Post corona ‘ब्रेन डिसीज’ बन रहा मरीजों के लिए तकलीफदेह! रिसर्च में खुलासा
- यूएस के करीब 2 लाख 36 हजार मरीजों पर रिसर्च
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कोरोना के बाद 34 प्रतिशत लोग मानसिक बीमारी का शिकार
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17 प्रतिशत मरीजों में एन्जॉयटी यानी चिंता की समस्या
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14 प्रतिशत मरीजों में मूड स्विंग जैसे मेंटल डिसऑर्डर
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50 में से 1 मरीज को स्ट्रोक आया जिसमें बने खून के थक्कों से दिमाग पर असर
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एक रिसर्च में नींद न आने की समस्या से जूझ रहे लोगों की संख्या करीब 40 प्रतिशत है
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जान ही नहीं ले रहा, ब्रेन डिसीज भी दे रहा कोरोना
कोरोना जान ही नहीं ले रहा, मरीजों को मानसिक रूप से बीमार भी कर रहा है। हाल ही में हेल्थ जर्नल लॉन्सेट में प्रकाशित एक रिसर्च में यह चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है।
रिचर्स करने वाले विशेषज्ञों ने पाया कि कोरोना संक्रमण से ठीक होने वाले करीब 34 प्रतिशत लोग किसी न किसी तरह की मानसिक बीमारी के लिए डॉक्टरों के पास पहुंचकर खुद डायग्नोस्ट करवा रहे हैं। इनमें कई तरह के न्यूरोलॉजिकल और साइक्लोजिकल डिसऑर्डर शामिल हैं।
खास बात यह है कि कोरोना संक्रमण से ठीक होने के करीब छह महीनों के बाद मरीजों में इस तरह के लक्षण सामने आ रहे हैं।
सबसे ज्यादा यानी करीब 17 प्रतिशत मरीजों में एन्जॉयटी यानी चिंता की समस्या हो रही है। जबकि 14 प्रतिशत मरीजों में मूड से संबंधित डिसऑर्डर सामने आ रहे हैं, जैसे मूड स्विंग आदि।
सबसे ज्यादा चिंता वाली बात यह है कि कोरोना से ठीक होने वाले मरीजों में ब्रेन डिसीज के मामले सामने आ रहे हैं। बता दें कि यह अब तक की सबसे व्यापक हेल्थ स्टडी है, जिसमें यूएस के करीब 2 लाख 36 हजार ऐसे मरीजों पर रिसर्च की गई जो कोरोना के मरीज थे। विशेषज्ञों ने इनके परिणामों का दूसरे सामान्य मरीजों के साथ भी तुलनात्मक अध्ययन किया।
कोरोना से संक्रमित 50 में से 1 मरीज को एक खास तरह का स्ट्रोक आया जिसमें खून के थक्के बन जाते हैं जो सीधे तौर पर व्यक्ति के दिमाग को प्रभावित करते हैं।
इसके साथ ही हाल ही में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की एक रिसर्च में अहम भूमिका निभाने वाले डॉ मैक्स टैक का इस बारे में कहना है कि रिसर्च के हमारे परिणाम संकेत देते हैं कि कोविड -19 के बाद फ्लू संक्रमणों की तुलना में मस्तिष्क रोग और मानसिक विकार अधिक आम हुए हैं। अब यह देखना होगा कि छह महीने के बाद मरीजों में किस तरह के लक्षण और रोज नजर आते हैं।
यह भी कहती है रिसर्च
इन मानसिक बीमारियों में ऐंग्जाइटी, इंसोमनिया, डिप्रेशन और ओब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर (OCD) और पोस्ट ट्रोमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) जैसी समस्याएं देखने को मिल रही हैं। इनमें भी ज्यादातर रोगियों में नींद ना आने की समस्या सबसे अधिक देखी गई। इस स्थिति में ये लोग हर समय बेचैनी का अनुभव करते हैं।