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Last Updated : मंगलवार, 1 जून 2021 (21:17 IST)

Covid 19 ने दिखाया कि एक ही रास्ते पर चले तो दुनिया मुश्किलों से आगे निकल जाएगी

Covid 19 ने दिखाया कि एक ही रास्ते पर चले तो दुनिया मुश्किलों से आगे निकल जाएगी  | Coronavirus
इयान गोल्डिन, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय
 
ऑक्सफोर्ड (यूके)। त्रासद मौतों, कष्टों और दुखों के बावजूद यह महामारी इतिहास में मानवता को बचाने वाली घटना के रूप में दर्ज की जा सकती है। इसने हमारे जीवन और समाज को एक स्थायी पथ पर फिर से चलने देने का एक पीढ़ी में एक बार आने वाला अवसर पैदा किया है। वैश्विक सर्वेक्षणों और प्रदर्शनों ने यह साबित किया है कि दुनिया अब एक नई सोच के साथ जीना चाहती है और पूर्व महामारी की दुनिया में नहीं लौटना चाहती।

 
कोविड-19 के विनाशकारी परिणामों ने एक गहरी मान्यता दी है कि हमेशा की तरह सब कुछ अत्यधिक अस्थिर है और हमारे सबसे गहरे भय का स्रोत है। इसने उन मानसिक दर्पणों को चकनाचूर कर दिया है जिन्होंने हमें अतीत से नाता तोड़ने और नए क्षितिज को अपनाने से रोका था।
 
'बचाव : एक वैश्विक संकट से बेहतर दुनिया की ओर' में मैं दिखाता हूं कि कैसे कोरोनोवायरस तबाही ने प्रदर्शित किया है कि नागरिक अपने व्यवहार को बदलने के लिए तैयार होते हैं, जब ऐसा करने की जरूरत हो और यह कि सरकारें अपनी आर्थिक तंगी से बाहर निकलने में सक्षम हैं।
 
वैश्वीकरण और विकास पर मेरे काम ने मुझे विश्वास दिलाया है कि राष्ट्रीय सीमाओं के पार (व्यापार, लोगों, वित्त, दवाओं और सबसे महत्वपूर्ण विचारों) का प्रवाह एक बहुत अच्छी बात है, हालांकि अगर उन्हें ठीक से संभाला नहीं जाए तो यह भी बढ़ते जोखिम और असमानता का कारण बन सकते हैं।
 
मैं भविष्यवाणी करता रहा हूं कि एक वैश्विक महामारी की आशंका थी, जो अनिवार्य रूप से आर्थिक मंदी का कारण बनेगी। एकमात्र सवाल यह है कि इस वैश्विक आपदा को टालने के प्रयास क्यों नहीं किए गए और हमेशा की तरह मुसीबत को आता देखकर आंखें क्यों मूंद ली गई? मेरी किताब बताती है कि हमें इसकी तत्काल आवश्यकता क्यों है?

 
निष्क्रियता के पुराने बहाने अब विश्वसनीय नहीं रहे। अब करना यह है कि स्वास्थ्य और आर्थिक आपात स्थितियों के प्रति हमारी प्रतिक्रियावादी सोच को सक्रिय नीतियों और कदमों में बदला जाए ताकि साझा समृद्धि की एक समावेशी और टिकाऊ दुनिया का निर्माण किया जा सके। महामारी से पहले यह अप्राप्य लग सकता था, आदर्शवादी भी। जिन परिवर्तनों को उभरने में 1 दशक या उससे अधिक समय लगा होगा, वे लगभग रातोरात हो गए हैं। तेज राहत, सकारात्मक परिवर्तनों में प्रकृति के महत्व, आवश्यक श्रमिकों की भूमिका, विज्ञान और विशेषज्ञों के योगदान और परिवार, दोस्तों और सहकर्मियों के सहयोगी होने की गहरी मान्यता रही है।
 
