- प्रस्तुति : डॉ. मनस्वी श्रीविद्यालंकार
समयावधि - लगभग 15 मिनट
भाग-1 पूजन हेतु विधि एवं निर्देशन
1. भाषा- यहाँ पर सरल हिन्दी भाषा में भगवान श्री गणेश की संक्षिप्त पूजन विधि दी जा रही है।
2. अवधि- निम्नांकित विधि से पूजन करने में अनुमानित समय 15 मिनट लगेगा। जिन व्यक्तियों के पास समयाभाव है अथवा बड़ी पूजा करने की इच्छा नहीं है, संस्कृत का ज्ञान नहीं है, वे व्यक्ति इस विधि से लाभ उठा सकते हैं।
3. विधि व निर्देशन- श्री गणेशजी की नवीन प्रतिमा जो आप गणेश चतुर्थी की पुण्य बेला में आज ही लाए हैं, उस प्रतिमा को स्थापित करने एवं प्रतिमा का पूजन करने हेतु हिन्दी भाषा में विधि, निर्देशन व मंत्रों के भावार्थ हिन्दी में प्रस्तुत किए जा रहे हैं, जिससे संस्कृत बोलने में आने वाली कठिनाई को दूर किया जा सके।
4. पूजन सामग्री- पूजन सामग्री का विवरण पृथक बॉक्स में दिया गया है, वहाँ से विवरण प्राप्त करें। पूजन सामग्री हेतु घर से लगने वाला सामान एवं बाजार से खरीदे जाने वाले सामान की सूची दो भागों में विभक्त करके दी गई है ताकि सुविधा रहे।
5. मुहूर्त- मुहूर्त की तालिका पृथक से दी गई है, कृपया वहाँ देखें।
6. वस्त्र- पूजन शुरू करने से पूर्व स्नान करके नवीन अथवा साफ धुले हुए, बिना कटे-फटे वस्त्र पहनना चाहिए।
7. तिलक- माथे पर टीकी (तिलक) लगाकर पूजन करना चाहिए।
8. दिशा- दिन में पूर्व दिशा की ओर मुँह करके एवं सायंकाल पश्चात उत्तर दिशा की ओर मुँह करके पूजन करना चाहिए।
9. मूर्ति संख्या- घर में श्री गणेश की दो से अधिक प्रतिमाएँ नहीं रखना चाहिए।
10. परिक्रमा- श्री गणेश की सदैव एक ही परिक्रमा की जाती है, अधिक नहीं।
11. आसन- कुशा के आसन अथवा लाल ऊनी आसन पर बैठकर पूजन करना चाहिए। कटे-फटे हुए, टूटे आसन, कपड़े के आसन अथवा पत्थर के आसन पर बैठकर पूजन नहीं करना चाहिए।
12. पूजन सामग्री- पूजन शुरू करने के पूर्व पूजा की सामग्री अपने पास ही रखें, शुद्ध जल किसी पवित्र बर्तन में भरकर रखें।
13. वस्त्र- हाथ पोंछने के लिए साफ कपड़ा भी अपने पास रखें, पहने हुए वस्त्र से हाथ नहीं पोंछने चाहिए।
14. मूर्ति स्थापना- पूजन शुरू करने के पूर्व श्री गणेश की प्रतिमा किसी लकड़ी के पाटे पर अथवा किसी भी धान्य जैसे गेहूँ, मूँग, ज्वार आदि पर नया लाल वस्त्र बिछाकर उस पर स्थापित करें।
भाग-2 पूजन प्रारंभ
पूजनकर्ता व्यक्ति प्रत्येक क्रिया के साथ दिए गए हिन्दी दिशा-निर्देशन को पढ़कर, अनुसरण करें। प्रत्येक क्रिया की जानकारी के साथ निर्देशन उल्लेखित है।
पूजा में सरलता, सहजता हेतु संपूर्ण पूजन विधि को दो-तीन बार (पूजन प्रारंभ करने के पूर्व ही) केवल पढ़कर समझ लेने से आप श्री गणेश पूजन का संपूर्ण आनंद ले सकेंगे।
दीपक पूजन
