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Written By WD Feature Desk

Mohini Ekadashi Vrat Katha : मोहिनी एकादशी की पौराणिक एवं प्रामाणिक व्रतकथा

Ekadashi Katha 2025
2025 Mohini Ekadashi Katha : धार्मिक ग्रंथों के अनुसार मोहिनी एकादशी की तिथि अत्यंत शुद्ध और पवित्र मानी गई है। इस एकादशी के दिन व्रत-उपवास रखने से पूरे वैशाख मास के दान का पुण्य फल प्राप्त होता है। साथ ही सुख-सौभाग्य और धन का आशीर्वाद भी मिलता है। पौराणिक धार्मिक मान्यता के अनुसार महर्षि वशिष्ठ ने प्रभु श्री रामचंद्र जी से मोहिनी एकादशी व्रत की कथा कही थी। इस एकादशी की कथा वैशाख मास के दान का पुण्य देने में सक्षम है। अत: हर मनुष्‍य को यह व्रत अवश्य रखना चाहिए तथा कथा पढ़ना चाहिए।ALSO READ: 14 मई 2025 को बृहस्पति करेगा मिथुन राशि में प्रवेश, 2 राशियों को रहना होगा सतर्क, 2 के लिए शुभ

आइए जानते हैं इस व्रत की प्रामाणिक कथा... 
 
कथा- मोहिनी एकादशी पौराणिक एवं प्रामाणिक व्रत कथा के अनुसार सरस्वती नदी के तट पर भद्रावती नाम की एक नगरी में द्युतिमान नामक चंद्रवंशी राजा राज करता था। वहां धन-धान्य से संपन्न व पुण्यवान धनपाल नामक वैश्य भी रहता है। वह अत्यंत धर्मालु और विष्णु भक्त था। उसने नगर में अनेक भोजनालय, प्याऊ, कुएं, सरोवर, धर्मशाला आदि बनवाए थे। सड़कों पर आम, जामुन, नीम आदि के अनेक वृक्ष भी लगवाए थे। 
 
उसके पांच पुत्र थे- सुमना, सद्‍बुद्धि, मेधावी, सुकृति और धृष्टबुद्धि। इनमें से पांचवां पुत्र धृष्टबुद्धि महापापी था। वह पितर आदि को नहीं मानता था। वह वेश्या, दुराचारी मनुष्यों की संगति में रहकर जुआ खेलता और पर-स्त्री के साथ भोग-विलास करता तथा मद्य-मांस का सेवन करता था। इसी प्रकार अनेक कुकर्मों में वह पिता के धन को नष्ट करता रहता था। इन्हीं कारणों से त्रस्त होकर पिता ने उसे घर से निकाल दिया था। 
 
घर से बाहर निकलने के बाद वह अपने गहने-कपड़े बेचकर अपना निर्वाह करने लगा। जब सबकुछ नष्ट हो गया तो वेश्या और दुराचारी साथियों ने उसका साथ छोड़ दिया। अब वह भूख-प्यास से अति दुखी रहने लगा। कोई सहारा न देख चोरी करना सीख गया। एक बार वह पकड़ा गया तो वैश्य का पुत्र जानकर चेतावनी देकर छोड़ दिया गया। मगर दूसरी बार फिर पकड़ में आ गया।ALSO READ: मोहिनी एकादशी का व्रत रखने से क्या होता है?
 
राजाज्ञा से इस बार उसे कारागार में डाल दिया गया। कारागार में उसे अत्यंत दु:ख दिए गए। बाद में राजा ने उसे नगरी से निकल जाने का कहा। वह नगरी से निकल वन में चला गया। वहां वन्य पशु-पक्षियों को मारकर खाने लगा। कुछ समय पश्चात वह बहेलिया बन गया और धनुष-बाण लेकर पशु-पक्षियों को मार-मारकर खाने लगा। 
एक दिन भूख-प्यास से व्यथित होकर वह खाने की तलाश में घूमता हुआ कौडिन्य ऋषि के आश्रम में पहुंच गया।
 
उस समय वैशाख मास था और ऋषि गंगा स्नान कर आ रहे थे। उनके भीगे वस्त्रों के छींटे उस पर पड़ने से उसे कुछ सद्‍बुद्धि प्राप्त हुई। वह कौडिन्य मुनि से हाथ जोड़कर कहने लगा कि हे मुने! मैंने जीवन में बहुत पाप किए हैं। आप इन पापों से छूटने का कोई साधारण बिना धन का उपाय बताइए। उसके दीन वचन सुनकर मुनि ने प्रसन्न होकर कहा कि तुम वैशाख शुक्ल की मोहिनी नामक एकादशी का व्रत करो। इससे समस्त पाप नष्ट हो जाएंगे। 
 
मुनि के वचन सुनकर वह अत्यंत प्रसन्न हुआ और उनके द्वारा बताई गई विधि के अनुसार व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से उसके सब पाप नष्ट हो गए और अंत में वह गरुड़ पर बैठकर विष्णुलोक को गया। अत: इस तरह इस व्रत को करने से मनुष्य के मोह, माया, लालच आदि सभी तरह के पाप नष्ट हो जाते हैं। संसार में इस व्रत से श्रेष्ठ कोई व्रत नहीं है। इसके माहात्म्य को पढ़ने से अथवा सुनने से एक हजार गौ दान का फल प्राप्त होता है। 
 
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