गुरुवार, 28 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. सेहत
  3. जान-जहान
  4. Detail About Myasthenia Disease
Written By

हद से ज्यादा थकान कहीं मायस्थीनिया तो नहीं? जानिए कारण, लक्षण और एक्सपर्ट की राय

हद से ज्यादा थकान कहीं मायस्थीनिया तो नहीं? जानिए कारण, लक्षण और एक्सपर्ट की राय - Detail About Myasthenia Disease
डॉ. केके पाण्डेय
कहीं आप थोड़ा चलने या थोड़ा सा व्यायाम करने के बाद पूरी तरह थक तो नहीं जाते?  या कभी बालों में कंघी करते वक्त‍ कठिनाई लगती हो? या घर-गृहस्थी का थोड़ा सा काम करने के बाद इतनी थकान लगती हो कि जैसे शरीर में जान ही नहीं रह गई हो...? तो आप यह समझ लीजिए कि आप शायद मायस्थीनिया रोग से पीड़ित हो सकते हैं। 
 
मायस्थीनिया रोग या तो पैदाइशी होता है या फिर अत्यधिक शारीरिक परिश्रम या अत्यधिक इंफेक्शन के कारण होता है। कभी-कभी ज्यादा ठंड या अ‍त्यधिक गर्मी भी इस रोग को पैदा करने के लिए जिम्मेदार हो सकती है। नवयुवतियां भी प्रथम मासिक धर्म के पहले या बाद में मायस्थीनिया की शिकार हो सकती हैं। कभी-कभी जबरदस्त उत्तेजना या तनाव के कारण भी मायस्थीनिया पनप सकता है। मायस्थीनिया किसी भी आयु की महिला या पुरुष को हो सकता है, लेकिन पुरुषों की तुलना में यह रोग महिलाओं में ज्यादा और कम आयु में होता है।
 
मायस्थीनिया रोग क्यों होता है?
मायस्थीनिया के मरीजों के खून में एसीटाइल कोलीन रेसेप्टर नामक रासायनिक तत्व की कमी होती है। इस रासायनिक तत्व का काम शरीर की मांसपेशियों को क्रियाशील व ऊर्जा से भरपूर बनाए रखना है। इस तत्व की कमी के कारण मांसपेशियां ढीली व सुस्त हो जाती हैं जिसके परिणामस्वरूप मायस्थीनिया के रोगी को हल्का चलने या काम करने से ऐसा लगता है कि जैसे शरीर से प्राण ही निकल गए हों। 
मायस्थीनिया रोग में छाती की एक विशेष ग्रंथि का अहम रोल
 
मायस्थीनिया रोग का मुख्य कारण सामने की छाती के अंदर एक विशेष ग्रंथि का आकार में बड़ा होना होता है। छाती की इस विशेष ग्रंथि को मेडिकल भाषा में थाइमस ग्लैंड कहते हैं। यह थाइमस ग्रंथि छाती के अंदर दिल के बाहरी सतह पर होती है। अक्सर इस थाइमस ग्रंथि में ट्यूमर होता है जिसकी वजह से ये आकार में बड़ी हो जाती हैं। मायस्थीनिया रोग के 90 प्रतिशत मरीजों में यह थाइमस ग्रंथि ही जिम्मेदार होती है, बाकी 10 प्रतिशत मायस्थीनिया रोगियों में ऑटो इम्यून रोग जिम्मेदार होते हैं।
 
शराबी आंखें और निस्तेज चेहरा मायस्थीनिया रोग की पहचान
प्रारंभिक अवस्था में मायस्थीनिया का रोगी बालों में कंघी करने में दिक्कत महसूस करता है। अगर किसी बहुत ही हल्के सामान को उठाना पड़े तो मायस्थीनिया का रोगी थककर चूर हो जाता है। सीढ़ियों पर 2-3 कदम चढ़ने पर या साधारण चलने पर या धीमी गति से दौड़ने पर मरीज कठिनाई महसूस करने लगता है।
 
