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Written By Author जयदीप कर्णिक

खिलते 'कमल' और धुँधलाते 'पंजे' के बीच मुस्कुराते 'तिनके'

खिलते 'कमल' और धुँधलाते 'पंजे' के बीच मुस्कुराते 'तिनके' - assembly election 2016 result
वहाँ ऊपर पूर्वोत्तर में, देश के कंधों के पास अरुणोदय के प्रदेशों में से एक असम में खिलता हुआ कमल मुस्कुरा रहा है और उधर नीचे हिन्द महासागर के थोड़ा ऊपर और बंगाल की खाड़ी के बगल में साख बचाने के लिए लड़ता हाथ का पंजा। उधर पूरब में ही बंगाल की खाड़ी के पास हावड़ा ब्रिज से तृणमूल के तिनके और पत्तियाँ भी वैसे ही मुस्कुरा रहे हैं जैसे कि दक्षिण में इसी समंदर के किनारे ‘दो पत्तियाँ’ मुस्कुरा रही हैं। उधर अरब सागर के किनारे पर भी लहरें हाथ के पंजे को पीछे धकेलकर हँसिये-हथौड़े का अभिषेक कर रही हैं।
पाँच राज्यों के चुनाव परिणाम बहुत चौंकाने वाले नहीं पर दिलचस्प ज़रूर रहे हैं। एक तरह से ये ठेठ उत्तर-पूर्व से लेकर नीचे दक्षिण तक जनमानस का हाल भाँपने वाले चुनाव रहे हैं। जहाँ क्षेत्रीय दलों का महत्व बरकरार है, वहीं ‘राष्ट्रीय दल’ भी परिभाषा और पहचान को तलाश रहे हैं। 

इन चुनावों में सबसे ज़्यादा नुकसान 150 साल पुराने दल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को हुआ है। दो बड़े राज्य असम और केरल, कांग्रेस के हाथ से चले गए हैं। जहाँ तरुण गोगोई के लिए चौथी बार भी चुनकर आ जाना असंभव-सा हो गया था, वहीं ओमान चांडी भी अपने वादे पर खरे नहीं उतर पाए। 
 
असम में लगभग 50 प्रतिशत वोटों के साथ भाजपा की जीत बड़ा और निर्णायक संकेत है। कांग्रेस न नए नेतृत्व को जगह दे पाई न अपने से दूर छिटककर जा रहे नेताओं को रोक पाई। हेमंत विश्वशर्मा जैसे नेताओं को जाने देना कांग्रेस को भारी पड़ा। असम में पैठ की कोशिश संघ के द्वारा लंबे समय से की जा रही है, लेकिन सफलता कई परिस्थितियों के समीकरण पर निर्भर करती है। भाजपा महासचिव राम माधव के चेहरे की हँसी और गालों पर बिखरा गुलाल इस ख़ुशी को बयान करने के लिए काफी है। पूर्वोत्तर में कमल के दरवाज़े इस जीत के बाद खुल गए हैं। 
 
पश्चिम बंगाल में तो खैर ममता बनर्जी की जीत तय थी। भाजपा को यहाँ अभी बहुत लंबा रास्ता तय करना है। कांग्रेस और वाम दलों के गठबंधन का जीतना इसलिए संभव नहीं था क्योंकि ममता बनर्जी के रूप में इन दोनों का बढ़िया मिश्रण जनता के पास पहले से मौजूद है। ममता बनर्जी ने कांग्रेस से अलग होकर ही अपनी पार्टी बनाई। मुख्यमंत्री के रूप में उनकी कार्यशैली भी अधिकतर वाम आधारित ही रही है, इसीलिए वे वामपंथ के इस मजबूत किले को ढहाने के बाद से लगातार लोकप्रिय बनी हुई हैं।
तमिलनाडु की जनता ने ज़रूर 34 सालों का रिकॉर्ड तोड़ते हुए फिर सत्ताधारी दल को जीता दिया। द्रमुक और अन्ना द्रमुक के ‘पलटे’ पर इस बार रोक लग गई। ये अम्मा यानी  जयललिता के मुफ्त वादों का करिश्मा है। जनता ने फिर बुजुर्ग द्रमुक को जीवनदान देने से इंकार कर दिया। 
 
केरल में अगर हँसिया नहीं आता तो वाम दलों के लिए तो ताबूत तैयार था। बंगाल की कसक को कुछ हद तक केरल ने कम किया है। येचुरी-करात की अंदरूनी खींचतान के बीच और बाद भी केरल ही वाम दलों का सहारा है। 
 
पुडुचेरी की जीत को तो कांग्रेस सांत्वना पुरस्कार भी नहीं कह सकती। 2014 में 14 से अधिक राज्यों में सरकार बनाने वाली कांग्रेस अब आठ राज्यों में सिमट गई है। इनमें बिहार भी शामिल है। 
 
कुल मिलाकर ये परिणाम कांग्रेस के लिए सर्वाधिक नुकसानदायक रहे हैं। भाजपा को दिल्ली और बिहार की बड़ी हार से उबरने का मौका असम ने दिया है और दोनों ही महिलाओं – ममता और जया ने नारी शक्ति का लोहा मनवाकर ही दम लिया है।
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