रविवार, 1 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. संपादकीय
  3. संपादकीय
  4. Vichar Mahakumbh, Ujjain Simhastha 2016, Ujjain, Ujjain Kumbh
Written By Author जयदीप कर्णिक

#विचारमहाकुंभ – कर्म के प्रवाह से बनेंगे विश्व गुरु

#विचारमहाकुंभ – कर्म के प्रवाह से बनेंगे विश्व गुरु - Vichar Mahakumbh, Ujjain Simhastha 2016, Ujjain, Ujjain Kumbh
नर्मदा से अमृत जल लेकर पानी से लबालब क्षिप्रा। गुरु की सिंह राशि में उपस्थिति। उज्जयिनी में क्षिप्रा के किनारे त्रिवेणी से लेकर रामघाट तक डुबकियाँ लगाते साधु-संत और करोड़ों भक्तजन। सब डुबकी लगाकर खुद को निहाल मान रहे हैं। उधर मेला क्षेत्र में एक-दूसरे से होड़ करते भव्य पंंडाल। संतों में भी इंडिया और भारत का प्रतिनिधित्व करते दो रूप। हाँ, उज्जैन में 12 साल में एक बार होने वाला सिंहस्थ जारी है। प्रयाग के 'कुंभ' की तर्ज पर इसे भी कुंभ ही कहा जाता है। कुंभ यानी हिंदू धर्म का सबसे बड़ा समागम। 
उज्जैन के ठीक पहले ढाई हजार की आबादी वाले निनोरा गाँव में भव्य पंडाल सजाकर एक और कुंभ हुआ। इसे अंतरराष्ट्रीय विचार महाकुंभ कहा गया। 11, 12 और 13 मई को विचार मंथन हुआ और 14 मई को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने इसका समापन किया। देश-विदेश के अनेक विद्वान विचारकों ने इसमें भाग लिया। इसके आख़िर में एक सिंहस्थ घोषणा पत्र भी जारी किया गया। इसमें 51 अमृत बिन्दु या विचार बिन्दु हैं जिन पर आगे काम होगा। 

विचार महाकुंभ‬ को थोड़ा-बहुत देखा-सुना-समझा... हमारे यहाँ नदियाँ इसलिए नहीं सूख रहीं कि हमारे यहाँ उसे बचाने वाले ज्ञान की कमी है, कमी तो कर्म के प्रवाह की है। ऐसा तो है नहीं कि हमारे पास भ्रूण हत्या, अशिक्षा, ग़रीबी, बेरोज़गारी से निपटने का ज्ञान नहीं है... कर्म कहाँ है? ...जो है उसे प्रोत्साहित और प्रतिष्ठित करने की ललक कहाँ है? 
 
प्रधानमंत्री जी कि ये बात सार रूप में उल्लेखनीय है कि हमने परंपराओं से बँधकर केवल उनके प्रतीकों को पूजना शुरू कर दिया, काल बाह्य बातों को छोड़कर आगे बढ़ना होगा, करनी पर ज़्यादा ध्यान देना होगा.....। इसकी शुरुआत भी उन्हें अपनी सरकार से ही करनी होगी।
 विचार महाकुंभ के इस आयोजन की संकल्पना तो ठीक है, कुंभ केवल डुबकी लगाकर पाप धो लेने के प्रतीक तक ना सीमित रहे, मेला-तफ़रीह से आगे बढ़कर गहन मंथन और वहाँ से कर्म तक पहुँचे - ये विचार एकदम ठीक है...पर ये भी एक नया प्रतीक भर ना बन जाए ये तो देखना ही होगा...अगली बार ये और हो जाए कि जो इसे कर्म में भी उतार सके वो ही आए, वीआईपीगिरी कम हो जाए तब देखिए...ज्ञान का प्रवाह कर्म के प्रवाह में आसानी से तो नहीं बदलेगा...। आख़िर ये ज्ञान सिर पर गठरी रखकर पंचक्रोशी करने वाली आम जनता तक कैसे पहुँचेगा? तमाम मंचों से घोषणा होती रही कि हम विश्व गुरु थे और फिर बन जाएँगे। अच्छी बात है। कैसे? केवल भाषणों से? 
 
ये भी ठीक है कि कर्म के पहले विचार जरूरी है। पर जिन मुद्दों को सूचीबद्ध किया गया है क्या उसके लिए वाकई किसी रॉकेट साइंस की ज़रूरत है? 51 के बजाय केवल 1 कर्म बिन्दु ही इस विचार-मंथन से निकल आता कि अगले तीन साल में क्षिप्रा मैया नर्मदा के नहीं ख़ुद अपने जल से कल-कल करती बहेंगी तो यही सबसे बड़ा हासिल होता। पिछला सिंहस्थ टैंकर के पानी वाली क्षिप्रा के किनारे हुआ था। ये वाला पाइप से लाई गई नर्मदा से हुआ है। अगर अगला सिंहस्थ पुनर्जीवित और अपने पानी से लबालब क्षिप्रा किनारे हो जाए तो ये विचार महाकुंभ पूर्णत: सार्थक है। 
ये भी पढ़ें
यूरोप के इस्लामीकरण के दौर में घोर-दक्षिणपंथी तूफान