जब मायस्थीनिया का रोग बढ़ जाता है तो आंख की पलकें ऊपर की तरफ उठना बंद कर देती हैं और दोनों आंखों को काफी देर तक खुली रखना मुश्किल होता है और आगे चलकर पलकों का गिरना स्थायी हो जाता है। आंखें शराबियों की तरह लगने लगती हैं, क्योंकि आंखों का पूरी तरह से बंद होना कठिन होता है। मायस्थीनिया का मरीज किसी विशेष वस्तु पर अपनी दोनों आंखों को केंद्रित करने की क्षमता खो देता है और उसे एक ही वस्तु के 2 प्रतिबिंब दिखते हैं। मायस्थीनिया के रोगी का चेहरा बिलकुल भावरहित व शून्य हो जाता है। होंठ बाहर की तरफ ज्यादा निकल आते हैं। मायस्थीनिया का मरीज जब मुस्कुराने की कोशिश करता है तो ऐसा लगता है, जैसे वह गुर्रा रहा हो। निचला जबड़ा भी नीचे की तरफ काफी झुक जाता है। 
 
 
मायस्थीनिया में पानी पीने में कठिनाई
पानी पीते वक्त, पानी रोगी की नाक से निकलना शुरू हो जाता है। खाना खाते वक्त मरीज को घुटन का आभास होने लगता है। मुंह के कोने से लार या पानी गिरना शुरू हो जाता है। मरीज बोलने में हकलाना शुरू कर देता है और उसे जोर से बोलने पर कठिनाई का सामना करना पड़ता है। मायस्थीनिया का मरीज जोर से गिनती नहीं गिन सकता है। उसकी आवाज गिनती गिनने के समय पहले धीमी होगी फिर फुसफुसाहट में बदल जाएगी। अगर इलाज में लापरवाही बरती जाती है तो खाना खाने में और सांस लेने में कठिनाई और बढ़ जाती है और एक‍ स्‍थिति ऐसी आ जाती है कि मरीज की जान खतरे में पड़ जाती है। इसलिए मायस्थीनिया रोग के शुरुआती दिनों में ही एक मुश्त इलाज की संभावनाएं तलाशनी शुरू कर देना चाहिए। 
 
नवजात शिशु भी मायस्थीनिया रोग से अछूते नहीं
एक मायस्थीनिया रोग से पीड़ित मां का नवजात शिशु जन्म से ही मायस्थीनिया के लक्षण प्रदर्शित कर सकता है, क्योंकि विध्‍वंसक तत्व एसीआर एंटीबॉडी माता के खून से नवजात शिशु के खून में ट्रांसफर हो जाता है। इसका परिणाम यह होता है कि नवजात शिशु को स्तनपान के दौरान दूध को घुटकने में कठिनाई होती है और जिसकी वजह से नवजात शिशु की सांस फूल जाती है और जान पर बन आती है। नवजात शिशु का रोना भी स्वस्थ बच्चे के रोने की तुलना में कम हो जाता है। मायस्थीनिया रोग से ग्रसित नवजात शिशु भी अपनी आंखें ठीक से खोल नहीं पाते। स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर को चाहिए कि वह मायस्थीनिया रोग से पीड़ित गर्भवती महिलाओं के इलाज में विशेष सावधानी बरतें और साथ ही साथ प्रसव के बाद नवजात शिशु में मायस्थीनिया होने की प्रबल संभावना को भी ध्यान में रखें और ऐसी गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी (प्रसव) ऐसे बड़े अस्पतालों में करवाएं, जहां नवजात शिशु रोग विशेषज्ञ (नियोंनेटोलॉजिस्ट) की उपलब्धता हो।
 
