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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : शनिवार, 9 मई 2020 (13:38 IST)

Ground Report : गांव में रोजी-रोटी के लिए कुछ भी कर लेंगे, अब रोटी की तलाश में परदेस नहीं जाएंगे !

औरंगाबाद हादसे और घर पहुंचने की जद्दोजहद ने बदला प्रवासी मजदूरों का नजरिया

Ground Report : गांव में रोजी-रोटी के लिए कुछ भी कर लेंगे, अब रोटी की तलाश में परदेस नहीं जाएंगे ! - Ground Report: Migrants workers may be no move in future for jobs
औरंगाबाद के दर्दनाक हादसे के बाद रेलवे ट्रैक पर पड़ी रोटियों की तस्वीरें ने हर किसी को अंदर से झकझोर दिया है। रेलवे ट्रैक पर पड़ी रोटियां उन मजदूरों की थी जो इन्हीं रोटियों की तलाश में अपना गांव, अपनी जमीन छोड़कर परदेस गए थे। लॉकडाउन में हुई तालाबंदी के बाद शहर में रोजी रोटी का कोई जुगाड़ नहीं हो पाने के कारण यह सभी गांव लौटने की जद्दोजहद में दर्दनाक हादसे का शिकार बन गए।

औरंगाबाद हादसे में बाल-बाल बचे धीरेंद्र बताते हैं कि तालाबंदी में रोजगार छीनने के बाद जब बीवी और बच्चों का पेट पालना भी मुश्किल हो गया तब सभी ने वापस घर जाने का निर्णय लिया। धीरेंद्र की बातों से इतना साफ है कि जब शहर में रोटी की तलाश पूरी नहीं हो पाई तो एक बार फिर उसी रोटी की तलाश में गांव की ओर रुख करने को मजबूर होना पड़ा। 
 
पेट की आग को बुझाने के लिए दो जून की रोटी की तलाश मध्यप्रदेश से लाखों मजदूर बड़े शहरों की ओर पलायन करते है। मध्यप्रदेश में पलायन की मार सबसे अधिक झेलने वाले बुंदेलखंड में इन दिनों लगातार मजदूरों की घर वापसी का सिलसिला जारी है। वेबदुनिया ने ऐसे कई प्रवासी मजदूरों से बात कर यह जनाने की कोशिश की क्या वह लॉकडाउन खत्म होने के बाद फिर से रोटी की तलाश में वापस शहर को ओर लौंटेगे या गांव में रहकर रोजी रोटी की तलाश करेंगे।    
 
छतरपुर जिले के गौरिहार तहसील के रहने वाले दद्दूपाल उन खुशनसीब लोगों में से एक हैं जिन्होंने मुंबई से छतरपुर तक का सफर पैदल और ट्रकों में लिफ्ट लेकर  पूरा किया। दद्दूपाल अपने सफर के बारे में बताते हुए कहते हैं कि वह मुंबई से छतरपुर तक का सफर सात दिन में किसी तरह पूरा किया। इस दौरान वह सैकड़ों किलोमीटर पैदल चले तो रास्ते में चलने वाले ट्रक चालकों ने भी उनकी काफी मदद की।
 
मुंबई में पेंटर का काम करने वाले दद्दूपाल कहते हैं कि लॉकडाउन के बाद हुई तालाबंदी में उनका रोजगार छीन लिया। एक महीने तक किसी तरह खाने पीने का जुगाड़ किया लेकिन जब राशन खत्म होने लगा और कोई रास्ता नहीं दिखा तो पैदल ही गांव की ओर चल दिए।

करीब 100 किलोमीटर का सफर करने के बाद काफी मिन्नतों के बाद ट्रक में लिफ्ट लेकर इंदौर पहुंचे उसके बाद भोपाल,सागर होते हुए छतरपुर तक पहुंचे। दद्दूपाल कहते हैं कि अब रोजी रोटी के लिए बाहर नहीं जाएंगे और गांव में कुछ भी करना पड़े वहीं करेंगे कमाने के लिए बाहर नहीं जाएंगे।
 
लॉकडाउन के चलते गुजरात में फंसे जयप्रकाश कहते हैं कि अब गांव में ही भविष्य दिख रहा है, जैसे-तैसे घर पहुंच जाएं, फिर अपने गांव में ही कमा खा लेंगे। खेती, मजदूरी तो आखिरी विकल्प के रूप में मिल ही जाता है।
 
छतरपुर जिले के गौरिहार तहसील के ही गोयरा गांव के रहने वाले अमित अग्निहोत्री जो लॉकडाउन के चलते पानीपत में पिछले कई दिन से फंसे हैं, वह परदेस में इतने मजबूर हो गए है कि रोटी के लिए लोगों के जानवरों की सेवा का काम कर रहे हैं। फोन पर बातचीत में  अमित कहते हैं कि कभी सोचा नहीं था कि बाहर जाकर ऐसा काम भी करना पड़ेगा, अब तो घर ही रहूंगा चाहे कुछ भी करूं,लेकिन बाहर जाने का भूत नहीं पालूंगा। 
 
लॉकडाउन में हुई तालाबंदी के बाद सुरक्षित वापसी करने वाले मथुरा कहते हैं अभी मैं खुश हूं क्योंकि सुरक्षित घर वापसी हो गई है, भविष्य में बाहर जाने के सवाल पर कहते हैं कि जब कोरोना खत्म हो जाएगा तब बाहर जाने की सोचेंगे,अभी तो कुछ भी नहीं सोचा है।. 
इसी तरह पिछले सात सालों से राजस्थान, दिल्ली, गुजरात जैसे राज्यों में कई फैक्ट्रियों में काम कर चुके मोहन अहिवार खुद को भाग्यशाली बताते हुए कहते हैं कि लॉकडाउन के 15 दिन पहले होली के त्यौहार के चलते चंडीगढ़ से मां-बाप के साथ घर आ गए थे। मोहन चंडीगढ़ में तिरपाल बनाने वाली फैक्टरी में काम करते थे। वहीं भविष्य में बाहर जाने के सवाल पर कहते है कि कोरोना खत्म होने के बाद बाहर जरूर जाएंगे, लेकिन इस बार अकेले मां-बाप घर पर ही रहेंगे।