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Written By WD Feature Desk
Last Updated : शुक्रवार, 4 अक्टूबर 2024 (15:09 IST)

Navratri 2024: माता के इस मंदिर में खून चढ़ाकर मां को प्रसन्न करते हैं भक्त, सदियों से चली आ रही है यह विचित्र परंपरा

12 दिन के नवजात से लेकर 100 साल के बुजुर्ग तक का चढ़ता है रक्त, जानिए कौन सा है मंदिर

Navratri 2024: माता के इस मंदिर में खून चढ़ाकर मां को प्रसन्न करते हैं भक्त, सदियों से चली आ रही है यह विचित्र परंपरा - Bansgaon Durga temple
बांसगांव का दुर्गा मंदिर

Navratri Special: गोरखपुर जिले के बांसगांव में स्थित दुर्गा मंदिर अपनी अनोखी धार्मिक परंपराओं के कारण दूर-दूर तक प्रसिद्ध है। यह मंदिर न केवल भक्तों की श्रद्धा का केंद्र है, बल्कि यहां की विशेष परंपरा, जिसमें माता को खून चढ़ाकर उनकी कृपा प्राप्त की जाती है, इसे और भी अद्वितीय बनाती है।

यह परंपरा क्षत्रियों के श्रीनेत वंश के लोगों द्वारा निभाई जाती है। श्रद्धालुओं का मानना है कि इस मंदिर में सच्चे मन से सिर झुकाने वाले हर व्यक्ति की मन्नत पूरी होती है। इस परंपरा के अंतर्गत 12 दिन के नवजात से लेकर 100 साल के बुजुर्ग तक का रक्त चढ़ाया जाता है। माना जाता है कि जिन नवजातों के ललाट से रक्त चढ़ाया जाता है, वे मां दुर्गा की कृपा से प्राप्त हुए होते हैं।
 
12 दिन के नवजातों का भी चढ़ाया जाता है रक्त
नवमी के दिन मां दुर्गा को रक्त अर्पित करने की परंपरा को निभाने के लिए देश- विदेश में रहने वाले लोग भी आते हैं। 12 दिन के बाद के नवजात बच्चों को भी लेकर श्रद्धालु मंदिर में पहुंचते हैं और उनके ललाट से रक्त लेकर मां को अर्पित करते हैं। इसके बाद आशीर्वाद के रूप में माता के चरणों से भभूत लेकर ललाट पर लगाते हैं। कहते हैं इससे रक्त का प्रवाह थम जाता है।

कितने जगह से निकाला जाता है रक्त
उपनयन संस्कार के पहले तक ललाट से रक्त निकल कर माता को अर्पित किया जाता है। जनेऊ धारण करने के बाद युवकों, अधेड़ों व बुजुर्गों के शरीर से नौ जगहों पर एक ही उस्तरे से चीरा लगाकर खून निकाला जाता है। रक्त को बेलपत्र में लेकर मां दुर्गा के चरणों में अर्पित कर भभूत लेकर रक्त निकले स्थानों पर लगाया जाता है। भक्तों की मानें तो ऐसा करते ही खून का बहाव खत्म हो जाता है।

क्या है माता को खून चढ़ाने की परंपरा का धार्मिक महत्व
बांसगांव दुर्गा मंदिर में खून चढ़ाने की यह प्रथा सदियों से चली आ रही है। यहां आने वाले भक्त माता को अपनी भुजा से खून निकालकर चढ़ाते हैं, ताकि उनकी मनोकामनाएं पूरी हों। यह खून चढ़ाने की प्रक्रिया एक धार्मिक अनुष्ठान के तहत की जाती है, जिसमें पूरी पवित्रता और आस्था का ध्यान रखा जाता है।

यह माना जाता है कि माता दुर्गा अपने भक्तों की बलिदान और समर्पण से प्रसन्न होती हैं, और उन्हें आशीर्वाद देती हैं। भक्तों का विश्वास है कि खून चढ़ाने से उन्हें हर प्रकार की समस्या से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

बांसगांव दुर्गा मंदिर का इतिहास
गोरखपुर के इस ऐतिहासिक मंदिर का निर्माण सदियों पूर्व हुआ था और तब से यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र रहा है। इस मंदिर में देवी दुर्गा की भव्य मूर्ति स्थापित है और नवरात्रि के अवसर पर यहां विशेष पूजाओं का आयोजन किया जाता है। नवरात्रि के दौरान मंदिर में खून चढ़ाने की यह परंपरा अपने चरम पर होती है, जब दूर-दूर से हजारों भक्त यहां अपनी श्रद्धा अर्पित करने आते हैं।

माता के मंदिर के प्रति भक्तों के मन में है अटूट आस्था
बांसगांव दुर्गा मंदिर के प्रति भक्तों की आस्था अटूट है। यहां साल भर विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों और मेलों का आयोजन किया जाता है, जिनमें हजारों की संख्या में लोग शामिल होते हैं। माता के प्रति भक्तों की इस विशेष श्रद्धा ने इस मंदिर को एक अद्वितीय स्थान प्रदान किया है।

बांसगांव दुर्गा मंदिर पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र

यह मंदिर धार्मिक आस्था के साथ-साथ पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बन गया है। गोरखपुर आने वाले सैलानी यहां आकर इस अनोखी परंपरा का अनुभव करने के लिए उत्साहित रहते हैं। मंदिर के आसपास के सुंदर प्राकृतिक दृश्य और धार्मिक वातावरण, इसे एक प्रमुख पर्यटन स्थल बनाते हैं।

गोरखपुर के बांसगांव स्थित दुर्गा मंदिर न केवल अपनी धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां की खून चढ़ाने की अनूठी परंपरा इसे विशेष पहचान दिलाती है। यह मंदिर भक्तों के विश्वास और माता दुर्गा की अनुकंपा का प्रतीक है।

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