विधि व निर्देशन-किसी भी दीपक पात्र में घी भरकर रूई की बत्ती रखें। दीपक जलाकर हाथ धो लें। अक्षत बिछाकर दीपक रखें।
(हाथ में पुष्प की पंखुरियाँ लेकर निम्न मंत्र बोलें)-
मंत्र- 'हे दीप देवी! आप मुझे सदैव शुभता प्रदान करें। जब तक यह पूजन चलता रहे, आप शांत एवं सुस्थिर प्रज्ज्वलित होती रहें।'
(पंखुरियाँ दीपक के नीचे की ओर चढ़ा दें)
पवित्रकरण (मार्जन)
विधि व निर्देशन- पूजन प्रारंभ करने के पूर्व स्वयं एवं पूजन सामग्रियों को पवित्र करने के लिए यह मंत्र बोला जाता है।
इस हेतु पूजनकर्ता अपने दाहिने हाथ में जल पात्र लेकर बाएँ हाथ की हथेली में जल भर लें एवं दाहिने हाथ की अनामिका उँगली व आसपास की उँगलियों से निम्न मंत्र बोलते हुए स्वयं के ऊपर एवं पूजन सामग्रियों पर जल छिड़कें-
मंत्र- 'भगवान श्री पुण्डरीकाक्ष का नाम उच्चारण करने मात्र से पवित्र अथवा अपवित्र किसी भी अवस्था में स्थित मनुष्य भीतर एवं बाहर दोनों ही ओर से पवित्रता को प्राप्त कर लेता है।
भगवान पुण्डरीकाक्ष मुझे उक्त पवित्रता प्रदान करें। पुनः उक्त पवित्रता प्रदान करें। पुनः उक्त पवित्रता प्रदान करें।'
आसन पूजा
विधि एवं निर्देशन- जिस आसन पर बैठकर पूजन शुरू किया जाता है, उसकी शुद्धि की जाती है।
मंत्र- 'हे माता पृथ्वी! आपने समस्त लोकों को धारण किया हुआ है, भगवान विष्णु को भी धारण किया हुआ है, इसी तरह आप मुझे धारण करें व इस आसन को पवित्र करें।'
(आसन पर जल के छींटे दें।
स्वस्ति वाचन
विधि व निर्देशन- शुभता और शांति के लिए यह मंत्र बोले जाते हैं।
मंत्र-'द्युलोक मुझे शांति प्रदान करें, अंतरिक्ष मुझे शांति प्रदान करें, पृथ्वी शांति प्रदान करें, जल शांति प्रदान करें, औषधियाँ शांति प्रदान करें, विश्वेदेवा शांति प्रदान करें। जो शांति परब्रह्म से विस्तार पाकर सर्वत्र फैलती है, वह शांति मुझे प्राप्त हो।'
'कोटि सूर्य के समान महातेजस्वी, विशालकाय गणपतिदेव! जिनकी सूँड टेढ़ी है, वे सदा सब कार्यों में मेरे विघ्नों का निवारण करें।'
हे नारायणी! आप सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली हैं। हे त्रिनेत्रधारी मंङलदायिनी देवी! आप सब पुरुषों को सिद्धि देने वाली हैं, मैं आपकी शरण लेता हूँ। आपको नमस्कार है।
'त्रिभुवन के स्वामी तीनों देव- ब्रह्मा, विष्णु, महेश आरंभ किए जाने वाले सभी कार्यों में हमें सिद्धि प्रदान करें।'
संकल्प
हाथ में जल लेकर बोलें- गणेश चतुर्थी की इस शुभ पुण्य बेला में भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी के शुभ अवसर पर श्रीमन् महागणपति देवता की प्रसन्नतार्थ पूजन करता हूँ।
श्री गणेश पूजन प्रारंभ
भगवान श्री गणेश का ध्यान
विधि एवं निर्देशन- ध्यान बोलकर प्रणाम किया जाता है।
