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सुंदरवन में मानव व प्रकृति का संघर्ष

सुंदरवन में मानव व प्रकृति का संघर्ष -
- दीपक रस्तोगी
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दुनिया के सबसे बड़े संरक्षित नदी डेल्टा वन क्षेत्र सुंदरवन शायद प्रकृति और मानव के अनवरत संघर्ष का सबसे बड़ा उदाहरण भी है। इस संघर्ष में प्रकृति और वन संपदा को पहुँच रही क्षति की चिंता कौन करे, जब खुद के अस्तित्व पर बन आए।

कड़ी मेहनत कर जीने वाले लोग यहाँ जीवन-यापन के लिए वही कुछ कर रहे हैं जो सैकड़ों साल से उनके पूर्वज करते आए हैं- मछली पकड़ना, कुछ बो-उगा लेना, जंगल में शिकार और मधु की तलाश और जरूरत पड़े तो स्थानीय सूदखोरों से कर्ज लेना। बाघ और समुद्र के बचने और लड़ने की जुगाड़ सोचने में दिन गुजर जाता है। बची-खुची तकदीर पर हर साल आने वाला चक्रवाती तूफान पानी फेर जाता है।

सुंदरवन के लगभग 110 छोटे-बड़े द्वीपों (59 रिहाइशी और 54 संरक्षित) पर रह रही आबादी के लिए कभी कुछ भी नहीं बदला। बदली हैं तो परिस्थितियां जो दिन बीतने के साथ-साथ संघर्ष बढ़ाती चली गई हैं। यहां आदमजात जंगल में रहने वाली पांच सौ अन्य प्रजातियों के साथ अस्तित्व के लिए संघर्ष में जुटी रहती है लेकिन कठिन जीवन के बीच भी वह मुस्कराने का मौका खोज लेते हैं।

भरी दोपहरी में किसी का दरवाजा खटखटाइए तो लोग पानी का गिलास जरूर पूछेंगे। वही पानी जो सुंदरवन में बड़े कष्ट से मिलता है।
सुंदरवन के द्वीपों पर मोबाइल फोन कंपनियाँ पहुँच गई हैं लेकिन बिजली विभाग नहीं। लोगों के एक हाथ में अगर मोबाइल है तो दूसरे में टार्च क्योंकि गांवों में भीतर तक बिजली के पोल नहीं पहुँचे हैं। लोग बैटरी की दुकानों में मोबाइल चार्ज करा लेते हैं। मछली और केकड़ा पकड़ने में बाघ के शिकार हुए परिजनों की कहानी हर घर में है क्योंकि जीविका का दूसरा कोई साधन नहीं है।

बेनीपहेली गाँव के पालेन नैया को याद है कि कैसे उनकी पत्नी को बाघ उठा ले गया उनकी आंखों के सामने। उसने एक और केकड़ा पकड़ने का लालच किया था। वे कहते हैं, 'मछली और केकड़ा पकड़ने के लिए इस द्वीप से उस द्वीप नाव लेकर घूमने के अलावा जीविका की कोई वैकल्पिक व्यवस्था ही नहीं है। यहाँ के विभिन्न द्वीपों पर बाघ द्वारा मार डाले गए लोगों की विधवाओं की संख्या २२ हजार आँकी गई है।

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बासंती का जेलेपाड़ा गाँव तो विधवाओं का ही गाँव है। इनके बारे में 1990 में पता चला जब पत्रकारों के साथ गई पुलिस की एक गश्ती टीम ने बड़ी सी नाव में सफेद साड़ी पहने कई महिलाओं को जाते देखा था। ऐसी महिलाओं की मदद के लिए काम करने वाली संस्था 'ऐक्यतान संघ' के सचिव दिनेश दास के अनुसार, 'राज्य सरकार से इन्हें ढाई सौ रुपए की मदद मिलती है लेकिन वह भी तब, जब मारे गए व्यक्ति के शव की फोटो जमा कराई जाती है। जिनके घरवालों को बाघ जंगल में खींच ले गया, उन्हें तो यह भी नसीब नहीं।'

इसके अलावा मधु संचय का काम है, जिसके लिए घने जंगलों में घुसना ही पड़ता है। एक बार कोई बाघ की चपेट में आ जाए तो वह लड़ाई कर सकता है लेकिन अगर मधु संचय के लिए कोई सूदखोरों के चंगुल में आ जाए तो भगवान ही मालिक। यहां के सूदखोर स्थानीय लोगों से 40 रुपए किलो के हिसाब से मधु खरीदते हैं जो बाजार में 110 रुपए किलो बिकता है। वही मधु जिसे संग्रह करने में न जाने कितने बाघ का शिकार हो गए और जिसकी खोज में न जाने कितनी बार स्थानीय लोगों ने प्रकृति की सीमा-रेखा का लंघन किया।

