शनिवार, 27 अप्रैल 2024
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Written By ND

हमें वसुधा जैसा जोशीला होना पड़ेगा

हमें वसुधा जैसा जोशीला होना पड़ेगा -
-मेनका गाँधी
वसुधा एक युवती है जो हाल ही में पीपुल फॉर एनिमल में शामिल हुई है। उसने अपना जीवन एक जीव विज्ञानी के रूप में प्रारंभ किया था, फिर उसने पत्रकारिता का प्रशिक्षण लिया और वह पत्रों का उत्तर देने, अनुसंधान करने तथा समूचे भारत से पशुओं की सहायता के लिए प्रतिदिन आने वाले एसओएस पत्रों के उत्तर देने में सहायता करने के लिए मेरे साथ जुड़ी थी।

वह पीएफए स्वयंसेवियों के दलों को शहर के आपराधिक क्षेत्रों में जाने तथा प्रतिदिन वहाँ से तस्करी किए हुए वन्य जीवों को उठाकर लाते हुए देखती थी और उसे उनके लिए प्रेम विज्ञप्ति बनानी होती थी। अंततः उसने स्वयं छापे मारने का निर्णय लिया। मेरे कार्यालय को प्रतिदिन वन्यजीव अपराधियों के पते तथा नाम देने वाली सूचनाएँ मिलती हैं। एक दिन शादीपुर जो कि पशुओं के तस्करों से भरा हुआ एक झुग्गी क्षेत्र है, में एक व्यक्ति से सूचना मिली।

सूचना देने वाले ने कहा कि एक आदमी ने एक भालू का बच्चा खरीदा है और वह उसे नेपाल ले जा रहा है। हमने पुलिस से संपर्क किया, परंतु वे उस क्षेत्र में जाने के लिए इच्छुक नहीं थे, क्योंकि वहाँ बहुत सारी छोटी-छोटी गलियाँ और एक कमरे वाले घर हैं। इसलिए उसने मेरे ड्राइवर, उसकी पत्नी तथा उसके छोटे बच्चे को लिया और वह उस बस्ती में गई।

  उसने अपनी माँ की बीमारी का बहाना कर एक कछुआ खरीदा। वह फिर वापस आई, जोस नामक एक अन्य पशु कल्याण हेतु छापा मारने वाले से संपर्क किया और दो दिन बाद वहाँ गई। उन्होंने घंटों तक प्रतीक्षा की।      
उसने पहले ड्राइवर के परिवार को यह कहने के लिए भेजा कि किसी भालू का बाल ढूँढ रहे हैं, क्योंकि उनके बच्चे का स्वास्थ्य ठीक नहीं है और एक तांत्रिक ने भालू के बाल के साथ पूजा करने का परामर्श दिया है। अततः उसे एक छोटी-सी अँधेरी झोपड़ी में ले जाया गया, जहाँ पर एक कोने में एक भालू के बच्चे को बाँधा गया था और उसकी नाक से खून बह रहा था। वह यह कहकर कि वह पैसा कार में छोड़ आया है, वापस आ गया और वसुधा तथा पुलिस ने फिर धावा बोल दिया। वह तस्कर भाग गया, किंतु वह भालू अब एक भालू अभयारण्य में है।

इससे उत्साहित होकर वह अपने लिए अगली सूचना की प्रतीक्षा करने लगी। कुछ दिनों बाद एक टेलीफोन कॉल के माध्यम से सूचना मिली, जिसमें कहा गया था कि सऊदी अरब के एक राजनयिक ने अपने शांति निकेतन के घर की छत पर एक नील गाय को रखा हुआ है।

वह वहाँ गई, उसने देखा तथा वन्यजीव विभाग को बुलाया। वे वहाँ गए, वह राजनयिक, जो राजदूत दूतावास में थर्ड सेक्रेटरी था, ने उसे ईद पर मारे जाने के लिए रखा हुआ था। वह उसके घर की दूसरी मंजिल के बरामदे पर था और कई सप्ताह से वहाँ धूप में रखा गया था। उस पशु को बचा लिया गया परंतु सरकारी विभाग ने उस राजनयिक के विरुद्ध मामला दर्ज करने से मना कर दिया। अंततः मीडिया के दबाव में उन्होंने ऐसा किया। उस पशु को डिहाइड्रेशन के लिए उपचार किए जाने के पश्चात असोला अभयारण्य में छोड़ दिया गया है।

अगले दिन उसे सूचना मिली कि एक व्यक्ति मांस के लिए कछुओं को बेच रहा है। वह दक्षिणपुरी क्षेत्र में एक बस्ती में गई और बसु नामक एक बांग्लादेशी को पाया जो बंगालियों को बेचे जाने के लिए कछुओं को काट रहा था तथा दिल्ली में बंगाली ही इस मांस को खाते हैं। 15 जीवित कछुए एक कोने में उल्टे पड़े हुए थे और अपनी मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहे थे (नरम शैल वाले कछुए जो वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के अंतर्गत संरक्षित हैं, को अंग-दर-अंग क्रूरतापूर्वक काटा जाता है। ग्राहक अपने मनपसंद अंग की ओर इशारा करते हैं और उसे जीवित, असहाय पशु से काटकर निकाला जाता है)।

