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Written By WD Feature Desk
Last Updated : शुक्रवार, 12 अप्रैल 2024 (14:39 IST)

जलियांवाला बाग हत्याकांड दिवस, जानें कब हुआ, 10 खास बातें

Jallianwala Bagh Massacre
Jallianwala Bagh Day
 
HIGHLIGHTS
कब हुआ था जलियांवाला बाग हत्याकांड।
भारत के इतिहास में अंकित दिन।
13 अप्रैल जलियांवाला बाग हत्याकांड दिवस।
 
Jallianwala Bagh Day : ये दुखद घटना 13 अप्रैल 1919 को घटी थी, जब अमृतसर (पंजाब) में स्वर्ण मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित जलियांवाला बाग में निहत्‍थे मासूमों का कत्‍लेआम किया गया था, जिसे अंग्रेजों ने अंजाम दिया था और निहत्‍थे भारतीयों पर अंधाधुंध गोलियां चलाई थीं। अत: इसी घटना को अमृतसर हत्याकांड के रूप में जाना जाता है और इसी दिन शहिद हुए लोगों की याद में 'जलियांवाला बाग हत्याकांड दिवस' मनाया जाता है। 
 
आइए जानते हैं इस दिन के इतिहास के बारे में 10 खास बातें-
 
 • जब 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी पर्व के दिन पंजाब में अमृतसर के जलियांवाला बाग में ब्रिटिश ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर द्वारा किए गए निहत्थे मासूमों के हत्याकांड से केवल ब्रिटिश औपनिवेशिक राज की बर्बरता का ही परिचय नहीं मिलता, बल्कि इसने भारत के इतिहास की धारा को ही बदल दिया। 
 
• आजादी के आंदोलन की सफलता और बढ़ता जनआक्रोश देख ब्रिटिश राज ने दमन का यह रास्ता अपनाया था। वैसे भी 6 अप्रैल की हड़ताल की सफलता से पंजाब का प्रशासन बौखला गया। पंजाब के दो बड़े नेताओं सत्यपाल और डॉ. किचलू को गिरफ्तार कर निर्वासित कर दिया गया जिससे अमृतसर में लोगों का गुस्सा फूट पड़ा था। 
 
• जैसे ही पंजाब प्रशासन को यह खबर मिली कि 13 अप्रैल को बैसाखी के दिन आंदोलनकारी जलियांवाला बाग में जमा हो रहे हैं, तो प्रशासन ने उन्हें सबक सिखाने की ठान ली। एक दिन पहले ही मार्शल लॉ की घोषणा हो चुकी थी। पंजाब के प्रशासक ने अतिरिक्त सैनिक टुकड़ी बुलवा ली थी। ब्रिगेडियर जनरल डायर के कमान में यह टुकड़ी 11 अप्रैल की रात को अमृतसर पहुंची और अगले दिन शहर में फ्लैगमार्च भी निकाला गया। 
 
• आंदोलनकारियों के पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार बैसाखी के दिन 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक सभा रखी गई जिसमें कुछ नेता भाषण देने वाले थे, हालांकि शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था, फिर भी इसमें सैकड़ों लोग ऐसे भी थे, जो आस-पास के इलाकों से बैसाखी के मौके पर परिवार के साथ मेला देखने और शहर घूमने आए थे और सभा की खबर सुनकर वहां जा पहुंचे थे। 
 
• उस सभा के शुरू होने तक वहां 10-15 हजार लोग जमा हो गए थे। तभी इस बाग के एकमात्र रास्ते से डायर ने अपनी सैनिक टुकड़ी के साथ वहां पोजिशन ली और बिना किसी चेतावनी गोलीबारी शुरू कर दी। 
 
• जलियांवाला बाग में जमा लोगों की भीड़ पर कुल 1,650 राउंड गोलियां चलीं जिसमें सैकड़ों अहिंसक सत्याग्रही शहीद हो गए और हजारों घायल हुए। घबराहट में कई लोगबाग में बने कुएं में कूद पड़े। कुछ ही देर में जलियांवाला बाग में बूढ़ों, महिलाओं और बच्चों सहित सैकड़ों लोगों की लाशों का ढेर लग गया था। अनधिकृत आंकड़े के अनुसार यहां 1,000 से भी ज्यादा लोग मारे गए थे। इस बर्बरता ने भारत में ब्रिटिश राज की नींव हिला दी।
 
• जनरल रेजीनॉल्ड डायर ने मुख्यालय पर वापस पहुंचकर अपने वरिष्ठ अधिकारियों को सूचित किया कि उस पर भारतीयों की एक फौज ने हमला किया था जिससे बचने के लिए उसको गोलियां चलानी पड़ीं। ब्रिटिश लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ डायर ने उसके निर्णय को अनुमोदित कर दिया। इसके बाद गवर्नर माइकल ओ डायर ने अमृतसर और अन्य क्षेत्रों में मार्शल लॉ लगा दिया। 
 
• इस हत्याकांड की विश्वव्यापी निंदा हुई जिसके दबाव में सेक्रेटरी ऑफ स्टेट एडविन मॉंटेग्यू ने 1919 के अंत में इसकी जांच के लिए हंटर कमीशन नियुक्त किया। कमीशन के सामने ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर ने स्वीकार किया कि वह गोली चलाने का निर्णय पहले से ही ले चुका था और वह उन लोगों पर चलाने के लिए दो तोपें भी ले गया था, जो कि उस संकरे रास्ते से नहीं जा पाई थीं। 
 
• हंटर कमीशन की रिपोर्ट आने पर 1920 में ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर को कर्नल बना दिया गया और उसे भारत में पोस्ट न देने का निर्णय लिया गया। भारत में डायर के खिलाफ बढ़ते गुस्से के चलते उसे स्वास्थ्य कारणों के आधार पर ब्रिटेन वापस भेज दिया गया। 
 
• ब्रिटेन में हाउस ऑफ कॉमंस ने डायर के खिलाफ निंदा का प्रस्ताव पारित किया, परंतु हाउस ऑफ लॉर्ड ने इस हत्याकांड की प्रशंसा करते हुए उसका प्रशस्ति प्रस्ताव पारित किया। विश्वव्यापी निंदा के दबाव में बाद में ब्रिटिश सरकार को उसका निंदा प्रस्ताव पारित करना पड़ा और 1920 में ब्रिटिश ब्रिगेडियर जनरल डायर को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। जलियांवाला बाग हत्याकांड भारत के इतिहास में एक ऐसी बर्बरता के रूप में अंकित हैं, जिसे कभी नहीं भूला जा सकता। इसे जलियांवाला बाग नरसंहार और अमृतसर नरसंहार के रूप में भी जाना जाता है।
 
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