कैसा होगा मोदी का मीडिया से रिश्ता?
-वेबदुनिया चुनाव डेस्क
भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेन्द्र मोदी के आलोचक और प्रशंसक दोनों ही इस बात को मानते हैं कि मोदी की नेतृत्व की शैली सत्तावादी है और वे अपने हाथों में पूरी तरह से सत्ता चाहते हैं। स्नूपगेट और फर्जी मुठभेड़ मामलों की जांच करने वालों पत्रकारों को भी उनका कोपभाजन बनना पड़ा है। पार्टी संगठन में उन्होंने जिस तरह से वरिष्ठ नेताओं को हाशिए पर धकेलकर अपनी जगह बनाई है, वह सिद्ध करती है कि उन्हें सवाल उठाने वाले लोगों और खास तौर से मीडिया से कोई सहानुभूति नहीं है। मोदी के प्रशंसक भी कहते हैं कि 'हमें इस देश में थोड़े से अधिनायकवाद की जरूरत है।' (जोकि बुद्धिजीवियों के लिए भारी आपत्तिजनक बात हो सकती है लेकिन आम आदमी को इन बातों से कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है)। मोदी का साक्षात्कार लेने के बाद समाज विज्ञानी आशीष नंदी ने अपनी राय में कहा है कि सत्तावादी व्यक्तित्व पर जो मानदंड स्थापित किए गए हैं, मोदी लगभग उन सभी पर खरे उतरते हैं। वे कहते हैं कि उनमें भावनात्मक जीवन की संकीर्णता, संयमित कठोरता, अस्वीकृति और अपने ही जुनून के डर से हिंसा की कल्पनाओं के साथ बड़े पैमाने पर अहंकार की रक्षा करने का प्रयास साफ-साफ दिखाई देता है।विकीलीक्स वेबसाइट ने मोदी के नेतृत्व पर अमेरिकी दूतावास की टिप्पणियों में कहा गया है कि कुल मिलाकर वह अकेले चलने वाले, विश्वासी व्यक्ति हैं जो कि सहयोग और सहमति की बजाय डरा-धमका कर अपना काम कराना पसंद करते हैं। वह रूखे हैं और दूसरों को नीचा दिखाते हैं और उच्च स्तरीय पार्टी अधिकारियों के प्रति भी कई बार अपशब्दों का इस्तेमाल करते हैं।' इसलिए देश और विदेश में सवाल उठाए जा रहे हैं कि क्या ऐसा व्यक्ति देश में स्वतंत्र मीडिया को पचा सकता है? क्या वे अपनी आलोचनाओं को सहन कर सकेंगे? उनको लेकर कई ऐसे उदाहरण बताए जाते हैं जिनके चलते पत्रकारों को अपने काम से हाथ धोना पड़ा या उन्हें अपमानित भी होना पड़ा है। उनके कारण द हिंदू के सम्पादक रहे सिद्धार्थ वरदराजन को अपना पद छोड़ना पड़ा था। एक वरिष्ठ गुजराती पत्रकार आकार पटेल भी उनसे कई बार मिल चुके हैं और उन्हें अच्छी तरह से जानते हैं। उनका कहना है कि मोदी का 'सख्त और अनुशासित व्यक्तित्व' है और वे करिश्माई और मेहनती भी हैं। साथ में, वे आशंकित रहते हैं और अविश्वासी भी हैं। वे सिर्फ उन्हीं के साथ काम करना पसंद करते हैं जो कि उनकी सर्वोच्चता को स्वीकार को स्वीकार कर लें। पटेल लिखते हैं कि उन्हें विधानमंडल से घृणा है और अल्पसंख्यकों के अधिकार उनकी समझ में नहीं आते हैं। वे अपने आप को एक मसीहा के तौर पर देखते हैं और वे अगर प्रधानमंत्री बन गए तो वे केवल खुशामदी और चमचों को ही अपने पास रखेंगे। ज्यादातर लोगों को उनके शब्दों में अहंकार और आशंका ज्यादा स्पष्ट नजर आती है, लेकिन इसका यह अर्थ भी नहीं है कि उनमें सिर्फ खामियां ही खामियां हैं। हो सकता है कि मोदी मीडिया को लेकर सख्त रहे हों, लेकिन वे यह भी कहते हैं कि मुश्किल काम के लिए ही भगवान ने उन्हें चुना है। वे सोलह घंटे काम करते हैं तो फिर भी कहा जा सकता है कि वह 18 घंटे काम क्यों नहीं करता? वे मानते हैं कि लोगों की मोदी से उम्मीदें बहुत अधिक हैं। उर्दू साप्तहिक नई दुनिया के साथ एक इंटरव्यू में मोदी ने यह भी कहा था कि मीडिया ने मेरे खिलाफ झूठ फैलाने का ठेका लिया है। चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने छप्पन इंच की छाती के बारे में बोला था। पर गुजरात हिंसा के पीड़ितों के बारे में उनका यह भी कहना था कि अगर कोई कुत्ते का बच्चा भी आपकी कार के नीचे आकर मारा जाता है तो आपको दुख होता है।इसलिए यह भी नहीं कहा जा सकता कि उनमें भावनाओं और संवेदनाओं का अभाव है। उनके बारे में जो भी बातें आती हैं वे अतिरंजित ज्यादा प्रतीत होती हैं। मीडिया को भी यह नहीं भूलना चाहिए कि गुजरात दंगों के बाद उसने मोदी का राक्षसीकरण करने में कोई कसर नहीं रखी जबकि यही मीडिया 1984 के सिखों के नरसंहार पर उतना नहीं बोलता और लिखता है। जबकि गुजरात दंगों के मामलों की जांच हुई, मुकदमे चले, लोगों को सजा हुई और उनके खिलाफ एसआईटी ने जांच रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में रखी लेकिन सुप्रीम कोर्ट को भी दंगों में मोदी की संलिप्तता का कोई संकेत नहीं मिला। लेकिन अगर देसी, विदेशी मीडिया और कथित तौर पर धर्मनिरपेक्ष बुद्धिजीवियों को इस देश में छूट नहीं होती तो क्या वे मोदी के खिलाफ इतना कुछ भी लिख पाते? बुद्धिजीवियों के साथ दिक्कत यह होती है कि उनमें भी एक अलग किस्म का बौद्धिक अहंकार होता है कि लोग उन्हें महान मानें और सम्मान दें। अगर मोदी जैसे नेताओं में कमियां हैं तो मीडिया से जुड़े लोगों में भी कमियां नहीं होती हैं, ऐसा नहीं है।हमें याद रखना चाहिए कि बड़ी गलतियां करना केवल बड़े लोगों द्वारा ही संभव हैं, छोटी बुद्धिवाले लोग तो ऐसी गलतियां करने की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। मोदी की गलतियां बताने से, उन पर उंगलियां उठाने भर से मीडिया के दायित्वों की पूर्ति नहीं हो जाती है, उसे भी अपनी निष्पक्षता और ईमानदारी के शीर्ष मानदंड रखने चाहिए।