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Written By Author विकास सिंह
Last Modified: गुरुवार, 2 दिसंबर 2021 (17:45 IST)

ओमिक्रॉन वैरिएंट से लड़ाई में 50 फीसदी आबादी कैसे बनी सबसे बड़ी चुनौती?

वैक्सीनेशन की धीमी रफ्तार ओमिक्रॉन वैरिएंट के खिलाफ लड़ाई में सबसे बड़ा चैलेंज

ओमिक्रॉन वैरिएंट से लड़ाई में 50 फीसदी आबादी कैसे बनी सबसे बड़ी चुनौती? - How did 50% of the population become the biggest challenge in the fight against the Omicron variant?
देश में कोरोना वैरिएंट ने अपनी दस्तक दे दी है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कर्नाटक में दो लोगों के ओमिक्रॉन वैरिएंट से संक्रमित होने की पुष्टि कर दी है। वहीं खतरनाक ओमिक्रॉन वैरिएंट से मुकाबला करने के लिए देश में तैयारी युद्धस्तर पर तैयारियां हो रही है। सरकार का अब पूरा जोर देश में वैक्सीनेशन की रफ्तार बढ़ाने पर है। ओमिक्रॉन के नए चैलेंज के बाद वैक्सीनेशन के बाद वैक्सीन का कवरेज बढ़ाने पर जोर दे रहा है इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि देश में अब तक मात्र 49 फीसदी लोगों को वैक्सीन की दोनों डोज लग पाई है।
कोरोना वायरस को लेकर हुई अब तक स्टडी के आधार पर वैज्ञानिकों का दावा है कि वैक्सीन की दोनों डोज लगाने के बाद कोरोना संक्रमण का खतरा कम होने के साथ वायरस से होने वाली मौतों को भी टाला जा सकता है। आईसीएमआर स्टडी बताती है कि जिन वैक्सीन की पहली डोज के बाद 96 फीसदी और जिनको वैक्सीन को दोनों डोज लगी है उनमें 98 फीसदी लोगों को गंभीर बीमार और मौत की संभावना नहीं है। 
अब जब कोरोना के ओमिक्रॉन वैरिएंट के चलते देश में तीसरी लहर की संभावना जताई जाने लगी है तब ऐसे राज्य जहां वैक्सीनेशन की रफ्तार धीमी होने के साथ एक बड़ी आबादी अब सेंकड डोज से दूर है तब चुनौतियां कहीं अधिक बढ़ गई है। अगर आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो देश में में झारखंड में अब तक मात्र 66 फीसदी आबादी को सिंगल डोज और 30 फीसदी आबादी को डबल डोज लगी है। वहीं पंजाब में मात्र 32 फीसदी, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में 42 फीसदी, छत्तीसगढ़ में 47 फीसदी और पश्चिम बंगाल में मात्र 40 फीसदी लोगों को पूर्ण वैक्सीनेशन हो पाया है।  

ओमिक्रॉन खतरे के बीच देश के कुछ राज्यों में वैक्सीनेशन की इस धीमी रफ्तार पर को वैज्ञानिक सबसे बड़ा खतरा बता रह है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में आनुवंशिकी (जैनेटिक्स) के प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे कहते हैं कि  देश में वर्तमान में जो वैक्सीनेशन की रफ्तार चल रही है वह पांच फीसदी की दर से एंटीबॉडी बढ़ा रहा है लेकिन अब देश की आबादी 10 फीसदी की दर से एंटीबॉडी खो भी रही है।

भले ही वैक्सीनेशन का आंकड़ा बढ़कर 75 फीसदी से 80 से 85 फीसदी हो रहा है लेकिन दिसंबर के बाद बड़ी आबादी वैक्सीन के चलते आई एंटीबॉडी को खोने लगेगी और उसके दोबारा संक्रमण की चपेट में आने का खतरा पैदा हो जाएगा। 

इसके साथ ही अब तक बच्चों की वैक्सीन को लेकर भी कोई फैसला नहीं होने से एक बड़ी आबादी के संक्रमित होने का खतरा मंडरा रहा है। इसके साथ ज्ञानेश्वर चौबे कहते हैं कि वैक्सीनेशन अभियान की सफलता पर ऐसे 10 से 15 फीसदी आबादी बड़ी चुनौती बनती हुई दिख रही है। जो वैक्सीन लगवानी ही नहीं चाह रही है। ऐसे लोगों के लिए सरकार को कुछ कठोर कदम उठाना चाहिए। 
 
इसके साथ ज्ञानेश्वर चौबे कहते है कि अगर देखा जाए तो दक्षिण अफ्रीका में ओमिक्रॉन संक्रमित लोगों में हल्के लक्षण आ रहे है,इसका बड़ा कारण अफ्रीका के लोगों में पाया गया जीन है। वहीं वह आगे कहते हैं कि भारतीय लोगों में प्राकृतिक एंटीबॉडी, जो अब तक अन्य सभी एंटीबॉडी से बेहतर है. इसलिए, हम तुलनात्मक रूप से यूरोप की तुलना में  अच्छी स्थिति में दिख रहे हैं।"
 
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