रिहाइशी इलाकों में खेती की जमीन खारा पानी के चलते चौपट हो रही है। इस कारण वन क्षेत्र को काटने की समस्या बढ़ी है। जहां खारे पानी की समस्या नहीं है, वहां समुद्री और डेल्टा का पानी जमीन लील रहा है। जाधवपुर विश्वविद्यालय के समुद्र विज्ञानी सुगत हाजरा द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, 'पिछले 30 वर्षों में सुंदरवन इलाके की 31 वर्ग मील जमीन समुद्र में लुप्त हो गई है।

जलवायु परिवर्तन के चलते पारिस्थितिकी पर यह संकट है। छह सौ परिवार विस्थापित हुए हैं। बढ़ता समुद्र और जंगल की अंधाधुंध कटाई पर अंकुश न होने के चलते यह नौबत आई है। पर्यावरण से जुड़े ये सवाल स्थानीय लोगों की जीविका से जुड़े हैं। पारिस्थितिकी में तेजी से परिवर्तन आ रहा है। जंगल की हरियाली कम हो रही है और सुंदरवन को नाम देने वाले सुंदरी के वृक्ष काटे जा रहे हैं।

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हेताल (एलीफैंट ग्रास) काटे जा रहे हैं, जिनके बीच रॉयल बंगाल टाइगर घर की तरह महसूस करता है। एलीफैंट ग्रास (स्थानीय बोलचाल की भाषा में होगला) के पत्ते ठीक बाघ की पीठ पर बनी धारियों की तरह होती हैं। वहाँ छुपना बाघ के लिए मुफीद रहता है । दूसरे, खेती-बाड़ी, मछली-झींगा पालन और मधु संचय के लिए जमीन चाहिए, जो संरक्षित घोषित वन से छीने जा रहे हैं।

वन विभाग के शूटर सुब्रत पाल चौधरी के अनुसार, 'अपनी रक्षा के लिए बाघ लोगों पर हमला करता है। आबादी का अतिक्रमण अघोषित रूप से वन क्षेत्र में हो रहा है। ऐसे में जब डेल्टा क्षेत्र में बाढ़ आती है, बाघ और बच्चे बहकर किनारे आ जाते हैं और फिर आसपास के गाँवों में जा छुपते हैं। दूसरी वजह, स्थानीय लोगों द्वारा शिकार के कारण जंगल में बाघ का भोजन कम हो रहा है। हिरण और जंगली सूअर काफी कम गए हैं।

वन विभाग के आँकड़ों के अनुसार वर्ष 2006 के बाद से बाघों के घुस आने की कुल 32 घटनाएँ रिकॉर्ड की गई हैं, जिनमें 30 बाघों को वापस जंगल में छोड़ दिया गया। खासकर गंगा के डेल्टा-सुंदरवन के पश्चिम बंगाल वाले हिस्से में। बांग्लादेश का हिस्सा भी ऐसी घटनाओं से अछूता नहीं। बांग्लादेश में तो हर साल लगभग 20 लोग रॉयल बंगाल टाइगर का शिकार बनते हैं। आइए जाने, हर साल आने वाला चक्रवात सुंदरवन में कैसे बदला लेता है। पिछले साल के चक्रवाती तूफान आइला और वर्ष 2004 में आई सुनामी- जैसे दो बड़े तूफानों से लगभग छह लाख हेक्टेयर वाला सुंदरवन का एक-चौथाई वन नष्ट हो गया।

कुल तीन हजार पाँच सौ किलोमीटर का क्षेत्र बांधों के टूटने से प्रभावित हुआ। इसमें 815 किलोमीटर बांध था। बंगाल के जल संसाधन विभाग की रिपोर्ट के अनुसार छह लाख से ज्यादा लोग पलायन कर चुके हैं। पाथरप्रतिमा, हिंगलगंज, गोसामा जैसे इलाकों में तो न मिट्टी बची है और न बाँस। इस मामले में सरकार के पास कोई प्लान भी नहीं है। विशेषज्ञों की राय में अनाप-शनाप तरीके से काम कराने और भ्रष्टाचार के चलते हजारों निरीह लोगों को प्रकृति के तांडव के आगे बेसहारा छोड़ दिया जाता है।

कोलकाता विश्वविद्यालय से रिटायर हुए समुद्र विज्ञानी तुषार कांजीलाल के अनुसार, 'राज्य में कभी इस बारे में समीक्षा नहीं की गई कि तटबंधों की स्थिति क्या है। 19 ब्लॉकों में कुल 110 द्वीप हैं, जहाँ बांधों की नियमित समीक्षा जरूरी थी।' कांजीलाल के अनुसार तटबंध के आगे पानी घुसने के लिए रिंग बनाने की जरूरत होती है, जिसे कहीं नहीं किया गया। रिंग में ज्वार का पानी घुसता है और डेल्टा क्षेत्र में बंटी नदी की धाराओं के साथ निकल जाता है लेकिन जमीनें हड़पने के खेल में सुरक्षा नियमों को ताक पर रखा जाता रहा है।