लेकिन महामारी ने देशों के भीतर और उनके बीच स्वास्थ्य और आर्थिक असमानताओं को भी बढ़ा दिया है। कई लोगों के जीवन और आजीविका को तबाह कर दिया है और अलगाव और मानसिक बीमारी को बहुत बढ़ा दिया है। एक ऐसी दुनिया जो ऑनलाइन काम करती है, वह अधिक अकेली है और सामाजिक और राजनीतिक विचारों को सख्त कर सकती है। जब तक महामारी के नकारात्मक परिणामों पर तत्काल ध्यान नहीं दिया जाता, वे एक लंबी व काली छाया की तरह अपना प्रभाव डालेंगी। इस विचार को इतिहास के कूड़ेदान में फेंका जा सकता है कि समाज जैसा कुछ नहीं है, केवल स्वार्थी लोग हैं।

 
महामारी के दौरान हमने एकजुटता का उफान देखा है। युवाओं का बुजुर्गों के प्रति और आवश्यक श्रमिकों का अन्य लोगों के प्रति। युवाओं ने अपने सामाजिक जीवन, शिक्षा और नौकरियों का त्याग किया और कोविड-19 के कष्ट से गुजर रहे बुजुर्गों की मदद करने के लिए भारी कर्ज लिया। आवश्यक कर्मचारियों ने हमारे घरों और अस्पतालों में काम करने वालों के तौर पर खुद को हर रोज जोखिम में डाला और यह सुनिश्चित किया कि भोजन वितरित होता रहे, कचरा एकत्र किया जाए और बिजली की आपूर्ति बनी रहे। बहुतों ने दूसरों के लिए अपने स्वास्थ्य का बलिदान दिया। इस दौरान मितव्ययिता की असहनीय कीमत और व्यक्तिवाद का जश्न मनाने वाली और राज्य को कमजोर करने वाली संस्कृति की स्पष्ट रूप से पोल खुल गई। विश्वयुद्धों ने हमेशा के लिए वैश्विक राजनीति और अर्थशास्त्र को बदल दिया था।

 
अर्थशास्त्री जॉन मेनार्ड कीन्स ने तर्क दिया कि सकारात्मक सामाजिक सुधारों की अनिवार्यता हमेशा युद्ध से जुड़ी हो, यह जरूरी तो नहीं। महामारी भी सब कुछ बदल देगी, व्यक्तिगत प्राथमिकताओं से लेकर वैश्विक शक्ति तक।यह व्यक्तिवाद के नवउदारवादी युग और बाजारों तथा कीमतों की प्रधानता के युग के अंत का प्रतीक है और राज्य के हस्तक्षेप के लिए राजनीतिक पेंडुलम के वापस मुड़ने की शुरुआत करता है। जैसा कि नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री एंगस डीटन ने तर्क दिया है कि अब हम उन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं जिन्हें हम टाल नहीं सकते, जो समाज के ताने-बाने के लिए खतरा हैं कि इस महामारी ने बहुत लोगों को होने वाले नुकसान को बड़े विनाशकारी तरीके से उजागर किया है और इससे निपटने का यह एक पीढ़ी में एक ही बार आने वाला अवसर है।
 
कम नहीं, अधिक वैश्विक सहयोग  : वैश्वीकरण ने सार्वभौमिक स्वास्थ्य और आर्थिक आपात स्थितियों को जन्म दिया है। और फिर भी, इसे ठीक करने के लिए हमें कम नहीं बल्कि और अधिक वैश्वीकरण की आवश्यकता है। हम अधिक वैश्विक राजनीति के बिना एक वैश्विक महामारी को नहीं रोक सकते। राजनीतिक अवैश्वीकरण से हम जलवायु परिवर्तन या किसी अन्य बड़े खतरे का सामना नहीं कर सकते। आर्थिक अवैश्वीकरण से दुनिया के उन अरबों लोगों की गरीबी की स्थितियां बनी रहेंगी जिन्हें वैश्वीकरण द्वारा लाए गए नौकरियों, विचारों और अवसरों से अभी तक लाभ नहीं हुआ है।
 
