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Written By WD

कहाँ गए वो दोस्त?

फ्रेंडशिप डे

कहाँ गए वो दोस्त? -
अनुराग तागड़
WDWD
फ्रेंडशिप डे का प्रचलन हम गत कुछ वर्षों से देख रहे हैं, परंतु भारतीय संस्कृति में दोस्ती के उदाहरण भगवान और भक्त के बीच के भी हैं और सामान्य लोगों के भी हैं। दरअसल हमें दोस्ती में निहित संस्कारों की घुट्टी घर से ही मिलती है और संस्कारों से सींची गहरी दोस्ती को ही हम कृष्ण व सुदामा के बीच के संबंधों के रूप में देखते हैं, जहाँ दोस्त के गरीबी में लिपटे आत्मसम्मान की रक्षा भी होती है और दोस्त की मजबूरियों को जानने के लिए शब्दों की जरूरत भी नहीं होती है।

दरअसल दोस्त दो लोग अपनी मर्जी से चुनते हैं और यह रिश्ता और किसी संबंध में नहीं है। रिश्तेदारी और पति-पत्नी के संबंध में भी कहीं लिहाज आ जाता है, लेकिन दोस्ती बेलाग है, बेलौस है।

हितोपदेश की कहानियाँ हों या फिर बड़े-बुजुर्गों से सुनी कहानियाँ हों, भारतीय संस्कृति में दो व्यक्तियों के बीच की दोस्ती को देखने का नजरिया भी काफी अलग है। हम दोस्ती को पाक नजरों से देखते हैं और दोस्ती में निहित आपसी समझ का सम्मान करना भी जानते हैं।

इंटरनेट पर चैटिंग करते हुए अपने दोस्तों से अपनी ही भाषा में हाय-हलो करते हुए आज के किशोर व युवा अपनी दोस्ती को परवान चढ़ाते नजर आते हैं। एसएमएस की भाषा में जकड़ी दोस्ती मल्टीप्लेक्स में फिल्म देखने, मोटरसाइकल पर शहर की सड़कों को नापने में, नोट्स आदान-प्रदान करने में व पुरानी जींस व गिटार जैसे गीत सुनते हुए कब खत्म हो जाती है, पता ही नहीं चलता।

दोस्ती में निहित सौंधेपन की खुशबू कहीं गुम होती नजर आ रही है। आधुनिक जीवनशैली के ताने-बाने में दोस्ती स्वार्थ के तराजू में तौलकर देखी जाने लगी है और नफे और नुकसान के अनुसार दोस्ती बनाई या बिगाड़ी जा रही है। बच्चों में भी इस प्रकार की आदतें देखने में आ रही हैं, क्योंकि अब दोस्ती के आड़े वीडियो गेम्स, टेलीविजन, गैजेट्स आ गए हैं।

विश्वास, संबल, सहारा, सचाई, भरोसे के नाजुक बंधन को तोड़कर दोस्ती ने विजिटिंग कार्ड के सहारे अपने आप में फैलाव बहुत कर लिया है, पर क्या इसे दोस्ती कहेंगे? दोस्ती का मतलब अपने मित्र की अच्छाई व बुराई दोनों को अंगीकार करना होता है, पर वर्तमान में दोस्ती का मतलब केवल मतलब से होता है। फ्रेंडशिप डे पर गुलाब के पीले फूल, कार्ड, ई-मेल व एसएमएस करना आधुनिक समाज की आवश्यक बुराई में शामिल हो सकता है, पर इससे दोस्ती और गाढ़ी होने की कोई गारंटी बिलकुल भी नहीं है।

दोस्ती, परिस्थितिवश या शर्तों के पैमाने में बँधकर नहीं होती है। दोस्ती प्रकृति प्रदत्त व अनमोल तोहफा होता है, जिस पर दो व्यक्तियों के विश्वास की मुहर अनजाने में लगती है और भरोसे का साथ पाकर वह परवान चढ़ती है। दोस्ती धर्म, जात-पाँत, अमीरी-गरीबी, उम्र के आडंबरों को नहीं मानती, बल्कि सुख व दुःख में दोस्त का हाथ दोस्त के कंधे पर माँगती है। दोस्ती विपरीत परिस्थितियों में समय, काल का भान न देखकर मदद के लिए आगे बढ़ने की शर्त रखती है और दोस्ती परीक्षाकाल बहुत छोटा होता है और जिंदगी में केवल एक ही बार होता है। परीक्षा में पास हो गए तब और भी परीक्षाओं के दौर आते रहेंगे, परंतु अगर फेल हो गए तब दोस्ती बड़ी जालिम होती है। वह अकेला छोड़ देती है।

दोस्ती को परिभाषाओं से सख्त नफरत है। वह बंधनमुक्त होकर उन्मुक्त तरीके से दो व्यक्तियों के बीच उड़ना चाहती है। उसे शरीर से नहीं, मन से लगाव है। मन की भाषा बोलने वाली दोस्ती को आधुनिक समाज ने 19 तरीकों में बाँट जरूर लिया है, पर दोस्ती के इन तरीकों में एक भी बचपन व जवानी के दिनों की यादों से नहीं महकते, बल्कि इन तरीकों में स्वार्थ कूट-कूट कर भरा हुआ नजर आता है। दोस्ती तो एक साथ पतंग उड़ाने, गिल्ली-डंडा खेलने व चोरी के अमरूद तोड़ने के मजे में कहीं छुपकर बैठी होती है, जिसे समय अपनी आग में तपाकर जवाँ करता है। दोस्ती अगर जवाँ हो जाए, तब वह बूढ़ी नहीं होती, बल्कि व्यक्ति के बुढ़ापे में भी वह जवाँ रहती है।

दोस्ती में आई कम
फ्रेंडशिप डे मनाने का इतिहास काफी ज्यादा पुराना नहीं है। अमेरिका में वर्ष 1935 से दोस्ती को वर्षभर में एक बार याद किया जाने लगा। इस दिन उपहारों से दोस्ती के बंधन को अगले वर्ष तक के लिए जारी रखने के लिए बाध्यता होने लगी और सिलसिला जारी रहा। फ्रेंडशिप डे मनाने की परंपरा को देखकर एकबारगी मन में यह जरूर लगता है कि शायद अमेरिका में लोगों के बीच दोस्ती काफी गाढ़ी होती होगी।

अमेरिकन सोश्यलॉजिकल रिव्यू द्वारा किए गए एक सर्वे में यह बात सामने आई है कि अमेरिकियों में अकेलेपन की भावना बढ़ती ही जा रही है। सर्वे में यह भी पाया गया कि टेक्नोलॉजी के ज्यादा प्रयोग से यह स्थिति उत्पन्न हुई है। अमेरिका में व्यक्ति मदद के लिए भी इंटरनेट का सहारा ले रहा है। अत्यधिक व्यस्त होने के कारण अमेरिकियों का सामाजीकरण के प्रति ध्यान नहीं जाता, परिणामस्वरूप 25 प्रतिशत अमेरिकियों के कोई दोस्त ही नहीं हैं।