फैशन में लौटा चालीस का दौर
सादगी से भरा, सम्मोहित करता सौंदर्य। ऐसा लगता है मानो प्रकृति ने खिलखिलाहट भरी हँसी से सारा समाँ गुलजार कर दिया है। अरे...रे...शब्दों की इस बाजीगरी से लगता है जैसे यहाँ भी उस मीठी और भीनी मुस्कुराहट ने जादू कर दिया है, जो रतजपट पर अपनी उपस्थिति से लोगों के होश गुम कर दिया करती थी। ये थीं मधुबाला, नर्गिस, मीनाकुमारी, सुरैया जैसी नैचुरल ब्यूटी से लकदक अदाकाराएँ। थोड़ी रंगीन थोड़ी ड्यू टोन जमाने की फिल्मों की ये नायिकाएँ आज भी सदाबहार हैं। शायद इसीलिए उनका सौंदर्य फिर से फैशन की दुनिया में नजर आने लगा है। जी हाँ, चालीस के दशक की हेयर स्टाइल, सीमित मेकअप, पहनावा और एसेसरीज ने फैशन डिजायनर्स और समूचे फैशन वर्ल्ड को अपनी ओर लुभा लिया है। यह आकर्षण अब चलन में आ गया है।सीमित संसाधनों के उस युग में जब मेकअप तथा सुंदरता बढ़ाने के तमाम साधन बेहद कम हुआ करते थे, तब भी इन नायिकाओं का सौंदर्य मंत्रमुग्ध कर डालता था। उन्हें न तो प्लास्टिक सर्जरी की जरूरत पड़ती थी न ही किसी वेट लूजिंग प्रोग्राम या डायटिंग की। इसके अलावा तकनीकी रूप से सौंदर्य निखारने वाले कैमरों के बारे में भी उस समय तो कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। फिर भी उनके चेरी जैसे रंग में रंगे होंठ (तब लिपस्टिक के बहुत कम शेड्स उपलब्ध थे, और आज जितनी वैरायटीज भी नहीं हुआ करती थीं), हल्के से मसकारे और पतले लाइनर से सजी हिरणी जैसी चपल आँखें, कमान जैसी तीखी आईब्रोज तथा हवा में उड़ते घुँघराले बाल लोगों के मन में बस जाते थे। खैर... तो 40 के दशक का वह लुक अब फिर से फैशन जगत में लौटा है। फोर्टीज के उस लुक को पाने के लिए पिछले दिनों मेकअप आर्टिस्ट तथा स्टाइलिस्ट ने कुछ ऐसे ही प्रयोगों को नए चेहरों के साथ प्रस्तुत किया। इसमें बालों के छोटे-छोटे घूँघर चेहरे पर लाते हुए सजाए गए। बेस मेकअप के साथ ग्लॉसी लिपस्टिक का रेड, चैरी, महोगनी या ब्राउन-रेड शेड (चेहरे की रंगत के हिसाब से), साथ ही होंठों के उभार के लिए क्रीमी लिपस्टिक का प्रयोग किया गया। ऊपरी होंठ पर लिक्विड जैल लाइनर का प्रयोग किया गया। आईब्रोज को थोड़ा मोटा तथा प्राकृतिक लेकिन पॉलिश्ड रखकर आँखों पर लाइनर की पतली रेखा तथा पलकों पर मसकारा उपयोग में लाया गया। थोड़ा ड्रामा एड करने के लिए पैरों पर कलर्ड आई पेंसिल से कलाकारी की गई। इसके अतिरिक्त बड़े नगीनों वाली अँगूठियाँ, पुराने तरह के गाउन्स तथा हेयर बैंड्स, पर्स, सैंडिल्स तथा बैलीज आदि से सजाकर मॉडल्स को प्रस्तुत किया गया। इस पूरे प्रयोजन साथ प्रयोग करने वालों का कहना था- यह महिलाओं को संपूर्णता से दर्शाता स्टाइल है। आखिर हर समय की सुंदरता के मधुबाला, नर्गिस, मीनाकुमारी, सुरैया जैसी नैचुरल ब्यूटी से लकदक अदाकाराएँ। थोड़ी रंगीन थोड़ी ड्यू टोन जमाने की फिल्मों की ये नायिकाएँ आज भी सदाबहार हैं
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प्रतिमान अपनी जगह महत्व रखते हैं। हम महिलाओं को उनके हर गुण, उनकी आंतरिक शक्ति, उनके प्रेम करने की भावना और सबसे बढ़कर उनके नारीत्व को दर्शाना चाहते थे। हाँ, तब से अब तक कॉस्मेटिक्स के क्षेत्र में जो बदलाव आए वो अपनी जगह हैं। अब हमारे पास ढेर सारे विकल्प हैं। बालों को घुँघराला बनाने के लिए डिजिटल कर्लिंग आयरन्स हैं, ढेर सारे हेयर जैल्स, बॉडी और लेग शाइन, आई लाइनर, आई शैडो, लिपस्टिक तथा मस्कारा की कई वैरायटीज हैं। इस लिहाज से यह काम थोड़ा आसान हो गया। जिस तरह रीमिक्सेस तथा हिपहॉप के तमाम भारतीय संस्करणों के बीच भी आज लता-रफी तथा आशा-किशोर के नगमे लोगों के दिलों में बसे हुए हैं, उसी तरह मधुबाला की कालजयी मुस्कान भी आपको पोस्टर्स से लेकर कंप्यूटर स्क्रीन तक पर वॉलपेपर के रूप में सजी हुई मिल जाएगी। शायद एक यही कारण है कि फैशन की दुनिया फिर पुरानी कहानी के पात्रों को नए नामों के साथ प्रस्तुत करते हुए उसी नशीली अदा के साथ कहना चाह रही है 'आइए मेहरबाँ...।' तो अब जब कभी भी आपको मेकओवर का ख्याल आए, एक बार मधुबाला के उस शोख अदाओं से लबरेज पोस्टर पर नजर जरूर मार लीजिएगा।