ड्रैगन ने जिस तरीके से भारतीय बाजार पर शिकंजा कसा है उससे भारतीय उत्पादों की कमर टूट गई है। उड़ी हमले व लक्षित हमले के बाद राष्ट्रवाद की जो भावना भड़की है, उससे चीनी आइटम की बिक्री निश्चित रूप से प्रभावित होने जा रही है और कारोबारी भी अब अगले साल से चीनी आइटम की बिक्री और आयात के पक्ष में नहीं हैं, लेकिन पहले से माल मंगाने वाले कारोबारियों को घाटा उठाना पड़ेगा।
मैन्युफैक्चरर्स व व्यापारियों ने भी अब उपभोक्ताओं के सामने चीनी माल रखना कम कर दिया है। दिवाली पर चीनी पटाखों व उनके सभी उत्पादों के इस्तेमाल पर रोक लगाकर चीन को सबक सिखाया जा सकता है।
क्या-क्या आता है चीन से?
चीन, भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार देश है। भारत के कुल आयात का 6ठा हिस्सा चीन से आता है। साल 2015-16 में भारत ने चीन को 9 अरब डॉलर यानी करीब 60 हजार करोड़ रुपए के सामान का निर्यात किया जबकि चीन से हमने कहीं ज्यादा 61 अरब डॉलर यानी करीब 4 लाख करोड़ रुपए का सामान आयात किया यानी निर्यात से करीब 6 गुना ज्यादा सामान हम चीन से लेते हैं।
इन चीनी सामानों को 3 वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। पहले में वो जिनका विकल्प उपलब्ध नहीं है; दूसरे में वो जिनका विकल्प तो उपलव्ध है, पर वितरण गठजोड़ की वजह से विकल्प बाजार तक पहुंचते नहीं और तीसरे में वो सामान जिन्हें बहुराष्ट्रीय कंपनियां चाइना में निर्मित करवाती हैं।
चीन से निम्न सामान आयात किया जाता है:-
इलेक्ट्रॉनिक इक्विपमेंट, बड़ी-छोटी मशीनरी (इसमें 10 रुपए की दाढ़ी बनाने वाली रेजर से 10 लाख की CNC मशीन तक हो सकती है), ऑर्गेनिक केमिकल, फर्टिलाइजर, फर्नीचर, लाइटिंग, मेडिकल और टेक्निकल इक्विपमेंट, लोहे और स्टील के प्रॉडक्ट। इसके साथ ही 1. राउटर, 2. मोडेम, 3. लेन केबल, 4. एडॉप्टर, 5. डिश, 6. मोबाइल, 7. मोबाइल टॉवर में लगने वाला सामान, 8. कैमरे, 9. ड्रोन और भी बहुत से घर पर उपयोग किए जा रहे सामान जैसे 1. टीवी, 2. फ्रिज, 3. वॉशिंग मशीन, 4. लैपटॉप, 5. मोडेम, 6. मोबाइल, 7. गेम्स (सोनी, माइक्रोसॉफ्ट), 8. कार में लगने वाले सामान, 9. बाइक में लगने वाले सामान, 10. किचन के बहुत से सामान।
हम सभी कोशिश हमेशा करते हैं कि भारतीय कंपनियों के ही उत्पाद खरीदें, पर धीरे-धीरे लगभग सभी जगहों पर विदेशी कंपनियों का कब्जा होता जा रहा है, यहां तक कि मॉल में खरीदने की जगह हर सामान छोटी दुकान से खरीदने शुरू कर दिए। पतंजलि के उत्पाद ही सबसे पहले अमेजन पर खाली होते हैं, तो इससे भी पता चलता है कि पतंजलि के उत्पादों की मांग बहुत ही ज्यादा है। पतंजलि के आउटलेट्स पर उनके खुद के ही उत्पाद उपलब्ध नहीं हैं, बहुत मारामारी है।
चीनी सामान का बहिष्कार कैसे करें?
