, बल्कि हम विज्ञापन और मीडिया प्रेजेंटेशन भी हिन्दी में शुरू कर दें तो बेहतर होगा।'

ये 'एचएसएम' बड़ा बलवान ह
इंदौर, भोपाल या जयपुर जैसे शहरों में ही नहीं, बल्कि महानगरों के कॉर्पोरेट ऑफिसों में भी हिन्दी की पैठ गहरी हो चुकी है। आपको एक बात बता देना बेहतर होगा कि यह हिन्दी के प्रति कॉर्पोरेट सेक्टर का विशेष आग्रह नहीं बल्कि उनकी मजबूरी है। हिन्दी भाषी क्षेत्रों को बिजनेस में 'हिन्दी स्पीकिंग मार्केट' (एचएसएम) के नाम से जाना जाता है। यह बाजार देश का 60 प्रतिशत से अधिक बिजनेस देता है। अब आप खुद समझ सकते हैं कि ऐसा आश्चर्यजनक परिवर्तन क्यों हो रहा है।

विदेशी नूडल्स, देशी तड़क
भारत का बाजार विदेशी कंपनियों के लिए खुलने के साथ ही देश में कई नामी ब्रांड्स आए। ये वे ब्रांड्स थे जिन्होंने दुनिया के कई देशों में जाकर स्थानीय संस्कृति, खानपान और भाषा की ताकत को समझ रखा था। भारत आकर मेकडॉनल्ड्स, नाइक, सैमसंग, हच जैसे ब्रांड पूरी तरह देशी हो गए।

भारतीय अंदाज में मार्केटिंग करते इन बड़े ब्रांड्स को देखकर हमारे स्थानीय ब्रांड्स को भी अपनी गलतियाँ सुधारने का मौका मिला। इन ब्रांड्स को समझ आया कि हाई प्रोफाइल बने रहकर तरक्की नहीं हो सकती। असली बाजार भारत के छोटे गाँवों और शहरों में छुपा है और उन तक पहुँचने का एकमात्र रास्ता हिन्दी है।

यूँ तो देश के हर 20 किलोमीटर पर भाषा में परिवर्तन नजर आ जाता है, लेकिन इतनी भौगोलिक विविधता वाले देश में अलग-अलग भाषाओं के साथ मार्केटिंग, सेल्स करना नामुमकिन है। ऐसे में एकमात्र हिन्दी ही ऐसा जरिया है, जो सबसे वृहद टीजी (टारगेट ग्रुप) को पकड़कर संवाद स्थापित कर सकता है। शायद इसी परिप्रेक्ष्य में गाँधीजी ने कहा था कि हिन्दी पूरे देश को एक सूत्र में बाँधने वाला सबसे मजबूत धागा है।