कैसे पड़ा दशानन का नाम 'रावण'
बहुत ही कम लोगों को यह पता होगा कि दशानन को 'रावण' नाम कैसे मिला? शास्त्रों और धर्मों के ज्ञाता भले यह जानते होंगे लेकिन आम आदमी तो इससे अनभिज्ञ ही होगा। आज हम आपको बता रहे हैं दशानन के 'रावण' बनने की पूरी कहानी......... जब 'रावण' ने की थी 'कैलाश' में घुसने की कोशिश- '
रावण संहिता' में इस बात का जिक्र किया गया है कि एक बार दशानन अपने भाई 'कुबेर' से पुष्पक विमान बल पूर्वक छीनने के बाद उस पर सवार होकर आकाश मार्ग से वनों का आनंद लेते हुए सैर करने लगा। इसी मार्ग पर उसने एक जगह सुंदर पर्वत से घिरे और वनों से आच्छादित मनोरम स्थल को देखकर वह उस स्थान में प्रवेश करना चाहा लेकिन उसे यह नहीं पता था कि वह कोई सामान्य पर्वत नहीं है बल्कि भगवान शिव का कैलाश पर्वत है। उस वक्त रावण को वहां प्रवेश करते हुए देखकर शिवगणों ने उसे ऐसा करने से रोक दिया, लेकिन रावण तो रावण था वह कहां मानने वाला था। रावण को न मानते हुए देखकर नंदीश्वर ने रावण को समझाने की भी कोशिश की। उसने रावण को कहा कि हे दशग्रीव तुम यहां से लौट जाओ,इस पर्वत पर भगवान शंकर क्रीड़ा कर रहे है। गरूड़, नाग, यक्ष, देव, गंधर्व तथा राक्षसों का प्रवेश यहां पर निषिद्ध कर दिया गया है। नंदीश्वर के द्वारा कहे इन शब्दों से रावण के गुस्से का कोई ठिकाना नहीं रहा। गुस्से की वजह से उसके कानों के कुंडल हिलने लगे। क्रोध के कारण उसकी आंखे अंगारे बरसाने लगी। वह पुष्पक विमान से उतरकर गुस्से में भरकर यह पूछते हुए कि यह शंकर कौन है? कैलाश पर्वत के अंदर जा पहुंचा।
जब 'नंदी' ने दिया रावण को श्राप-वहां रावण ने देखा कि भगवान शंकर के निकट ही चमकते हुए शूल को हाथ में लिए नंदीश्वर दूसरे शिव के समान खड़ा है। उस वक्त रावण ने नंदीश्वर के पशु समान मुख को देखकर उनकी अवज्ञा करते हुए जोर-जोर से हंसना शुरू कर दिया। तब भगवान शंकर के द्वितीय रूप नंदी ने क्रुद्ध होकर समीप खड़े दशानन को श्राप देते हुए कहा कि हे दशानन तुमने मेरे जिस पशु रूप का मजाक उड़ाया है ऐसा ही पशु रूप वाला कोई शक्तिशाली तथा तेजस्वी तुम्हारे कुल का वध करने के लिए उत्पन्न होगा, जिसके सामने तुम्हारा यह विशालकाय शरीर भी तुच्छ साबित होगा और जो तुम्हारे मंत्रियों तथा पुत्रों का भी अंत कर देगा। नंदी ने तो अपने क्रोध में यह भी कहा कि मैं तुम्हें अभी भी मार डालने की शक्ति रखता हूं लेकिन तुम्हें मारूंगा नहीं, क्योंकि अपने कुकर्मों के कारण तुम तो पहले ही मर चुके हो। ऐसे में शिवगण नंदी से श्राप मिलने के बाद राक्षस राज रावण ने पर्वत के समीप खड़े होकर अत्यंत क्रोधित स्वर में कहा कि जिसने मेरी यात्रा के दौरान मेरे पुष्पक विमान को रोकने की चेष्टा की है मैं उस पर्वत को ही जड़ से उखाड़ फेकूंगा।