ध्यान मंत्र-'सृष्टि के प्रारंभकाल में जो प्रकट हुए हैं, जो इस जगत के परमकारण हैं, परम पुरुष गणेशजी की चार भुजाएँ हैं, वे गजवदन होने से उनके दोनों कान शूर्प आकार के हैं, उनका केवल एक दाँत है। वे लम्बोदर हैं, उनका वर्ण लाल है। उन्हें लाल रंग के वस्त्र, चंदन और पुष्प प्रिय हैं। उनके चार हाथ हैं, एक हाथ में पाश, दूसरे में अंकुश, तीसरे में वरद मुद्रा, चौथे में अभय मुद्रा के साथ मोदक धारण किए हुए हैं।उनके ध्वज पर उनके वाहन मूषकराज का चिह्न अंकित है। श्रीगणेश का जो व्यक्ति नित्य ध्यान करता है वह योगीत्व को प्राप्त करता है।'
हे गणनाथ! आपको प्रणाम है।
आवाहन व प्रतिष्ठापन
विधि व निर्देशन- हाथ में अक्षत लेकर निम्न मंत्र बोलते हुए अक्षत (चावल) अर्पित किए जाते हैं।
मंत्र-'ॐ हे गणपति! सिद्धि बुद्धि सहित पधारकर यहाँ प्रतिष्ठित हो जाइए।'
स्नान
विधि व निर्देशन- पहले जल से, फिर पंचामृत से और पुनः शुद्ध जल से स्नान कराया जाता है। इसे क्रमशः स्नानीय समर्पण, पंचामृत समर्पण, शुद्धोदक स्नान कहते हैं।
विशेष- जब श्री गणेश विग्रह (मूर्ति) मृत्तिका अर्थात मिट्टी की हो तो एक पूजा की सुपारी पर श्री गणेशजी की भावना करके यह स्नान कराया जाता है। मूर्ति पर केवल कुछ छींटे डाले जाते हैं। सुपारी को तश्तरी में रखकर निम्न क्रिया करें-
मंत्र -स्नानीय समर्पण (शुद्ध जल से स्नान)- 'हे देव! गंगाजी का जल, जो सर्वपाप को हरने वाला और शुभ है, आपके स्नान हेतु प्रस्तुत किया गया है, आप इसे स्वीकार करें।'
पंचामृत स्नान (पंचामृत से स्नान)-
'हे प्रभो! दूध, दही, घी, मधु और शर्करा के मिश्रण से तैयार यह पंचामृत प्रस्तुत है, आप स्नान के लिए इसे ग्रहण करें।
शुद्धदोदक स्नान (पुनः शुद्ध जल से स्नान)-
'हे प्रभो! इस शुद्ध जल के रूप में गंगा, यमुना सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु, कावेरी और गोदावरी उपस्थित हैं, स्नान के लिए आप यह जलग्रहण करें।'
ॐ सिद्धि बुद्धि सहित महागणपति को नमस्कार है, स्नान समर्पित है।
(स्नान के पश्चात् शुद्ध वस्त्र से सुपारी अथवा गणेश विग्रह (मूर्ति) को पोंछकर पुनः पाटे पर स्थापित कर दें।)
वस्त्र एवं उपवस्त्र
विधि व निर्देशन-वस्त्र एवं उपवस्त्र दो वस्त्र अर्पित किए जाते हैं। वस्त्र एवं उपवस्त्र के अभाव में उनके स्थान पर नाड़ा देवता को अर्पित किया जाता है।
मंत्र-'हे देव! सर्दी, हवा और गर्मी से बचाने वाला, लज्जा का उत्तम रक्षक यह वस्त्र आपकी सेवा में अर्पित है, आप कृपया इसे स्वीकार करें एवं मुझे शांति प्रदान करें।'
ॐ सिद्धि बुद्धि सहित महागणपति को नमस्कार है। वस्त्र समर्पित है।
उपवस्त्र समर्पण- 'हे प्रभो! नाना प्रकार के चित्र, बेल-बूटों से सुशोभित यह उत्तम उत्तरीय वस्त्र आपको समर्पित है, आप इसे ग्रहण करें एवं मु्झे सफलता प्रदान करें।'
ॐ सिद्धि बुद्धि सहित महागणपति को नमस्कार है। वस्त्र समर्पित है।
