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Written By WD Feature Desk

विजया एकादशी व्रत की पौराणिक कथा

Vijaya Ekadashi 2024 I विजया एकादशी व्रत की पौराणिक कथा - Vijaya Ekadashi Katha
HIGHLIGHTS
 
• कब है विजया एकादशी व्रत 2024 में।
• विजया एकादशी की कथा यहां पढ़ें।
• श्री रामचंद्र जी के विजय प्राप्ति की कथा।

 
Vijaya Ekadashi 2024: हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार प्रतिवर्ष फाल्गुन कृष्ण एकादशी के दिन विजया एकादशी मनाई जाती है। यह एकादशी इतनी अधिक महत्वपूर्ण मानी गई है कि इसका महात्म्य एवं कथा सुनने और पढ़ने मात्र से समस्त पाप नाश को प्राप्त हो जाते हैं। फाल्‍गुन मास की यह एकादशी मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम से जुड़ी हुई है। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्‍य को हर क्षेत्र में विजय प्राप्त‍ होती है। इस वर्ष 6 मार्च 2024 को विजया एकादशी पड़ रही है। 
 
आइए यहां जानते हैं फाल्गुन कृष्ण एकादशी यानी विजया एकादशी की कथा क्या है: 
 
विजया एकादशी कथा : Vijaya Ekadashi Katha In Hindi  
 
विजया एकादशी की कथा के अनुसार त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र जी को जब चौदह वर्ष का वनवास हो गया, तब वे श्री लक्ष्मण तथा सीता जी सहित पंचवटी में निवास करने लगे। वहां पर दुष्ट रावण ने जब सीता जी का हरण किया, तब इस समाचार से श्री रामचंद्र जी तथा लक्ष्मण अत्यंत व्याकुल हुए और सीता जी की खोज में चल दिए। घूमते-घूमते जब वे मरणासन्न जटायु के पास पहुंचे, तो जटायु उन्हें सीता जी का वृत्तांत सुनाकर स्वर्गलोक चला गया। 
 
कुछ आगे जाकर उनकी सुग्रीव से मित्रता हुई और बाली का वध किया। हनुमान जी ने लंका में जाकर सीता जी का पता लगाया और उनसे श्री रामचंद्र जी और सुग्रीव की मित्रता का वर्णन किया। वहां से लौटकर हनुमान जी ने भगवान राम के पास आकर सब समाचार कहे। श्री रामचंद्र जी ने वानर सेना सहित सुग्रीव की सम्पत्ति से लंका को प्रस्थान किया। 
 
जब श्री रामचंद्र जी समुद्र से किनारे पहुंचे तब उन्होंने मगरमच्छ आदि से युक्त उस अगाध समुद्र को देखकर लक्ष्मण जी से कहा कि इस समुद्र को हम किस प्रकार से पार करेंगे। श्री लक्ष्मण ने कहा- हे पुराण पुरुषोत्तम, आप आदिपुरुष हैं, सब कुछ जानते हैं। यहां से आधा योजन दूर पर कुमारी द्वीप में वकदालभ्य नाम के मुनि रहते हैं। उन्होंने अनेक ब्रह्मा देखे हैं, आप उनके पास जाकर इसका उपाय पूछिए।
 
लक्ष्मण जी के इस प्रकार के वचन सुनकर श्री रामचंद्र जी वकदालभ्य ऋषि के पास गए और उनको प्रमाण करके बैठ गए। मुनि ने भी उनको मनुष्य रूप धारण किए हुए पुराण पुरुषोत्तम समझकर उनसे पूछा कि हे राम! आपका आना कैसे हुआ? 
 
रामचंद्र जी कहने लगे कि- हे ऋषे! मैं अपनी सेना सहित यहां आया हूं और राक्षसों को जीतने के लिए लंका जा रहा हूं। आप कृपा करके समुद्र पार करने का कोई उपाय बतलाइए। मैं इसी कारण आपके पास आया हूं। 
 
वकदालभ्य ऋषि बोले कि- हे राम! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का उत्तम व्रत करने से निश्चय ही आपकी विजय होगी, साथ ही आप समुद्र भी अवश्य पार कर लेंगे। हे राम! यदि तुम भी इस व्रत को सेनापतियों सहित करोगे तो तुम्हारी विजय अवश्य होगी। 
 
अत: हे राजन्! जो कोई मनुष्य विधिपूर्वक इस व्रत को करेगा, दोनों लोकों में उसकी अवश्य विजय होगी। श्री ब्रह्मा जी ने नारद जी से कहा था कि हे पुत्र! जो कोई इस व्रत के महात्म्य को पढ़ता या सुनता है, उसको वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है। इस तरह रामचंद्र जी ने ऋषि के कथनानुसार इस व्रत को किया और इसके प्रभाव से दैत्यों पर विजय पाई। 
 
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