इसका मतलब यह होगा कि गरीब देशों के नागरिकों की अंतरराष्ट्रीय टीकों, सौर ऊर्जा पैनलों, निवेश, निर्यात, पर्यटन और विचारों तक पहुंच नहीं होगी, जो देशों के पुनर्निर्माण और साझा समृद्धि का भविष्य बनाने के लिए तत्काल आवश्यक हैं। अगर खुद को अलग-थलग करना और वैश्वीकरण को रोकना हमें जोखिम से बचा सकता है तो यह कीमत चुकाने लायक हो सकती है। लेकिन जोखिम कम करना तो दूर, यह इसे और बढ़ाएगा। हमें बेहतर प्रबंधन और अधिक विनियमित एवं समन्वित वैश्विक प्रवाह की आवश्यकता है जिससे परस्पर जुड़ाव के लाभों को साझा किया जा सकेगा और जोखिम रुक जाएंगे।

 
हमारे जीवन के लिए सबसे बड़ा खतरा ऐतिहासिक रूप से आंतरिक या बाहरी टकरावों से आया है। अब खतरा उन ताकतों से आया है, जो किसी एक देश के नियंत्रण से बाहर हैं और जिन्हें सर्वोच्चता के दावे के बजाय अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है। वैश्विक खतरों को रोकने के लिए सहयोग करना हर देश के हित में है। इसी तरह अधिक एकजुट और स्थिर समाजों के निर्माण में योगदान देना हमारे अपने हित में है। कोविड-19 ने हमारी परीक्षा ली है। परीक्षा पास करके हमने साबित कर दिया होगा कि हम जलवायु परिवर्तन और अन्य खतरों पर भी विजय प्राप्त कर सकते हैं।
 
खड़ी चट्टान से कैसे बचें? :  किसी भी चीज को हल्के में नहीं लेना चाहिए। वायरस न केवल हमारी संभावनाओं और कार्यों को बदल रहा है, बल्कि हमारे सोचने के तरीके, हमारे सपनों और हमारी कल्पनाओं को भी बदल रहा है।हर संकट एक अवसर पैदा करता है और इस महामारी ने प्रणालीगत जोखिमों के महत्व को उजागर किया है। महामारी ने अन्य खतरों के बारे में जागरूकता बढ़ाई है जिसमें भविष्य की महामारियों और जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खतरे शामिल है और हमें अपने जीवन और भविष्य को बचाने का साधन दिया है।
 
70 साल की प्रगति को उलटते हुए कोविड-19 ने हमारे जीवन का सबसे बड़ा विकासगत झटका दिया है। 1950 के दशक के बाद पहली बार निम्न और मध्यम आय वाले देशों को नकारात्मक विकास का सामना करना पड़ा। कोविड-19 के प्रत्यक्ष स्वास्थ्य प्रभाव की तुलना में बहुत से लोग भुखमरी और गरीबी से संबंधित कारणों से मारे गए होंगे। महामारी के परिणामस्वरूप 15 करोड़ अतिरिक्त लोग अत्यधिक गरीबी के स्तर पर पहुंच गए और ऐसे लोगों की तादाद 2019 में 13 करोड़ लोगों के मुकाबले दोगुनी होकर 2020 में 26 करोड़ तक पहुंच गई जिन्हें खाना नसीब नहीं होगा। कई गरीब देशों में शिक्षा और स्वास्थ्य प्रणालियां ध्वस्त हो गई हैं और सरकारी सुरक्षा योजनाएं तहस-नहस हो गई हैं। महामारी ने देशों के भीतर और उनके बीच असमानताओं को उजागर कर दिया है।
 
यह इस बात को पूरी ताकत से प्रदर्शित करता है कि हम जिस सड़क पर चल रहे हैं, उसी रास्ते पर आगे जाना या पीछे पलटना हमें एक खड़ी चट्टान पर ले जा रहा है। व्यवस्थागत परिवर्तन के बिना हम सभी अधिक असमान और अस्थिर भविष्य के हक में नहीं हैं। कोविड-19 ने एक निष्पक्ष और अधिक समावेशी दुनिया बनाने की क्षमता पैदा की है।(भाषा)