भारत में सिंधु 2,900 (किमी), ब्रह्मपुत्र 2,900 (किमी), गंगा 2,510 (किमी), गोदावरी 1,450 (किमी), नर्मदा 1,290 (किमी), कृष्णा 1,290 (किमी), महानदी 890 (किमी), कावेरी 760 (किमी) आदि प्रमुख नदियां हैं, हालांकि भारत की प्यास बुझाने वाली इन नदियां का अस्तित्व अब संकट में है।
एक ओर जहां बिजली उत्पादन के लिए नदियों पर बनने वाले बांध ने इनका दम तोड़ दिया है तो दूसरी ओर मानवीय धार्मिक और पर्यावरणीय गतिविधियों ने इनके अस्तित्व पर संकट खड़ा कर दिया है। पिछले कुछ वर्षों में औद्योगिकीकरण एवं शहरीकरण के कारण प्रमुख नदियों में प्रदूषण खतरनाक स्तर तक बढ़ गया है। सिंचाई, पीने के लिए, बिजली तथा अन्य उद्देश्यों के लिए पानी के अंधाधुंध इस्तेमाल से भी चुनौती काफी बढ़ गई हैं। इसके कारण तो कुछ नदियां लुप्त हो गई है और कुछ लुप्त होने के संकट का सामना कर रही है।
इस देश में वृक्ष, नदी और प्रकृति के अन्य तत्वों की पूजा की जाती है, लेकिन यही पूजा करने वाले लोग धर्म के नाम पर पाप भी करते हैं। गंगा, गोदावरी, कावेरी आदि प्रमुख नदियों की आरती की जाती है, लेकिन सभी जानते हैं कि नदी के प्रति ये लोग कितने संवेदनशील हैं। कुंभ स्नान, सोमवती अमावस्या का स्नान, कार्तिक माह के स्नान, गणेश विजर्सन, ताजिया ठंडा करने के नाम पर नदियों को प्रदूषित कर लोग अपने अपने घर जाकर समझते हैं कि हमने पुण्य कमा लिया, लेकिन असल में वे सभी नदी के अपराधी हैं। आओ जानते हैं नदी संबंधी अपराध के बारे में।
1.नदी के तट पर नहीं बैठना चाहिए : गंगा नदी को छोड़कर अन्य किसी नदी के तट पर नहीं बैठना चाहिए। गंगा नदी को सात्विक तरंगों वाली नदी माना गया है। गंगा तट का वायुमंडल शुद्ध और चैतन्यमय माना गया है। अन्य नदियों के तट पर बैठने के कई तरह के भौतिक और अभौतिक नुकसान हो सकते हैं।
2.नदी में कपड़े धोना : देश की सभी नदियों पर एक धोबी घाट जरूर मिलेगा। इसके अलावा जो लोग नहाने आते हैं वे भी अपने कपड़े खूब साबुन लगाकर धोते हैं और नदी को प्रदूषित करके चल देते हैं। नदी किनारे बसे लोगों को नदी में गंदे कपड़े नहीं साफ करने चाहिए। नदी में डिटर्जेंट, साबून के प्रयोग से परहेज करना चाहिए।
3. नदी किनारे मल-मूत्र त्यागना: यह तो शर्म की ही बात है कि बहुत से लोग नदी किनारे लघुशंका करते या मल त्यागते हैं, लेकिन हद तो तब हो जाती है जबकि लोग नहाते वक्त ही लघुशंका करते हैं। यह नदी के प्रति घोर अपराध माना जाएगा।
4. तट पर दाह-संस्कार करना या शव प्रवाहित करना : बहुत से हिन्दू अपने स्वजनों को जलदाह देते हैं। न मालूम वे ऐसा कौन-सा शास्त्र पढ़कर करते हैं, लेकिन यह उनके स्वजनों के प्रति अपमान ही नहीं बल्कि नदी के प्रति घोर अपराध भी है। कई लोग अपने रिश्तेदारों के शव नदी में बहा देते हैं क्योंकि वे या तो इसे पवित्र समझते हैं या फिर उनके पास अंतिम संस्कार करने के लिए पैसे नहीं होते। हालांकि ये जाहिलाना कृत्य है।
इसके अलावा बहुत से लोग गंगा, यमुना या अन्य नदी के तट पर दाह संस्कार भी करते हैं। यह भी नदी के प्रति अपराध है। अधजली या अनजली लाशें और जानवरों के कंकाल आदि द्वारा भी नदी प्रदूषित होती है।
5.नदी में कचरा फेंकना : नदी में वैसे तो कई लोग अपने घर से धार्मिक कचरा भरकर लाते हैं और फेंक जाते हैं। होटलों और रेस्टोरेंट के लोग भी नदी में अपने यहां का कचरा फेंक जाते हैं। लेकिन इसके अलावा नदी को सबसे ज्यादा प्रदूषित करती औद्योगिक इकाइयां और नदी किनारे बसे शहर के नाले हैं।
औद्योगिक कचरा और म्यूनिसिपल सीवेज बहाकर लाने वाले नाले, सीवेज पम्पिंग स्टेशन और सीवेज सिस्टमस्, उद्योगों से व्यापारिक कचरा आदि नदी में चला जाता है जिसके चलते नदी भयंकर रूप से प्रदूषित हो गई है।
इसके अलाव प्रदूषण खेतों से बहकर आने वाले रसायन और फर्टीलाइजर, कचरा डालने के लिए इस्तेमाल होने वाले क्षेत्रों से बहकर आने वाली गंदगी, खुले में शौच और अधजली या अनजली लाशें और जानवरों के कंकाल, धोबी घाट, मवेशियों आदि द्वारा भी नदी प्रदूषित होती है।
6.नदी के जीवों का शिकार : नदी के जलीय जीवों के शिकार से परहेज करना चाहिए। ये जलीय जीव नदी को स्वच्छ बनाए रखने में सहायक होते हैं। नदी के जीवों जैसे मछली, कछुआ, घड़ियाल, मेंढक आदि सभी प्रदूषण को दूर करते हैं।
7.नदी से सिंचाई : नदी से अंधाधुंध तरीके से सिंचाई की जा रही है। एक ओर जहां नहर निकाल दी गई है वहं दूसरी ओर बड़े बढ़े पम्प लगाकर भी नदी के पानी को बाहर निकाला जा रहा है। इसके लिए किसी भी प्रकार का कोई मापदंड नहीं बनाया गया है। नदी से मुफत में पानी निकालकर बेचा भी जा रहा है।
पहले गांवों में अधिक से अधिक कुएं और तालाब होते थे। इसके अलावा तलैया, खाल या छोटे नाले होते थे जहां पर बारिश का पानी रोककर उसका उपयोग सिंचाई के लिए किया जाता था, लेकिन अब सिंचाई का एक मात्र साधन नहरें हैं। सरकारी योजनाओं के तहत अब दूर तक नदी की नहरें पहुंचा दी गई है। इन नहरों के चलते भी नदी को बहुत नुकसान झेलना पड़ रहा है। नदियों को एक दूसरे से जोड़ने की प्रक्रिया तो पूर्णत: अवैज्ञानिक है।
प्रस्तुति : अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'