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जानें क्या होती है R-value, कैसे तय की जाती है संक्रमण की रफ्तार

जानें क्या होती है R-value, कैसे तय की जाती है संक्रमण की रफ्तार - what is r value in coronavirus
कोरोना वायरस का प्रकोप अब भी जारी है। देश के कुछ राज्‍यों में मामले कम नहीं हो रहे हैं।  लगातार बढ़ रहे मामलों को देखते हुए इसे तीसरी लहर की आहट समझा जा रहा है। देश में मुंबई और केरल में कोविड के आंकड़े कम नहीं हो रहे हैं। ऐसे में टेस्टिंग के लिए केंद्र सरकार द्वारा 6 सदस्‍यों की एक टीम केरल भेजी गई है। बता दें कि केरल में आर वैल्‍यू लगातार 1.11 से अधिक बनी हुई है। गौरतलब है कि एम्‍स डायरेक्‍टर रणदीप गुलेरिया ने भी भारत में बढ़ती आर-वैल्‍यू को देखते हुए चिंता जाहिर की है।आर-वैल्‍यू का 0.96 से 1 तक जाना चिंता का विषय है। इसकी बढ़ती वैल्‍यू से संक्रमण के फैलने की संभावना बढ़ जाती है। तो आइए जानते हैं आखिर आर-वैल्‍यू क्‍या होती है और इसके घटने बढ़ने से क्‍या फर्क पड़ता है।  
 
आर - वैल्‍यू (R-value) क्‍या होता है? 
 
आर फैक्‍टर यानी रिप्रोडक्‍शन रेट। इससे यह चेक किया जाता है कि कोई एक संक्रमित व्‍यक्ति से कितने लोग इनफेक्‍ट हो रहे हैं। और आगे हो सकते हैं। आर वैल्‍यू अगर 0.95 है यानी प्रत्‍येक 100 व्‍यक्ति अन्‍य 95 अन्‍य लोगों को संक्रमित करेंगे। आर-वैल्‍यू 1.0 से कम होना यानी संक्रमित मरीजों के केस घटने के संकेत। अगर R फैक्‍टर 1.0 से अधिक है तो केस बढ़ रहे हैं। आप इस तरह भी समझ सकते हैं अगर R-Value 1 है तो 100 लोगों को इंफेक्‍ट करते हैं।  
 
R वैल्‍यू बढ़ना यानी खतरे की घंटी
 
जी हां, मार्च में R वैल्‍यू बढ़कर 1.4 हो गई थी।
9 मई 2021 में R वैल्‍यू में गिरावट आई।
15 मई से 26 जून के बीच R वैल्‍यू 0.78।
26 जनू के बाद 0.88 हो गई।
वर्तमान में R वैल्‍यू  1.01 के करीब है। इसे देखते हुए एम्‍स डायरेक्‍टर रणदीप गुलेरिया ने भी चिंता जताई है। 
 
कोरोना का डेल्‍टा वेरिएंट खतरनाक 
 
जी हां, डेल्‍टा वेरिएंट तेजी से म्‍यूटेट होने के साथ खतरनाक साबित हो रहा है। देश में करीब 1 लाख ऐसे मामले भी है जिन्‍हें कोरोना के दोनों डोज लगने के बाद भी कोविड हो रहा है। केरल राज्‍य में इस तरह के मामले भी सामने आ रहे हैं। अमेरिकी स्‍टडी में खुलासा हुआ था कि कोरोना का यह वेरिएंट चिकनपॉक्‍स की भांति तेजी से फैल सकता है। वहीं न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स में डॉक्‍युमेंट पब्लिश हुआ था। कोरोना के दूसरे वेरिएंट के मुकाबले डेल्‍टा अधिक खतरनाक बताया जा रहा है। वहीं सीडीसी के डायरेक्‍टर डॉ रोशेल पी का कहना है कि वैक्‍सीनेटेड लोगो्ं के नाक और गले में उतना ही वायरस होता है जितना टिकाकरण नहीं कराने वालों में। इस वजह से वायरस और तेजी से फैलता है।   
 
 
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