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Written By WD

मधुशाला का खुमार जारी है

मधुशाला का खुमार जारी है -
सुना है, तुम अपनी कविताओं के जरिये शराब के सेवन का प्रचार करते हो। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने इंदौर में हिंदी साहित्य के अधिवेशन के दौरान हाला और प्याला के कवि श्री हरिवंशराय बच्चन से यह सवाल किया था। गाँधीजी से किसी ने यह शिकायत की थी कि बच्चनजी अपनी चर्चित कृति 'मधुशाला' के जरिये मद्यपान का प्रचार कर रहे हैं।

उस समय बच्चनजी मधुशाला के कारण लोकप्रियता के शिखर पर थे। उनकी कविताएँ लोगों की जुबान पर चढ़ी थीं। बच्चनजी की लोकप्रियता साहित्य में कुछ वैसी ही थी, जैसी उनके बेटे अमिताभ बच्चन की फिल्मों में रही। जब गाँधीजी को मधुशाला की कविताओं का अर्थ समझाया तो गाँधीजी का भ्रम दूर हो गया। वे जान गए कि ये कविताएँ यौवन और मस्ती का प्रतीक हैं, लेकिन दुर्भाग्य है कि बच्चनजी के साहित्य के बारे में पिछले पचास साल से हिंदी के आलोचकों का भ्रम दूर नहीं हुआ है, जिसके कारण वे उन्हें बड़ा लेखक मानने को तैयार नहीं हैं।

श्री हरिवंशराय बच्चन रचनावली के संपादक एवं प्रसिद्ध हिंदी कवि अजित कुमार का कहना है कि बच्चनजी के साथ 'साहित्यिक त्रासदी' यह हुई कि वे न तो प्रगतिशीलों को पसंद आए और न प्रयोगवादियों को, जबकि उनकी 'मधुशाला' इस शताब्दी की सर्वाधिक बिकने वाली काव्य कृति है। अब तक 'मधुशाला' के पचास से अधिक संस्करण निकल चुके हैं, जबकि वह पाठ्यक्रमों में शामिल भी नहीं रही। बीसवीं सदी में हिंदी में कोई ऐसी पुस्तक नहीं है, जिसके इतने संस्करण निकले हों। प्रेमचंद का 'गोदान' पाठ्यक्रमों में रहा है।

उसके अधिक संस्करण हो सकते हैं, लेकिन देवकीनंदन खत्री की चंद्रकांता संतति के बाद 'मधुशाला' ही ऐसी कृति है, जिसने अहिंदी प्रदेश में भी लोगों के अंदर हिंदी के प्रति आकर्षण पैदा किया है। सन्‌ 1949 से बच्चनजी के व्यक्तिगत संपर्क में रह चुके श्री अजित कुमार का कहना है कि बच्चनजी हिंदी के एकमात्र ऐसे कवि हैं जो अपने पहले काव्य पाठ से हिंदी जगत में छा गए।

1935 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में जब बच्चनजी ने पहली बार मधुशाला का सार्वजनिक पाठ किया तो उन्होंने श्रोताओं का दिल जीत लिया। ऐसा ही अँगरेजी के मशहूर कवि बयास के साथ भी हुआ था। बच्चन परिवार के अत्यंत निकट रह चुके श्री कुमार ने हाल ही में राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित 'बच्चन की आत्मकथा' का संपादन भी किया है।

इसका लोकार्पण भोपाल में राष्ट्रीय पुस्तक मेले के दौरान मुख्यमंत्री श्री दिग्विजयसिंह ने किया। बच्चनजी पिछले 15 साल से सार्वजनिक जीवन से दूर हैं और एक तरह से एकांतवास में हैं। वे इस समय हिंदी के सबसे वृद्ध लेखक हैं तथा रामधारीसिंह 'दिनकर' के समकालीन रहे हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोडीमल कॉलेज में हिंदी के प्रोफेसर रह चुके श्री कुमार का कहना है कि मधुशाला के अलावा निशा नियंत्रण के गीत भी काफी लोकप्रिय रहे।

तीन पदों वाले इन गीतों की तर्ज पर कई गीतकारों ने दस हजार गीत लिखे। इससे भी बच्चनजी की लोकिप्रियता का अंदाजा लगाया जा सकता है। अमिताभ बच्चन के पिता होने के कारण साहित्य जगत के आलोचकों की उनके प्रति दिलचस्पी कम हुई है। श्री कुमार का कहना है कि बच्चनजी, आज भी लोगों से मिलना पसंद करते हैं, परंतु उनका स्वास्थ्य उन्हें इसकी इजाजत नहीं देता। उनकी स्मरण शक्ति और श्रवण शक्ति अच्छी है। वे इस उम्र में भी बिना चश्मे के पुस्तकें पढ़ लेते हैं। गत दिनों मुंबई में उनसे मुलाकात के दौरान यह देखकर अच्छा लगा कि वे अपने परिचितों को फौरन पहचान लेते हैं।

उनका जीवन अत्यंत सादा है। वे आज भी रामचरित मानस रोजाना मनोयोग से पढ़ते हैं। अपनी रचनावली की अपनी कुछ रचनाएँ पढ़ते हैं तथा टी.वी. धारावाहिक देखते हैं। अपने बेटे अमिताभ बच्चन की फिल्में जब तब देखते रहते हैं। सुबह, शाम छड़ी के सहारे किसी सेवक की मदद से टहलते हैं। घर में वे व्हील चेयर पर ही चलते हैं। बोलने में उन्हें कठिनाई होती है। इसलिए वे बोलते बहुत कम हैं पर लोगों की बातें सुनते हैं। बच्चनजी अपना जन्मदिन आज भी मनाते हैं, पर अब केवल उनके परिवार के लोग ही रहते हैं। पहले उनके जन्मदिन पर श्रीमती इंदिरा गाँधी और बाद में राजीवजी तथा सोनियाजी भी आते थे, लेकिन जब से वे मुंबई रहने लगे, तब से परिवार में ही जन्मदिन मनाते हैं।