गंध, सिंदूर, दूर्वांकुर, पुष्प एवं पुष्पमाला
विधि व निर्देशन- भगवान गणपति को रक्त चंदन ही अर्पित किया जाता है।
निम्न वाक्य बोलकर गंध, सिंदूर व दूर्वांकुर अर्पित करें-
मंत्र-
चंदन अर्पण-
ॐ सिद्धि- बुद्धि सहित महागणपति आपको नमस्कार है। यह चंदन आपको अर्पित है।
(उक्त मंत्र बोलकर चंदन विलेपित करें।)
सिन्दूर अर्पण-
ॐ सिद्धि बुद्धि सहित महागणपति आपको नमस्कार है, यह सिंदूर आपको अर्पित है।
(उक्त मंत्र बोलकर सिंदूर अर्पित करें।)
दूर्वांकुर अर्पण-
ॐ सिद्धि बुद्धि सहित महागणपति आपको नमस्कार है। दूर्वांकुर आपको अर्पित है।
(दूर्वांकुर अर्पित करें।)
पुष्प एवं पुष्पमाला अर्पण-
ॐ सिद्धि बुद्धि सहित महागणपति आपको नमस्कार है। पुष्प एवं पुष्पमाला आपको अर्पित है।
(उक्त मंत्र बोलकर पुष्प एवं पुष्पमाला अर्पित करें।)
सुगंधित धूप
विधि व निर्देशन- पूजन में मनमोहक सुगंध वाली धूपबत्ती ही जलाना चाहिए।
धूपबत्ती जलाकर धूप आघ्रापित करें।
मंत्र- 'उत्तम गंधरूप वनस्पति के रस से प्रकट यह धूप, जो कि समस्त देवताओं के सूँघने योग्य है, हे प्रभो! यह आपकी सेवा में अर्पित है। आप इसे ग्रहण करें।'
ॐ सिद्धि बुद्धि महागणपति को नमस्कार है। मैं आपको धूप आघ्रापित करता हूँ। आप स्वीकार करें।
(उक्त मंत्र बोलकर धूप आघ्रापित करें।)
दीपदर्शन
विधि एवं निर्देशन- इस हेतु एक पृथक दीपक जलाकर हाथ धो लें।
मंत्र- हे देवेश! रूई की बत्ती से युक्त अग्नि से प्रज्ज्वलित यह दीपक आपकी सेवा में अर्पित है, यह त्रेलोक्य के अंधकार को दूर करने वाला है। हे दीप ज्योतिर्मय देव! हे परमात्मा स्वरूप मेरे इष्ट गणनाथ! मैं आपको यह दीप अर्पित करता हूँ। हे नाथ! आप मुझे नरकतुल्य घोर यातनाओं से बचाइए। मेरे पापों को क्षमा कीजिए।'
ॐ सिद्धि बुद्धि सहित महागणपति को नमस्कार, मैं आपको दीप प्रदर्शित करता हूँ।
(उक्त मंत्र बोलकर दीपक का प्रकाश श्री गणेश की ओर प्रदर्शित करें।) (हाथ धो लें)।
नैवेद्य निवेदन
विधि एवं निर्देशन- श्री गणेश को मोदक सर्वाधिक प्रिय हैं। अतः विभिन्न प्रकार के मोदक, विभिन्न मिठाइयाँ, गुड़ एवं ऋतुफल जैसे- केला, सेवफल, चीकू आदि का नैवेद्य यथाशक्ति अर्पित करना चाहिए।
मंत्र- 'हे देव! खाँड, शकर आदि से तैयार किए गए खाद्य पदार्थ, दही, दूध, घी तथा भक्ष्य व भोज्य-योग्य विभिन्न आहार नैवेद्य के रूप में प्रस्तुत हैं। आप कृपापूर्वक इन्हें स्वीकार कीजिए।'
'हे देव! आप यह नैवेद्य ग्रहण करें और आपके प्रति मेरी भक्ति को अविचल कीजिए। मुझे मनोवांछित वर प्रदान कीजिए। मुझे परलोक में परम गति प्रदान कीजिए।'
'ॐ सिद्ध बुद्धि सहित महागणपति आपको नमस्कार है। नैवेद्य के रूप में मोदक व ऋतु फल आदि अर्पित है।'
'आचमन हेतु, हस्त प्रक्षालन हेतु जल अर्पित करता हूँ।' (जल छोड़ें)
