इस बार जलझूलनी या परिवर्तिनी एकादशी 06 सितंबर को मनाई जा रही है। इसी दिन डोल ग्यारस का पर्व भी मनाया जाएगा। कैलेंडर के मत-मतांतर के चलते यह एकादशी 06 और 07 सितंबर को मनाई जाने की संभावना है। jal jhulni ekadashi muhurat n Katha
डोल ग्यारस, जलझूलनी, परिवर्तनी एकादशी के मुहूर्त-
भाद्रपद शुक्ल एकादशी की शुरुआत-
06 सितंबर 2022, मंगलवार को सुबह 05.54 से और बुधवार, 07 सितंबर 2022 को देर रात 03.04 पर एकादशी का समापन होगा।
पारण का समय 07 सितंबर, बुधवार को, सुबह 08.19 से 08.33 मिनट तक।
जलझूलनी या पार्श्व एकादशी (वैष्णवों के लिए) बुधवार, 07 सितंबर 2022 को।
वैष्णव एकादशी पारण समय- 08 सितंबर, गुरुवार सुबह 06.02 से 08.33 मिनट पर।
डोल ग्यारस जलझूलनी एकादशी कथा- यह कथा भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को बताई थी, इसके अनुसार त्रेतायुग में बलि नामक एक दैत्य था। वह मेरा परम भक्त था। विविध प्रकार के वेद सूक्तों से मेरा पूजन किया करता था और नित्य ही ब्राह्मणों का पूजन तथा यज्ञ के आयोजन करता था, लेकिन इंद्र से द्वेष के कारण उसने इंद्रलोक तथा सभी देवताओं को जीत लिया।
इस कारण सभी देवता एकत्र होकर सोच-विचार कर भगवान के पास गए। बृहस्पति सहित इंद्रादिक देवता प्रभु के निकट जाकर और नतमस्तक होकर वेद मंत्रों द्वारा भगवान का पूजन और स्तुति करने लगे। अत: मैंने वामन रूप धारण करके पांचवां अवतार लिया और फिर अत्यंत तेजस्वी रूप से राजा बलि को जीत लिया।
फिर श्री कृष्ण के मुख इतनी बात सुनकर राजा युधिष्ठिर ने पूछा- हे जनार्दन! आपने वामन रूप धारण करके महाबली दैत्य को किस प्रकार जीता?
तब श्री कृष्ण कहने लगे- मैंने वामन रूपधारी ब्रह्मचारी बनकर बलि से तीन पग भूमि की याचना करते हुए कहा- ये मुझको तीन लोक के समान है और हे राजन यह तुमको अवश्य ही देनी होगी। राजा बलि ने इसे तुच्छ याचना समझकर तीन पग भूमि का संकल्प मुझको दे दिया और मैंने अपने त्रिविक्रम रूप को बढ़ाकर यहां तक कि भूलोक में पद, भुवर्लोक में जंघा, स्वर्गलोक में कमर, मह:लोक में पेट, जनलोक में हृदय, यमलोक में कंठ की स्थापना कर सत्यलोक में मुख, उसके ऊपर मस्तक स्थापित किया।
सूर्य, चंद्रमा आदि सब ग्रह गण, योग, नक्षत्र, इंद्रादिक देवता और शेष आदि सब नागगणों ने विविध प्रकार से वेद सूक्तों से प्रार्थना की।
तब मैंने राजा बलि का हाथ पकड़कर कहा कि हे राजन! एक पद से पृथ्वी, दूसरे से स्वर्गलोक पूर्ण हो गए। अब तीसरा पग कहां रखूं? तब बलि ने अपना सिर झुका लिया और मैंने अपना पैर उसके मस्तक पर रख दिया जिससे मेरा वह भक्त पाताल को चला गया। फिर उसकी विनती और नम्रता को देखकर मैंने कहा कि हे बलि! मैं सदैव तुम्हारे निकट ही रहूंगा। विरोचन पुत्र बलि से कहने पर भाद्रपद शुक्ल एकादशी के दिन बलि के आश्रम पर मेरी मूर्ति स्थापित हुई।
इसी प्रकार दूसरी क्षीरसागर में शेषनाग के पष्ठ पर हुई! हे राजन! इस एकादशी को भगवान शयन करते हुए करवट लेते हैं, इसलिए तीनों लोकों के स्वामी भगवान विष्णु का उस दिन पूजन करना चाहिए। इस दिन तांबा, चांदी, चावल और दही का दान करना उचित है। रात्रि को जागरण अवश्य करना चाहिए।
जो विधिपूर्वक इस एकादशी का व्रत करते हैं, वे सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में जाकर चंद्रमा के समान प्रकाशित होते हैं और यश पाते हैं। जो इस पापनाशक कथा को पढ़ते या सुनते हैं, उनको हजार अश्वमेध यज्ञ का फल तथा वैकुंठ प्राप्त होता है।