 
मायस्थीनिया में सर्जरी का अहम रोल
मायस्थीनिया रोग का सबसे कारगर व सबसे अच्‍छा इलाज ऑपरेशन ही है। इस ऑपरेशन में दोषी थाइसम ग्रंथि को मरीज की छाती से पूर्णतया निकाल दिया जाता है। सर्जरी के 4 फायदे होते हैं -


एक तो देखा गया है कि अधिकतर मायस्थीनिया के मरीजों में थाइमस ग्रंथि निकाल देने से मायस्थीनिया का रोग पूरी तरह से ठीक हो जाता है।
 
दूसरा लाभ यह है कि ऑपरेशन से मायस्थीनिया से होने वाली मरीज की समस्याओं व कठिनाई को काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है जिससे मरीज की जान जाने की संभावना कम हो जाती है।
 
तीसरा लाभ यह है कि यह है कि सर्जरी के बाद मायस्थीनिया के लिए दी जाने वाली दवाइयों की संख्‍या व मात्रा में कमी आ जाती है।
 
चौथा सबसे महत्वपूर्ण सर्जरी का लाभ यह होता है कि शुरुआती दिनों में थाइमस ग्रंथि में पनप रहा संभावित ट्यूमर या कैंसर से निजात मिल जाती है, क्योंकि संपूर्ण थाइमस ग्रंथि ही निकाल दी जाती है।
 
इसलिए यूरोपीय देशों या अमेरिका में मायस्थीनिया के रोग में सर्जरी को ही प्राथमिकता दी जाती है। मैं आप लोगों से यही निवेदन करूंगा कि मायस्थीनिया के रोग में सर्जरी को ही प्राथमिकता दें। अगर मरीज में अन्य मेडिकल समस्याओं की वजह से सर्जरी होना मुश्किल हों तो दवा से इलाज के अलावा और कोई रास्ता बचता भी नहीं है।
 
दवाइयों के अपने नुकसान भी होते हैं
जैसे प्रेडनीसोलोन दवा शरीर में नमक और पानी को एकत्रित कर देती है जिससे शरीर और चेहरा सूजा हुआ दिखता है। हमारे देश में कुछ चिकित्सक मायस्थीनिया रोग में दवा से इलाज को ही प्राथमिकता देते हैं। उन्हें यह समझना चाहिए कि दवा से इलाज को प्राथमिकता देने से एक तरफ समय और पैसे की बरबादी तो होती ही है, साथ ही साथ थाइमस ग्रंथि में छुपे हुए कैंसर वाले ट्यूमर की शुरुआती दिनों में नजरअंदाजी हो जाती है जिसकी वजह से मरीज को अपनी जान देकर कीमत चुकानी पड़ती है, जबकि ऑपरेशन एक सुरक्षित व प्रभावी इलाज है मायस्थीनिया का। 
 
 
मायस्थीनिया के इलाज के लिए कहां जाएं?
अगर आप या आपके परिवार के सदस्य मायस्थीनिया या थाइमस ग्रंथि के ट्यूमर से पीड़ित हैं, तो आप किसी अनुभवी थोरेसिक यानी चेस्ट सर्जन से परामर्श लें और उनसे ही अपनी थाइमस ग्रंथि निकलवाएं। 
हमेशा ऐसे बड़े अस्पतालों में जाएं, जहां न्यूरोलॉजी का विकसित व बड़ा महकमा हो और साथ ही साथ प्लाज्माफेरेसिस यानी रक्तशोधन के लिए अत्याधुनिक मशीन की सुविधा हो।
 
अस्पताल में क्रिटिकल केयर का विभाग व आधुनिक आईसीयू हो, साथ ही साथ वेंटीलेटर (कृत्रिम सांस यंत्र) की संख्या प्रचुर मात्रा में हो, क्योंकि ऑपरेशन के बाद वेंटीलेटर की जरूरत पड़ सकती है।
ये भी पढ़ें
Monsoon Skin Care Tips : लगाएं लीची का प्राकृतिक फेस पैक, दमक उठेगा चेहरा