भगवान श्री गणेश की पूजा के बिना हिंदू धर्म में कोई भी पूजा पूरी नहीं मानी जाती। गणेशोत्सव के दिनों में इन आरतियों से करें भगवान श्री गणेश को प्रसन्न। यहां आपके लिए प्रस्तुत हैं गणेश जी की 3 विशेष आरतियां...
				  																	
									  
	
	1. श्री गणेश की आरती : जय गणेश जय गणेश
	 
	Aarti- Jai Ganesh Jai Ganesh
				  
	 
	जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा
	माता जाकी पार्वती पिता महादेवा ॥ जय...
				  						
						
																							
									  
	 
	एक दंत दयावंत चार भुजा धारी।
	माथे सिंदूर सोहे मूसे की सवारी ॥ जय...
				  																													
								 
 
 
  
														
																		 							
																		
									  
	 
	अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।
	बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥ जय...
				  																	
									  
	 
	हार चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा।
	लड्डुअन का भोग लगे संत करें सेवा ॥ जय...
				  																	
									  
	 
	दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।
	कामना को पूर्ण करो जाऊं बलिहारी॥ जय...
				  																	
									  
	 
	
	2. श्री गणेश की आरती : सुखकर्ता दुखहर्ता
	 
	आरती
				  																	
									  
	 
	सुखकर्ता दुखहर्ता वार्ता विघ्नाची।
	नुरवी पुरवी प्रेम कृपा जयाची।
				  																	
									  
	सर्वांगी सुंदर उटी शेंदुराची।
	कंठी झळके माळ मुक्ताफळांची॥
	 
				  																	
									  
	जय देव जय देव जय मंगलमूर्ति।
	दर्शनमात्रे मन कामनापूर्ति॥ जय देव...
				  																	
									  
	 
	रत्नखचित फरा तूज गौरीकुमरा।
	चंदनाची उटी कुंकुमकेशरा।
				  																	
									  
	हिरेजड़ित मुकुट शोभतो बरा।
	रुणझुणती नूपुरे चरणी घागरिया॥ जय देव...
				  																	
									  
	 
	लंबोदर पीतांबर फणीवर बंधना।
	सरळ सोंड वक्रतुंड त्रिनयना।
				  																	
									  
	दास रामाचा वाट पाहे सदना।
	संकष्टी पावावें, निर्वाणी रक्षावे,
	सुरवरवंदना॥ 
				  																	
									  
	जय देव जय देव जय मंगलमूर्ति।
	दर्शनमात्रे मन कामनापूर्ति॥ जय देव...
				  																	
									  
	
	
	3. श्री गणेश की आरती- शेंदुर लाल चढ़ायो
	 
	गणेश आरती - 
				  																	
									  
	 
	शेंदुर लाल चढ़ायो अच्छा गजमुखको।
	 
	दोंदिल लाल बिराजे सुत गौरिहरको।
				  																	
									  
	 
	हाथ लिए गुडलद्दु सांई सुरवरको।
	 
	महिमा कहे न जाय लागत हूं पादको ॥1॥
				  																	
									  
	 
	जय जय श्री गणराज विद्या सुखदाता।
	 
	धन्य तुम्हारा दर्शन मेरा मन रमता ॥धृ॥
				  																	
									  
	 
	अष्टौ सिद्धि दासी संकटको बैरि।
	 
	विघ्नविनाशन मंगल मूरत अधिकारी।
				  																	
									  
	 
	कोटीसूरजप्रकाश ऐबी छबि तेरी।
	 
	गंडस्थलमदमस्तक झूले शशिबिहारि ॥2॥
				  																	
									  
	 
	जय जय श्री गणराज विद्या सुखदाता।
	 
	धन्य तुम्हारा दर्शन मेरा मन रमता ॥
				  																	
									  
	 
	भावभगत से कोई शरणागत आवे।
	 
	संतत संपत सबही भरपूर पावे।
				  																	
									  
	 
	ऐसे तुम महाराज मोको अति भावे।
	 
	गोसावीनंदन निशिदिन गुन गावे ॥3॥
				  																	
									  
	 
	जय जय श्री गणराज विद्या सुखदाता।
	 
	धन्य तुम्हारा दर्शन मेरा मन रमता ॥