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Written By WD

शाहरुख खान : प्रोफाइल

Shahrukh Khan Profile | शाहरुख खान : प्रोफाइल
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शाहरुख खान एक भारतीय फिल्म और टीवी अभिनेता हैं जिन्हें अनौपचारिक रूप से एसआरके के नाम से भी कहा जाता है। उन्हें बादशाह ऑफ बॉलीवुड, किंग खान, किंग ऑफ रोमांस और किंग ऑफ बॉलीवुड भी कहा जाता है। उन्होंने 75 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया है। उन्होंने चौदह बार फिल्म फेयर पुरस्कार और आठ बार फिल्मफेयर बेस्ट एक्टर पुरस्कार जीता है। उन्हें भारतीय सिनेमा के एक महानतम और सर्वाधिक प्रभावशाली कलाकारों में गिना जाता है।

अर्थशास्त्र से बी.ए. की उपाधि हासिल करने के बाद शाहरुख ने अस्सी के दशक के आखिरी वर्षों में थिएटर और टीवी सीरियल्स में काम करना शुरू किया था। 1992 में उनकी पहली फिल्म 'दीवाना' आई। शुरुआत में उन्होंने 'डर', 'बाजीगर' और 'अंजाम' में गैर परम्परागत चयन करके नकारात्मक छवि वाली भूमिकाएं की।

1995 में उनकी 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' आई और फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। दिल तो पागल है, कुछ कुछ होता है, परदेस, चक दे इंडिया और माई नेम इज खान और जब तक है जान जैसी फिल्मों में काम किया जोकि बहुत लोकप्रिय हुईं।

वे एक प्रोडक्शन कंपनी ड्रीम्ज अ‍नलिमिटेड के सीईओ और मोशन पिक्चर प्रोडक्शन तथा डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी ‍रेड चिल्लीज इंटरटेनमेंट के सह अध्यक्ष भी हैं। उनका एक एनीमेशन स्टूडियो रेड चिल्लीज वीएफएक्स भी है। वे आईपीएल की एक टीम कोलकाता नाइट राइडर्स के सह-स्वामी भी हैं।

वे स्टार प्लस के गेम शो कौन बनेगा करोड़पति को होस्ट कर चुके हैं। वे अभिनेता के साथ साथ स्टेज परफॉर्मर और अवार्ड सेरेमनी होस्ट भी हैं। विज्ञापन की दुनिया में उन्हें ब्रांड एसआरके के नाम से जाना जाता है। वे धर्मार्थ कार्यों से भी जुड़े हैं।

शाहरुख का जन्म दो नवंबर, 1965 में नई दिल्ली के एक मुस्लिम दम्पति के घर हुआ था। उनके पिता ताज मोहम्मद पठान पेशावर से थे और उन्होंने देश के स्वतंत्रता संग्राम में भी हिस्सा लिया था। उनकी मां जंजुआ राजपूत कुनबे के सैन्य अधिकारी मेजर जनरल शाह नवाज खान की दत्तक पुत्री थी।

उनके पिता देश का विभाजन होने से पहले पेशावर के किस्सा ख्वानी बाजार से दिल्ली आ गए थे। जब शाहरुख 15 वर्ष के थे तब उनके पिता का कैंसर से निधन हो गया था। उनकी मां का 1990 में लम्बी बीमारी के बाद इंतकाल हो गया। उनकी एक बड़ी बहन शहनाज हैं।

दिल्ली के राजेन्द्र नगर में पले बढ़े शाहरुख ने सेंट कोलम्बस स्कूल से शिक्षा पाई थी। बाद में, हंसराज कॉलेज से उन्होंने अर्थशास्त्र में स्नातक डिग्री हासिल की। मास्टर डिग्री के लिए उन्होंने जामिया मिलिया इस्लामिया में मास कम्युनिकेशन में दाखिला लिया, लेकिन इसे छोड़ दिया।

उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) में भी पढ़ाई की। अपनी मां के निधन के बाद खान 1991 में मुंबई में आ गए और यहां उन्होंने हिंदू परम्परागत तरीके से हिंदू लड़की गौरी छिब्बर से विवाह किया। उनके दो बच्चे हैं। एक बेटा आर्यन और बेटी सुहाना है। उनके बच्चे दोनों ही धर्मों को मानते हैं।

'फौजी' नाम के टेली सीरियल से वे टीवी में आए और उन्होंने 'सर्कस' में भी काम किया। उनकी पहली फिल्म दीवाना थी जिसमें वे ऋषि कपूर और दिव्या भारती के साथ थे। इसके बाद उनकी कई फिल्में आईं, लेकिन उन्हें असली पहचान 1995 में आई 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएगे' से मिली जिसने आय और लोकप्रियता के बहुत सारे रिकॉर्ड तोड़े। बाक्स ऑफिस पर ऐसी ही सफलता हासिल करने वाली उनकी फिल्म 'करण अर्जुन' थी। बाद में उन्होंने यश चोपड़ा, आदित्य चोपड़ा और करण जौहर के साथ रोमांटिक फिल्में बनाईं।

वर्ष 1998 से 2002 के दौरान उन्हें अपनी फिल्मों से अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि और सम्मान मिला। 'कुछ कुछ होता है' उनकी एक ऐसी ही फिल्म है। शाहरुख ने 'हे राम', 'मोहब्बतें', 'कभी खुशी कभी गम', 'देवदास' जैसी फिल्में की।

बाद में वे बीमारियों से भी बहुत परेशान रहे और रीढ़ की हड्‍डी का इलाज उन्हें लंदन में करवाना पड़ा। घुटने की तकलीफ भी उन्हें रही पर वे 'देवदास', 'चलते चलते', 'कल हो ना हो' के लिए काम करते रहे। शारीरिक बीमारियों पर किसी तरह काबू पाने के बाद उन्होंने 'मैं हूं ना', 'वीर जारा', 'स्वदेश', 'पहेली', 'डॉन' और अन्य फिल्मों में अभिनय किया।

उनके दोस्त ‍और फिल्मकार करण जौहर की 'कभी अलविदा ना कहना' के बाद उन्होंने 'चक दे इंडिया', 'ओम शांति ओम', 'माइ नेम इज खान', 'रब ने बना दी जोड़ी' जैसी फिल्में बनाईं। उन्होंने एक महत्वाकांक्षी फिल्म 'रा.वन' बनाई जो कि अपने समय की सबसे महंगी फिल्म थी। उनकी आखिरी महत्वपूर्ण फिल्म 'जब तक है जान' है जो कि यश चोपड़ा जैसे निर्देशक की आखिरी फिल्म साबित हुई।

शाहरुख अपने स्तर पर सामाजिक और परोपकार के कामों में योगदान करते हैं और वे मानते हैं कि उन्हें ऐसा करते समय प्रचार से पूरी तरह दूर रहना चाहिए। उनका मुंबई के नानावती अस्पताल में बच्चों के वार्ड को बनवाने में योगदान रहा है।

वे एड्‍स और कैंसर पीड़ितों की भी मदद करते हैं। दुर्घटनाओं, त्रासदियों के साथ ही वे विभिन्न सरकारी प्रचार अभियानों के ब्रांड एम्बेसैडर भी हैं। गैर फिल्मी कामों के अलावा वे बहुत सारे विज्ञापनों में भी काम करते हैं और उन्हें एसआरके ब्रांड के नाम से जाना जाता है।