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Written By ND

ककड़ी : शीतल और पाचक

ककड़ी : शीतल और पाचक -
भारत में सर्वत्र उपलब्ध होने वाली ककड़ी गर्मी के मौसम की फसल है, यह ठंडी और पाचक होती है, इसलिए यह ग्रीष्म ऋतु में प्रमुखता से उपयोग में लाई जाती है।

रेतीली और चिकनी मिट्टी इसके लिए विशेष अनुकूल होती है। इसके फल चार इंच से लेकर 15 इंच तक लंबे भी होते हैं। नरम और छोटी ककड़ी ज्यादा उपयोगी होती है।

ककड़ी मीठी, गुरु एवं रुक्षं, शीत, ग्राही तथा रुचिकारक है। कच्ची ककड़ी पित्तनाशक, शीतल, मधुर, रुचिकारक, तृप्तिदायक एवं मूत्रल है।

यह प्यास को बुझाने वाली, जलन को शांत करने वाली, उदासी, तंद्रा तथा रक्तपित्त का शमन करने वाली है। पकी ककड़ी तृषाकारक है, अग्निदीपक एवं उष्ण होती है। यह पित्तवर्द्धक है लेकिन कफ व वात का शमन करती है। ककड़ी के मूल ग्राही शीतल है।

अपच, उल्टी, दाह, मूत्रकच्छ्र, पथरी आदि रोगों में ककड़ी हितकारी है। इसका बीज शीतल, मूत्रल तथा बलकारक है। सब्जी के अतिरिक्त ककड़ी का आचार, रायता, सलाद आदि भी बनाया जा सकता है, जिन्हें हमेशा अपच की शिकायत रहती हो उन्हें ककड़ी की सलाद भोजन के साथ नियमित सेवन करना चाहिए।

गर्मी के कारण उल्टी हो रही हो तो कड़ी के बीज का गर्भ पीसकर मठ्ठे के साथ 3-4 बार सेवन कराने से लाभ होता है। कोमल ककड़ी को छीलकर नमक और काली मिर्च के चूर्ण के साथ खाने से भोजन के प्रति रुचि बढ़ती है।

* ककड़ी के बीज मस्तिष्क की गर्मी को दूर करते हैं, पुष्ट करते हैं, इसके सेवन से बौखलाहट, चिड़चिड़ापन, उन्माद आदि मानसिक विकार दूर हो जाते हैं, मस्तिष्क की गर्मी मिटाने और मस्तिष्क को ठंडक पहुंचाने के लिए ककड़ी के बीज को ठंडाई के रूप में इस्तेमाल करते है।

* ककड़ी के छोटे-छोटे टुकड़े करके उस पर शकर छिड़क कर सेवन करने से गरमी का शमन होता है। गरमी के कारण त्वचा लाल हो गई हो और उसमें जलन हो रही हो तो ककड़ी खाने तथा ककड़ी पीसकर शरीर पर लगाने से लाभ होता है।

* ककड़ी का 100 ग्राम रस प्रतिदिन पीने से भी चेहरा खिल उठेगा।

नेत्रविकार : गरमी और धूप के कारण आंखे लाल हो गई हों, उनमें जलन हो रही हो, अधिक जागने के कारण आंखों में थकावट हो तो ककड़ी को पीसकर उसका गूदा आंखों पर रखने से आराम मिलता है।

पेशाब में जलन : रुक-रुक पेशाब होती हो, पेशाब में जलन हो तो 100-100 ग्राम ककड़ी का रस 2 ग्राम धनिया का चूर्ण मिलाकर दिन में तीन बार पीएं।