सोमवार, 28 अप्रैल 2025
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Written By समय ताम्रकर

द लंचबॉक्स : फिल्म समीक्षा

द लंचबॉक्स
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खतों के आदान-प्रदान से उपजी प्रेम कथा पर आधारित कुछ फिल्में बॉलीवुड में पहले भी बनी है। ‘सिर्फ तुम’ और ‘माय जापानीज वाइफ’ जैसे कुछ ताजे उदाहरण हैं। ईमेल और एसएमएस के युग में चिट्ठियों के जरिये प्रेम करने की बात फिल्म ‘द लंचबॉक्स’ में इसलिए विश्वसनीय लगती है क्योंकि अभी भी उन लोगों की संख्या ज्यादा है जो इंटरनेट की दुनिया से भलीभांति परिचित नहीं हैं।

‘द लंचबॉक्स’ के मुख्य किरदारों में एक मिडिल एज की गृहिणी इला और रिटायरमेंट की दहलीज पर खड़ा साजन फर्नांडिस हैं और इसी इसी उम्र और वर्ग के ज्यादातर लोग ईमेल और एसएमएस जैसी सुविधाओं का उपयोग बहुत कम करते हैं।

मुंबई में डब्बावाले (लंचबॉक्स बांटने वाले) डिलीवरी में कभी गलती नहीं करते हैं, लेकिन एक गलत डिलीवरी से इला और साजन में एक मधुर में एक मधुर रिश्ता पनपता है। फिल्म में एक डब्बा वाला कहता है कि इंग्लैंड का राजा भी हमारी तारीफ करके गया है और हमारे से कभी चूक नहीं होती। खैर, कहानी का मूल आधार ही यह छोटी-सी गलती है।

इला की एक सात-आठ वर्ष की बेटी है। पति को इला में कोई रूचि नहीं है। इला अपने तरीके से उसका ध्यान आकर्षित करने की कोशिश करती है, लेकिन असफल रहती है। इला पेट के जरिये पति का दिल जीतने की कोशिश करती है और स्वादिष्ट व्यंजन बनाती है। पति को पहुंचाया गया लंचबॉक्स साजन को मिल जाता है और उससे रिश्ता बन जाता है।

साजन और इला एक-दूसरे को लंच बॉक्स के जरिये चिठ्ठी लिखते हैं और अपने सुख-दु:ख को बांटते हैं। निर्देशक ने कई छोटे-छोटे दृश्यों से उनके रिश्तो को विकसित होते दिखाया है।

साजन की पत्नी वर्षों पहले गुजर चुकी है और वह नितांत अकेला है। लोकल ट्रेन और बस में धक्के खाते हुए ऑफिस जाना, बोरिंग -सा रूटीन काम करना और घर लौटकर पत्नी को याद करना उसकी दिनचर्या है। अपने दिल की बात कहने के लिए उसे इला मिल जाती है। अपनी खुशी और नाराजगी का इजहार वे लंच बॉक्स के जरिये करते हैं। जैसे इला कभी खाने में मिर्च ज्यादा कर देती है तो कभी खाली टिफिन पहुंचा देती है।

खतों के जरिये इला को साजन बताता है कि वह उम्र में उससे काफी बड़ा है, लेकिन इला को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। दरअसल उनका खूबसूरत रिश्ता देह और उम्र की सीमाओं से परे है। इस रिश्ते को निर्देशक रितेश बत्रा ने बहुत ही खूबसूरती से परदे पर उतारा है। फिल्म में संवाद बेहद कम है और बिना संवाद वाले दृश्यों के सहारे कहानी को आगे बढ़ाया गया है। रितेश के प्रस्तुतिकरण में एकव किस्म का ठहराव है जो मन को सुकून तो देता ही है साथ ही कलाकारों के मन में क्या चल रहा है उसे दर्शक महसूस करता है।

फिल्म में मुंबई भी एक किरदार की तरह है। ठहरा हुआ ट्रेफिक, लोकल और बसों में भीड़, लंबा इंतजार एक किस्म का तनाव और थकान पैदा करता ‍जिसे किरदारों के साथ-साथ आप भी महसूस कर सकते हैं।

इस फिल्म में कुछ मजेदार किरदार भी हैं, जो आपके चेहरे पर मुस्कान लाते हैं। नवाजुद्दीन सिद्दकी का कैरेक्टर उन लोगों जैसा है जो न चाहते हुए भी और हमारे उनके प्रति रुखे व्यवहार के बावजूद हमारी जिंदगी में घुसे चले आते हैं। रिटायर होने वाले साजन की जगह वह लेने वाला है और उससे काम सीखता है।

एक आंटी का किरदार है जिसकी सिर्फ आवाज सुनाई देती है। यह आवाज भारती आचरेकर की है और वह इला के ऊपर वाले फ्लैट में रहती है। इला अपने किचन की खिड़की से उससे बातें करती हैं। इला, उसकी मां और आंटी की अपनी उलझनें हैं। इला का पति उसकी ओर ध्यान नहीं देता, आंटी का पति पिछले पन्द्रह वर्ष से कोमा में है और वह उसी प्यार से उसकी सेवा कर रही है जितना प्यार पहले था। इला की मां के पति को कैंसर है और वह मन मारकर उनकी सेवा कर रही है। इन महिलाओं की रिश्तों में बंधे होने की अपनी-अपनी मजबूरी है।

इला जब पहली बार मुलाकात के लिए साजन को बुलाती है तो वह तैयार होकर रेस्तरां में मिलने के लिए निकलता है। रेस्तरां पहुंच कर भी वह इला से मिलने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। अपने से उम्र में कई वर्ष छोटी इला के सामने वह अपने आपको बूढ़ा पाता है। उसकी इस सोच को निर्देशक ने दो दृश्यों के जरिये दिखाया है।

निर्देशक ने फिल्म का ओपन एंड रखा है ताकि दर्शक अपने-अपने मतलब निकाले। फिल्म खत्म होने के बाद लंच बॉक्स के किरदार आपका पीछा नहीं छोड़ते हैं और यही इसकी कामयाबी भी है।

फिल्म में सभी का अभिनय ऊंचे दर्जे का है। इरफान खान ने कई बार अवॉर्ड विनिंग परफॉर्मेंस दिए हैं इस लिस्ट में ‘द लंचबॉक्स’ भी जुड़ गई है। अकेला, उम्रदराज और थक चुका साजन का किरदार उन्होंने अद्भुचत तरीके से निभाया है। निम्रत कौर और नवाजुद्दीन शेख ने अपने-अपने किरदारों को जिया है।
यह लंचबॉक्स स्वादिष्ट व्यंजनों से भरपूर है।

बैनर : यूटीवी मोशन पिक्चर्स, धर्मा प्रोडक्शन्स, डार मोशन पिक्चर्स, सिख्या एंटरटेनमेंट
निर्माता : गुनीत मोंगा, करण जौहर, अनुराग कश्यप, अरुण रंगाचारी
निर्देशक : रितेश बत्रा
कलाकार : इरफान खान, नवाजुद्दीन सिद्दकी, निम्रत कौर, संजीव कपूर
सेंसर सर्टिफिकेट : यू * 1 घंटा 50 मिनट
रेटिंग : 3.5/5