1. सभी सरकारी और निजी स्कूलों में जाकर वहां के प्रिंसीपल और मैनेजमेंट समिति के लोगों से मिलकर बच्चों में 'स्वदेशी अपनाओ' का नारा बुलंद करने के मुद्दे पर बातचीत की जा सकती है। इसके लिए संगठन की ओर से कुछ स्लोगन भी तैयार किए जाने चाहिए। इसमें ‘जब बाजार जाएंगे, माल स्वदेशी लाएंगे’, ‘स्वदेशी अपनाओ, देश बचाओ’, ‘स्वास्थ्य हित में चीनी छोड़ो, राष्ट्रहित में चाइनीज छोड़ो’, 'विदेशी वस्तु त्यागकर बोलो वंदेमातरम्' मुख्य रूप से शामिल हैं। सरकारी स्कूलों में प्रार्थना सभा में इन नारों के जरिए बच्चों को संकल्प दिलाने की कोशिश होना चाहिए।
2. चीनी वस्तुओं के प्रयोग को कम करने के लिए उन पर एंटी-डंपिंग ड्यूटी बढ़ा देना चाहिए, ऐसा करने पर व्यापारी चीनी वस्तुओं को खरीद ही नहीं सकेंगे और उन्हें स्वदेशी सामान खरीदने पर ही मजबूर होना पड़ेगा। दुनिया में अमेरिका ऐसा देश है जिसने चीनी उत्पादों पर 249 फीसदी एंटी-डंपिंग ड्यूटी लगाई हुई है। इसकी वजह से चीनी सामान अमेरिका में आसानी से नहीं पहुंच पाता है।
3. चीन के खिलाफ अभियान चलाना है तो यह अभियान भी चले कि किस-किस कंपनी का निवेश चीन में है। पूरी लिस्ट आए कि इनका माल नहीं खरीदेंगे और खरीद लिया है तो उसे कूड़ेदान में फेंक देंगे। उन कंपनियों से कहा जाए कि अपना निवेश वापस लाएं। अपने माल का ऑर्डर कैंसल करें। भारत में जहां-जहां चीन है, उसे खदेड़ देना चाहिए।
4. अगर चीन जैसे देश का बहिष्कार करना है तो खुद के सामान को सस्ता बेचना होगा। उसे लोगों की पहुंच तक ले जाना होगा। लोग खुद-ब-खुद अपने घर का सामान खरीदना शुरू कर देंगे। घर में दाल खानी महंगी होने लगेगी तो लोग बाहर की सस्ती घटिया दाल ही खाएंगे, क्योंकि और कोई चारा ही नहीं है। दीया बनाने और फिर उसे बेचने में कितनी मुश्किलें हैं, इसे सरल करना होगा और किसी भी थोक की दुकान से ज्यादा सामान खरीदकर छोटी दुकान में आसानी से बेचने के अंतर को अगर नहीं समझेंगे तो शायद ऐसे ही तुलना करेंगे, जैसे कि अभी कर रहे हैं।
5. भारतीय बाजारों में चाइना के सामानों के भरे होने के पीछे उनके सस्ते होने के साथ-साथ पीछे के वितरण तंत्र का भी बहुत बड़ा हाथ है। यहां हमारा असली जोश काम आएगा। आगे से किसी भी दुकान पर जाएं तो भारतीय विकल्प मांगें।
दिवाली का दीपक तो सदा से गांव का कुम्हार बनाता रहा है, आखिर हम उसे आधुनिक क्यों नहीं कर पाए? इस कुटीर उद्योग पर क्यों सरकारों का ध्यान नहीं जाता? केवल 'मेक इन इंडिया' से कुछ नहीं होगा, उसकी सप्लाय भी अच्छी करना होगी और इसके लिए सरकार को ही कोई अच्छा इनिशिएटिव लेना चाहिए।
इस दिवाली पर क्या इस झोपड़ी,
जलेगा वह दीया जो बुझ रहा है।
या उन विशाल अग्निशिखाओं,
की लपट लील लेगी उसकी टिमटिमाहट।