• Webdunia Deals
  1. मनोरंजन
  2. गुदगुदी
  3. दद्दू का दरबार
  4. budget 2016

आम बजट 2016 पर दद्दू की नजर...

आम बजट 2016 पर दद्दू की नजर... - budget 2016
प्रश्न : दद्दू, वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा प्रस्तुत मोदी सरकार का आम बजट 2016 शेयर बाजार को रास नहीं आया और सेंसैक्स गिर गया। आप क्या कहेंगे इस बारे में? 

उत्तर : अब शेयर बाजार का क्या? वह तो जब तब कहीं भी कैसे भी ठोकर खाकर गिरता-पड़ता और उठता रहता है। पता नहीं बजट बनाने वालों की मंशा में यह बात शामिल थी भी या नहीं कि वह बाजार को पसंद आए। आमतौर पर बाजार को जो बजट पसंद आता है, वह गरीब हितकारी कम और अमीर हितकारी अधिक समझा जाता है। 
 
प्रश्न : दद्दू, अच्छे बजट का आपका पैमाना क्या है? 
 
उत्तर : सबसे अच्छा बजट वही जो विपक्ष मन भाए। जाहिर है ऐसा बजट कभी बन ही नहीं सकता है। 
 
प्रश्न : दद्दू, बजट में दस हजार किलोमीटर के नए हाईवे का प्रावधान रखा गया है। पता लग जाए कि किधर से निकलेगा तो अपन उसके आसपास की जमीन ले लें। वारे न्यारे हो जाएंगे। 
 
उत्तर : हाईवे कहां से निकलेगा ये बात सिर्फ संबंधित नेताओं को पता होती है और वारे न्यारे करने का अवसर उन्हीं के पास सुरक्षित होते हैं। बजट को आम कहा जाता है पर उसकी मलाई खास लोगों के पास अधिक जाती है। जिस तरह विश्वविद्यालय नकल रोकने के लिए एक से अधिक प्रश्नपत्र निकाल कर अंतिम समय में फैसला करते हैं कि असल में कौन-सा प्रश्न पत्र वितरित होगा, उसी तर्ज पर दद्दू की मांग है कि प्रस्तावित हाईवे के एक से अधिक अलग-अलग रूट तय किए जाएं तथा लॉटरी के आधार पर उनमें से किसी एक रूट को चुना जाए, ताकि वारे-न्यारे खेल को रोका जा सकें। 
 
प्रश्न : वित्त मंत्री जी ने आय कर में छूट की दरों में कोई बदलाव नहीं किया, बताएं क्यों? 
 
उत्तर : देखिए उनके सामने कोई विकल्प ही नहीं था। दरों में छूट का विकल्प उन्होंने चुनावी वर्ष के लिए सुरक्षित रख छोड़ा होगा और दर बढ़ाने पर कर दाता जेएनयू मामले से भी अधिक हंगामा खड़ा कर देते। 
 
प्रश्न : दद्दू, घोषणा है कि मजदूरों के काम के घंटे और छुट्टियां तय की जाएंगी। 
 
उत्तर : देखिए देश में एक मजदूर वर्ग ही है जिसके काम के घंटे और छुट्टियां तय हैं। जब उसकी मर्जी होती है वह काम पर आता है, जब मर्जी हो नहीं आता है। राखी, होली, दिवाली, दशहरा, ईद जैसे हर त्योहार पर वह बिना नागा मनचाही छुट्टियां मार लेता है। सरकार को चाहिए था कि पढ़े लिखे इंजीनियर, डॉक्टर, वकील, सीए, कलेक्टर, पुलिस, पटवारी जैसे प्रोफेश्नल्स के काम के घंटे और छुट्टियों के बारे में सोचे। एक बार जरा जीवन में झांक कर देखें कि देश की अर्थव्यवस्था में बढ़ोतरी के लक्ष्य को पाने के लिए कैसे ये लोग दिन-रात काम में लगे रहते हैं। 
 
प्रश्न : दद्दू, घोषणा है कि परमिट राज खत्म किया जाएगा। क्या यह सम्भव हो पाएगा? 
 
उत्तर : देखिए परमिट राज खत्म हो गया तो परहित राज आ जाएगा। अब देश में सरकार कांग्रेस की हो, भाजपा की हो या तीसरे मोर्चे की इस बात में हमेशा ही संशय बना रहेगा कि क्या सरकार वाकई में परहित राज लाना चाहती है। उम्मीद की किरण बस प्रधानमंत्री मोदीजी से है, बशर्ते उनके सिपाहसालार दिल से उनका साथ दें। 
 
प्रश्न : दद्दू, आम दुकानदार भी माल की तरह अपनी दुकान सप्ताह के सातों दिन खोल सकेंगे। आप क्या कहेंगे इस बारे में ? 
 
उत्तर : देखिए यह एक स्वागत योग्य कदम है। इससे पहले कि इस विसंगति की ओर विपक्ष का ध्यान जाता और वे सरकार को आम दुकानदारों के प्रति असहिष्णुता का आरोप लगा पाते, चतुर वित्तमंत्रीजी ने समय पर उचित कदम उठा लिया। दूसरे इस निर्णय से बिखरते परिवारों को संबल मिलेगा। अब सातों दिन दुकान खोलनी है और अपना व्यक्तिगत काम करना, घूमना फिरना, परिवार को घुमाना, ब्याह शादी में जाना हो तो दुकान संभालने के लिए कोई भाई, भतीजा, पिताजी या ताऊ तो चाहिए होगा न। 
 
प्रश्न : दद्दू, वित्त मंत्री जी ने आधा प्रतिशत टैक्स बढ़ाकर एक तरह से सभी चीजें महंगी कर दी हैं। क्या यही है अच्छे दिनों की शुरुआत? 
 
उत्तर : देखिए वित्त मंत्री का काम वित्त कमाना है, वित्त गंवाना नहीं। फिर अधिक सर्विस टैक्स के मायने आप अधिक और बेहतर सर्विस क्यों नहीं समझते।