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Written By WD Feature Desk
Last Modified: मंगलवार, 29 अक्टूबर 2024 (10:53 IST)

भारत में यहां मनाई जाती है ‘बूढ़ी दिवाली’ - जानिए क्या है इसकी खासियत!

Unique Diwali in India: भारत में यहां मनाई जाती है ‘बूढ़ी दिवाली’ - जानिए क्या है इसकी खासियत! - Boodi Diwali in Himachal Pradesh
Boodi Diwali

Diwali 2024: दिवाली का नाम सुनते ही हमारे मन में दीपों की चमक, मिठाइयों की मिठास और खुशियों का त्यौहार याद आता है। लेकिन क्या आपने कभी ‘बूढ़ी दिवाली’ का नाम सुना है? ‘बूढ़ी दिवाली’ एक खास परंपरा है जो हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के कुछ हिस्सों में मनाई जाती है। यह दिवाली दीपावली के एक महीने बाद मनाई जाती है, जो इसे अनोखा बनाती है। लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि इसे बूढ़ी दिवाली क्यों कहा जाता है और इस परंपरा के पीछे क्या कारण हैं?

बूढ़ी दिवाली का इतिहास और इससे जुड़ी मान्यताएं
‘बूढ़ी दिवाली’ का इतिहास सैकड़ों साल पुराना माना जाता है। इस परंपरा का संबंध भगवान श्रीराम के वनवास और उनके विजय यात्रा से जुड़ा है। मान्यता है कि जिस समय भगवान श्रीराम रावण का वध कर अयोध्या लौटे थे, उस समय हिमालय क्षेत्र में लोगों को इसका समाचार देर से मिला। इसी कारण वहां के लोग दिवाली को थोड़े समय बाद मनाते हैं। यह पर्व तब से ही वहां ‘बूढ़ी दिवाली’ के नाम से प्रचलित हो गया। इस परंपरा का पालन आज भी पूरी श्रद्धा के साथ किया जाता है और इसे मनाने का तरीका भी थोड़ा अनूठा है।

कैसे मनाई जाती है बूढ़ी दिवाली?
बूढ़ी दिवाली के अवसर पर हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के ग्रामीण इलाकों में विशेष तौर पर उत्सव मनाए जाते हैं। इस दिन लोग पारंपरिक वेशभूषा पहनते हैं और ढोल-नगाड़ों के साथ लोकनृत्य करते हैं। गायों और बैलों को सजाया जाता है, और लोग अपने घरों में पारंपरिक भोजन पकाते हैं। त्योहार के दिन मुख्यत: पशुओं के साथ पारंपरिक अनुष्ठान और नृत्य होते हैं, जो इसे एकदम अनोखा बनाता है। बूढ़ी दिवाली के दौरान पटाखों का उपयोग नहीं किया जाता, बल्कि इसे शांतिपूर्ण और सादगी से मनाया जाता है।
 
बूढ़ी दिवाली का आध्यात्मिक महत्व
इस त्यौहार का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इसे प्रकृति और पर्यावरण से जुड़े रहकर मनाया जाता है। बूढ़ी दिवाली के अवसर पर पटाखों की जगह लोगों का ध्यान देवताओं की पूजा, पशुधन की देखभाल और अपने पारंपरिक रीति-रिवाजों को निभाने पर होता है। इसे सादगी के साथ मनाने का उद्देश्य यह भी है कि समाज में सामूहिकता और अपनापन बना रहे। बूढ़ी दिवाली पर होने वाली सामूहिक पूजा और सामाजिक गतिविधियां इसे और भी महत्वपूर्ण बनाती हैं।

बूढ़ी दिवाली - अनोखी परंपराओं का परिचायक
भारत में दिवाली का पर्व यूं तो हर राज्य में अपने अलग अंदाज में मनाया जाता है, लेकिन बूढ़ी दिवाली की परंपराएं इसे और भी खास बनाती हैं। यह केवल एक पर्व नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक धरोहर है जो पीढ़ियों से चली आ रही है। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के लोग इस पर्व को गर्व के साथ मनाते हैं और इसे अपनी सांस्कृतिक पहचान मानते हैं। इसलिए, जब अगली बार आपको बूढ़ी दिवाली का नाम सुनाई दे, तो इसे भी भारत की विविधता और परंपराओं के प्रतीक के रूप में देखें।