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Last Updated : शनिवार, 28 मई 2022 (14:57 IST)

क्या है महाकाव्य शिलप्पदिकारम, जो स्टालिन ने भेंट किया पीएम मोदी को

silappadikaram
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- अथर्व पंवार
 
प्रधानमंत्री मोदी ने शुक्रवार को चेन्नई में 'Central Institute of Classical Tamil' के नए परिसर का उद्घाटन किया। यह केंद्र द्वारा आर्थिक रूप में पोषित संस्थान है। उन्होंने इस अवसर पर कहा कि वह तमिल संस्कृति और भाषा के उत्थान के लिए प्रतिबद्ध है। इसी अवसर पर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन से भी उनकी भेंट हुई और उन्होंने प्रधानमंत्री को एक तमिल महाकाव्य 'शिलाप्पदीपुरम' उपहार में दिया। यह महाकाव्य तमिल भाषा साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
 
शिलप्पदिकारम का अर्थ : इसका अर्थ है 'नूपुर की महत्ता को वर्णित करने वाला काव्य'
 
जानिए क्या है इस महाकाव्य में : इसे तमिल भाषा के महाकवि इंलगो अडियल ने लिखा है। इसमें महासाध्वी कण्णगी के जीवन चरित्र का वर्णन किया गया है। इसमें उनके सतीत्व और पतिव्रत्य के भारतीय नारी के आदर्शों को प्रस्तुत किया गया है। कण्णगी को महासती भी कहा गया है।
 
संक्षिप्त में जानिए 'शिलप्पदिकारम' की कथा : इस महाकाव्य में चोलों की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध कावेरी पट्टण का वर्णन है। इसमें मानायगन की इकलौती बेटी थी कण्णगी, जो माता के लाड़ प्यार में पली-बढ़ी और एक मधुर स्वभाव की सुंदरी थी। एक धनी व्यापारी माचातुवान के इकलौते बैटे कोलवन से उसका विवाह होता है। प्रतिवर्ष कावेरी पट्टण में 'इंद्रोत्सव' उत्सव धूमधाम से मनाया जाता था। इसमें एक नर्तकी माधवी आती है और कोलवन उस पर इस तरह मोहित हो जाता है कि कण्णगी को भूल जाता है।
 
कोलवन ने राजा से दोगुने मूल्य पर माधवी को खरीदकर उस पर पूर्ण अधिकार प्राप्त कर लिया। जिस के कारण वह अपनी पत्नी कण्णगी की उपेक्षा करने लगा। कण्णगी ने अपने पतिव्रत्य भाव में कोई कमी नहीं रखी पर साज-श्रृंगार करना छोड़कर एक सतिसाध्वी के रूप में रहने लगी। जब माधवी और कोलवान की पुत्री ने जन्म लिया तो कण्णगी ने ही उसका नाम अपनी कुलदेवी मणिमेखला के नाम पर रखा।
 
एक वर्ष इंद्रोत्सव में माधवी ने राजा का गुणगान कर दिया। जिससे कोलवान को ईर्ष्या हुई और उसने माधवी का त्याग कर दिया। पति की निर्धनता को देखकर कण्णगी ने उसे विवाह में माता-पिता से मिले नूपुर बेचकर मदुरै जाकर नया जीवन आरम्भ करने का कहा। कोलवन वहां जाकर भी माधवी को भूल नहीं सका। पति की व्यथा को देखकर कण्णगी ने उसे दूसरे नूपुर बेचकर पुनः माधवी और उसकी बेटी के पास जाने को कहा। कोलवान जिस सुनार के पास नूपुर बेचने पहुंचा था उसने महारानी के नूपुर चुरा लिए थे। उसने कोलवान पर चोरी का आरोप लगा दिया। सैनिक पूरे शहर में चोर को ढूंढ रहे थे। सुनार का षड़यंत्र सफल हुआ और कोलवान को पकड़कर सूर्यास्त के पहले ही बिना जांच के मृत्युदंड दे दिया गया।
 
जब कण्णगी को यह बात पता चली तो वह साक्षात काली बन गई। उसने अपने पति का कटा सिर लेकर मदुरै के राजा मंडुचेलियन के राजमहल के बाहर विलाप किया और प्रमाणित भी किया की सुनार ने उसके पति को षड़यंत्र में फंसाया गया था। इससे राजा को इतनी ग्लानि हुई कि उसने उसी समय प्राण त्याग दिए और राजा की मृत्यु के सदमे में रानी के भी प्राण निकल गए। कण्णगी ने क्रोध में यह श्राप दिया कि मूर्ख मदुरै के राजा का यह नगर जलकर भस्म हो जाएगा। यह श्राप तत्काल फलित हुआ और कुछ की क्षणों में वैभवशाली मदुरै नगर जलकर भस्म हो गया।
 
यहां से कण्णगी चेरी राज्य की राजधानी वंजीनगर पहुंची। यहां एक ऊंचे पर्वत पर एक वटवृक्ष के नीचे बैठ गई और अन्न-जल का त्याग कर दिया। उन्होंने अगले जन्म में पुनः पति पाने की कामना में प्राण त्याग दिए। महासती कण्णगी की कथा सुनकर चेरी देश की रानी चेरमा देवी ने उनकी पावन स्मृति में एक मंदिर बनवाकर कण्णगी की संगमरमर की प्रतिमा स्थापित करवाई।
 
आज भी तमिलनाडु के लोग साध्वी कण्णगी को भगवती का अवतार मानकर उनकी पूजा करते हैं।
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