• Webdunia Deals
  1. खेल-संसार
  2. »
  3. क्रिकेट
  4. »
  5. आलेख
Written By WD
Last Modified: सोमवार, 12 नवंबर 2007 (12:04 IST)

पलायन तो कोई तरीका नहीं...

पलायन तो कोई तरीका नहीं... -
-अमय खुरासिय
पिछले दिनों राहुल द्रविड़ का कप्तानी से त्यागपत्र देना, फिर सचिन तेंडुलकर का इस जिम्मेदारी से नकार करना अनेक प्रश्नों को जन्म देता है। ऐसा क्या हो गया कि हमारे देश के क्रिकेटर इतने गौरवपूर्ण, गरिमामय पद को ठुकरा रहे हैं।

एक क्लब टीम की, संभागीय टीम की कमान संभालना गर्व की बात होती है फिर यह तो भारतीय टीम की बात है। कुछ तो है, वरना इतना सम्मानजनक पद क्यों अस्वीकार किया जा रहा है? सर का ताज ना जाने क्यों इतनी ठोकरें खा रहा है? यह मंथन का विषय है।

भारतीय क्रिकेट में सचिन का योगदान सर्वविदित है, भले ही वह विश्व कप (1999 इंग्लैंड) में खेली गई यादगार पारी हो जब वे अपने पिता की अंत्येष्टि कर राष्ट्रहित के लिए मैदान पर हाजिर थे या फिर अपने कॅरियर के शुरुआती दौर में पाकिस्तान के खिलाफ लहूलुहान हुआ यह 16 वर्षीय बालक पिच पर डटा हुआ था।

ऐसे और भी उदाहरण हैं उनकी कर्तव्यपरायणता के। सचिन का अनुभव, समर्पण, निष्ठा और व्यक्तित्व अतुलनीय है फिर ऐसा क्या हुआ कि इतने विशाल और समर्पित व्यक्तित्व वाला सिपाही आज इतने प्रतिष्ठित पद को ठुकरा रहा है। राहुल द्रविड़ के इस्तीफे के बाद उनका इस पद को पाना स्वाभाविक था, उनकी मौन स्वीकृति भी थी, फिर एकाएक लिया यह निर्णय समझ से परे है।

विचारणीय यह भी है कि क्या किसी खिलाड़ी को यह अधिकार है कि वह उसे दी गई जिम्मेदारी से मुँह मोड़े, वह भी तब जब वह पेशेवर रूप से अनुबंधित है। सारे खिलाड़ियों को अनुबंध के तौर पर एक मेहनताना मिलता है और उसके बदले उन्हें अपने उत्तरदायित्व निभाने पड़ते है। क्या कल को दबाव के कारण भारतीय सेना के सेनाध्यक्ष भी अपने पद से इस्तीफा दे सकते हैं। परिस्थितियाँ कितनी भी विषम हों, पलायन न तो उत्तर है और न ही तरीका।

जब राष्ट्रहित सामने हो तो सब हित गौण हो जाते हैं, मैदान कोई भी हो। खिलाड़ी को मैदान में हर पल की चुनौती स्वीकारना चाहिए और वह इस कर्तव्यबोध से बँधा है।

जीवन के कुछ निर्णयों में उन्मुक्त इच्छाशक्ति का त्याग आवश्यक हो जाता है और केवल समर्पण ही सर्वोपरि रहता है। कुछ तनाव और दबाव बहुत आवश्यक होते हैं और उन्हें पूरा करने में प्रसन्नाता मिलती है ठीक उसी तरह जैसे प्रसव पीड़ा के बाद माँ नवजात को देखकर महसूस करती है।