दिवाली विशेष कविता : दीया
दिये से बाती कह रही दीवाली आज है
पटाखें बता रहे हों जैसे ये सरगमों का राज है
घर बन गए दूल्हे, गाड़ियां बनी हो दुल्हनियां
सजी है द्वारे-द्वारे उनके लिए रंगोलियां आज है
आकाश में लगते चांद-सितारों से दिये खास है
दीयों का जमीं पर जलने का भी तो एक राज है
माना कि रौशनी से भागता है दु:खों का अंधेरा
दीयों की रोशनी में शुभकामनाएं देने का यही तो रिवाज है
टिमटिमाते हुए दीयों से घर-घर में रोशनी है
धरा पर खुशियां मनाती दिवाली का हमको नाज है