उसने अपनी माँ की बीमारी का बहाना कर एक कछुआ खरीदा। वह फिर वापस आई, जोस नामक एक अन्य पशु कल्याण हेतु छापा मारने वाले से संपर्क किया और दो दिन बाद वहाँ गई। उन्होंने घंटों तक प्रतीक्षा की। पहले उन्हें बताया गया कि वह नदी में से और कछुओं को लाने के लिए मथुरा गया हुआ है, फिर उसे बताया गया कि वह एक नियमित ग्राहक को सप्लाई करने के लिए गया हुआ है।

अंततः उसकी पत्नी ने उन्हें जीवित कछुओं की पेशकश की और कहा कि केवल उसका पति ही कछुओं को काटना जानता है। जैसे ही उसने झोपड़ी के बंद कमरे को खोला, उसका पति वापस आ गया और इन दोनों ने कहा कि वे सारे माल को खरीदना चाहते हैं। वह 12 भारतीय सॉफ्ट शेल्ड कछुओं को उनकी कार में ले आया। उन्होंने उसे पकड़कर कार के अंदर डाल दिया तथा कार लेकर भाग पड़े। वे उसे मेरे पास ले आए और वह तत्काल सौदे के लिए तैयार हो गया कि यदि हम उसे छोड़ दें तो वह हमें दिल्ली के सबसे बड़े सप्लायर के पास ले जाएगा।

वसुधा तथा जोस उसके साथ एक अन्य झुग्गी क्षेत्र गोविंदपुरी में गए और उन्होंने वहाँ एक अन्य बंगाली निर्मल को पाया। इस बार उन्होंने वन्यजीव इंस्पेक्टरों को भी बुलाया। उन्होंने उसकी झुग्गी के पीछे एक बड़ा, गंदा टैंक पाया, जिसमें तीन किस्म के 58 कछुए थे, जिसमें से 5 तो 60 वर्ष की आयु के थे। उस व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया गया और कछुओं को एक बस में रखा गया, क्योंकि वे बहुत बड़े होने के कारण कार में नहीं जा सकते थे। वे अब मेरे घर में एक बड़ी प्लास्टिक की टंकी में हैं और उन्हें चंबल अभयारण्य में छोड़ा जाएगा।

उनमें से कइयों के अंग टूटे हुए थे। बड़े कछुओं के पैरों को आपस में कीलों से ठोंक दिया गया था। एक छोटा कछुआ अंधा था। घर लाते समय रास्ते में ही मर गया। वे भूखे थे तथा उनमें पानी की कमी थी। उन्हें आटे की गोलियाँ खिलाई जा रही थीं। यह राजधानी में अवैध कछुआ व्यापार का सबसे बड़ा भंडाफोड़ है, जिसमें भारतीय सॉफ्ट शेल कछुए, स्पॉटिड ब्लैक टेरापिन्स तथा इंडियन टेंट कछुए बचाए गए थे। इनका व्यापार करने वाले बसु तथा निर्मल, जो दोनों पश्चिम बंगाल के रहने वाले हैं, को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा 9, 49, 49 (बी) (1) के अंतर्गत गिरफ्तार कर लिया गया है और तीस हजारी जिला न्यायालय में मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट द्वारा उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेजा गया है।

वे इन कछुओं को 400 किलो से अधिक मांस के रूप में बेच देते। बचाई गई तीनों प्रजातियाँ भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची-1 के अंतर्गत संरक्षित हैं। उनका व्यापार, उन्हें रखना तथा उनका शिकार करना अथवा उनसे बने किसी पदार्थ को रखने पर 3 से 7 वर्ष तक की कैद, 20000 रु. का जुर्माना अथवा दोनों हो सकती है।

पीपुल फॉर एनिमल के मुख्यालय में पिछले रविवार को हुई एक बैठक के पश्चात दिल्ली के चार एनजीओ ने यह निर्णय लिया है कि दिल्ली तथा आसपास के क्षेत्रों में वन्यजीव अपराध को समाप्त करने के लिए वे, वन्य जीव विभाग तथा पुलिस मिलकर काम करेंगे। वाइल्ड लाइफ एसओएस ने एक वेबसाइट प्रारंभ की है जो दिल्ली में वन्यजीव अपराधियों तथा वन्यजीव अपराध व्यापार से संबंधित सूचना का एक डाटाबेस रखेगी। क्या आप भी अपने शहर में ऐसा कर सकते हैं? (लेखिका सांसद एवं पर्यावरणविद् हैं)