दक्षिणा एवं नारियल (श्रीफल)
विधि व निर्देशन-एक श्रीफल (नारियल) एवं नकद दक्षिणा (यथाशक्ति) इष्ट देवता को अर्पित की जाती है। (निम्न वाक्य बोलकर दक्षिणा व नारियल अर्पित करें)-
ॐ सिद्धि बुद्धि सहित महागणपति आपको नमस्कार है। श्रीफल एवं द्रव्य दक्षिणा आपको अर्पित है।
आरती
विधि व निर्देशन- कपूर के साथ घी में डूबी हुई एक, तीन या इससे अधिक बत्तियाँ जलाकर आरती की जाती है।
ॐ सिद्धि बुद्धि सहित महागणपति आपको नमस्कार है।
कर्पूर नीराजन आपको समर्पित है।
(हाथ जोड़कर प्रणाम करें, आरती लेने के पश्चात हाथ अवश्य धोएँ)
पुष्पाँजलि
विधि व निर्देशन- हाथ में पुष्प अथवा पुष्पों की पंखुरी लेकर निम्न मंत्र बोलकर पुष्प ( अथवा पुष्प-पंखुरी) देवता के चरणों में समर्पित करते हैं।
(निम्न वाक्य बोलकर पुष्पाँजलि अर्पित करें)-
ॐ सिद्धि बुद्धि सहित महागणपति आपको नमस्कार है। यह मंत्र पुष्पाँजलि आपको अर्पित है।
प्रदक्षिणा
(निम्न मंत्र बोलने के बाद एक परिक्रमा करें)-
मंत्र- 'मनुष्य द्वारा जाने अथवा अनजाने में जो कोई पाप किए गए हों वे परिक्रमा करते समय पद-पद पर नष्ट हो जाते हैं।
ॐ सिद्धि बुद्धि सहित महागणपति आपको नमस्कार है। प्रदक्षिणा आपको अर्पित है।
प्रार्थना व क्षमा प्रार्थना
प्रार्थना- 'हे विघ्नेश्वर गणनाथ! आप विघ्नों पर शासन करने वाले हैं। वर प्रदाता हैं, देवताओं के प्रिय हैं, संपूर्ण जगत के हितैषी हैं, गजानन हैं।
'हे विनायक! आप ज्ञानस्वरूप मुनियों के ध्येय तथा गुणातीत हैं, आपको नमस्कार है, नमस्कार है। बारंबार नमस्कार है।'
'हे देव! आप सदा मेरे समस्त कार्यों में विघ्न का निवारण करें।'
क्षमा प्रार्थना-
पूजन में जाने-अनजाने, भूल, प्रमाद, आलस्य, विधि की जानकरी के अभाव इत्यादि से जो त्रुटि हो जाती है, उसके लिए क्षमा प्रार्थना की जाती है। इस हेतु हाथ जोड़कर निम्न मंत्र बोलें-
मंत्र-'हे प्रभो! न मुझे भक्ति का ज्ञान है न मंत्र का। अहो! न मुझे स्तुति का ज्ञान है न आवाहन का। स्वभाव से भी मैं आलसी हूँ, नाना प्रकार की पूजन सामग्रियों से कभी विधिपूर्वक आपकी पूजा भी मुझसे न हो सकी।'
'हे नाथ! ज्ञान अथवा अज्ञान से यथाशक्ति जो भी आपका पूजन किया है, कृपा करके उसे परिपूर्ण पूजन के रूप में ग्रहण करना एवं मेरी त्रुटियों को क्षमा करना। मेरे इस पूजन से हे सर्वात्मा गणपति! आप मुझ पर प्रसन्न रहें।'
प्रणाम एवं पूजा समर्पण
विधि एवं निर्देशन- पूजा के अंत में साष्टांग प्रणाम करना चाहिए एवं पूजन कर्म परमेश्वर को समर्पित करना चाहिए।
(पहले साष्टांग प्रणाम करें, पश्चात हाथ में जल लेकर निम्न मंत्र बोलकर हाथ का जल पात्र में छोड़ दें)-
मंत्र-'इस न्यून अथवा अधिक पूजन से सिद्धि बुद्धि सहित महागणपति संतुष्ट हों। इस पूजन पर उनका स्वत्व है, मेरा नहीं।'