शुक्रवार, 8 नवंबर 2024
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Written By अनिरुद्ध जोशी

विनायक कैसे बन गए गजानन, जानिए

Ganesh Chaturthi | विनायक कैसे बन गए गजानन, जानिए
भगवान गणेशजी को हिन्दू धर्म में प्रथम पूज्य देवता माना जाता है। उनके संबंध में कई कथाएं प्रचलित हैं तरंतु उनकी मस्तक कथा पर सभी सवाल उठाते हैं कि यह कैसे संबंध हो सकता है कि मानव के किसी बालक पर हाथी के बच्चे का कम से कम 250 किलो का सिर लगा दिया? आओ जानते हैं इस संबंध में कुछ खास।
 
कहते हैं कि भगवान गणेशजी का मस्तक या सिर कटने के पूर्व उनका नाम विनायक था। परंतु जब उनका मस्तक काटा गया और फिर उसे पर हाथी का मस्तक लगाया गया तो सभी उन्हें गजानन या गणेश कहने लगे। 
 
1. एक कथा के अनुसार शनि की दृष्टि पड़ने से शिशु गणेश का सिर जलकर भस्म हो गया था। इस पर दु:खी पार्वती (सती नहीं) से ब्रह्मा ने कहा- 'जिसका सिर सर्वप्रथम मिले उसे गणेश के सिर पर लगा दो।' पहला सिर हाथी के बच्चे का ही मिला। इस प्रकार गणेश 'गजानन' बन गए।
 
2. दूसरी कथा के अनुसार गणेशजी को द्वार पर बिठाकर पार्वतीजी स्नान करने लगीं। इतने में शिव आए और पार्वती के भवन में प्रवेश करने लगे। गणेशजी ने जब उन्हें रोका तो क्रुद्ध शिव ने उनका सिर काट दिया। इन गणेशजी की उत्पत्ति पार्वतीजी ने चंदन के मिश्रण से की थी। जब पार्वतीजी ने देखा कि उनके बेटे का सिर काट दिया गया तो वे क्रोधित हो उठीं। उनके क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शिव ने एक हाथी के बच्चे का सिर गणेशजी के सिर पर लगा दिया और वह जी उठा।- स्कंद पुराण
 
प्रश्न : क्या भगवान शंकर को नहीं मालूम था कि पार्वतजी जी ने गणेशजी को द्वार पर अपना पुत्र बनाकर पहरा देने के लिए खड़ा किया था? वे तो अंतरयामी हैं तो फिर उन्होंने अनजाने में उनकी गर्दन काट दी और फिर जब उन्हें मालूम पड़ा तो उन्होंने उस पर हाथी की गर्दन जोड़ दी? किसी मानव की भी जोड़ सकते थे। जब शिव यह नहीं जान सके कि यह मेरा पुत्र है तो फिर वह कैसे भगवान?
 
उत्तर : कुछ विधर्मी या नास्तिक लोग इस तरह का प्रश्न करके हिन्दुओं के मन में भगवान शिव के प्रति भ्रम और संदेह डालना चाहते हैं। सचमुच यह कथा किस तरह की रही होगी यह तो कोई नहीं जानता, क्योंकि पुराणों में भी इसको लेकर भिन्न भिन्न कथाएं प्रचलित हैं। कुछ कहते हैं कि उन्होंने कि गज का नहीं अपने ही एक गण का सिर काटकर लगा दिया था इसलिए वे गणपति कहलाए। खैर जो भी हो सिर तो लगाया था।...उपरोक्ति प्रश्न के और भी कई जवाब हो सकते हैं लेकिन यहां मात्र यही एक तर्क प्रस्तुत है।
 
इसका जवाब है कि भगवान शिव के संपूर्ण चरित्र को पढ़ना जरूरी है। उनके जीवन को लीला क्यों कहा जाता है? लीला उसे कहते हैं जिसमें उन्हें सबकुछ मालूम रहता है फिर भी वे अनजान बनकर जीवन के इस खेल को सामान्य मानव की तरह खेलते हैं। लीला का अर्थ नाटक या कहानी नहीं। एक ऐसा घटनाक्रम जिसकी रचना स्वयं प्रभु ही करते हैं और फिर उसमें इन्वॉल्व होते हैं। वे अपने भविष्य के घटनाक्रमों को खुद ही संचालित करते हैं। दरअसल, भविष्य में होने वाली घटनाओं को अपने तरह से घटाने की कला ही लीला है। यदि भगवान शिव ऐसा नहीं करते तो आज गणेश प्रथम पुज्यनीय देव न होते और न उनकी गणना देवों में होती।
 
विशेष दार्शनिक क्षेत्रों में माना जाता है कि लीला ऐसी वृत्ति है जिसका आनन्द प्राप्ति के सिवा और कोई अभिप्राय नहीं। इसीलिए कहते हैं सृष्टि और प्रलय सब ईश्वर की लीला ही है। अवतार धारण करने पर इस लोक में आकर भगवान् जो कृत्य करते हैं, उन सब की गिनती भी लीलाओं में ही होती है। लोक व्यवहार में वे सब कृत्य जो भगवान् के किसी अवतार के कार्यों के अनुकरण पर अभिनय या नाटक के रूप में लोगों को दिखाए जाते हैं।
 
भगवान राम को सभी कुछ मालूम था कि क्या घटनाक्रम होने वाला है। उन्हें मालूम था कि मृग के रूप में आया यह राक्षस कौन है। लेकिन सीता ने उनकी नहीं मानी और तब उन्होंने लक्ष्मण को सीता के पहरे के लिए छोड़ कर मृग के पीछे चले गए।
 
इसी तरह भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि तू किसी को नहीं मार रहा है। यह सब पहले से ही मेरे द्वारा मारे जा चुके हैं। अब तो यह बस खेल है। बर्बरिक से जब महाभारत का वर्णन पूछा गया तो उसने कहा कि मुझे तो दोनों ही ओर से श्रीकृष्ण ही यौद्धाओं को मारते हुए नजर आ रहे थे।
 
इस धरती पर भगवान का अवतार किसी न किसी कारण से होता है। उन सभी कारण के पीछे मानव जाती को संदेश देना भी होता है। यदि प्रभु श्रीकृष्ण किसी भी प्रकार का कौतुक नहीं रचते तो लोग उन्हें श्रीकृष्ण के रूप में कभी भी नहीं पहचान पाते। सभी अवतारों में सबसे ज्यादा लीला रचने में श्रीकृष्ण ही माहिर रहे हैं। जय गणेश।