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Written By WD

सड़कों पर भटकते सांता के प्‍यारे

सड़कों पर भटकते सांता के प्‍यारे -
- अजय बर्वे

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क्रिसमस आने वाला है और क्रिसमस पर बच्‍चे जिस चीज का सबसे ज्‍यादा इंतजार करते हैं वे हैं सांता क्‍लॉज के दिए हुए उपहार, क्रिसमस की रात बच्‍चे अपने मन में अपने सबसे पसंदीदा उपहार के बारे में सोचकर सो जाते हैं क्‍योंकि उन्‍हें पता है सांता रात में आकर उनके लिए क्रिसमस ट्री के पास वह उपहार रख जाएँगे। असल में सांता एक कल्‍पना है जिसे मूर्त रूप दिया है इन बच्‍चों के माता-पिता ने जो अपने लाड़लों की ख्‍वाहिश पूरी करते हैं और बच्‍चों को लगता है कि उनकी यह इच्‍छा सांता ने पूरी की है।

दुनिया में ऐसा कोई बच्‍चा नहीं जो सांता को प्‍यार न करता हो, उनके फेवरेट सांता उन्‍हें हर साल क्रिसमस पर वह तोहफा देते हैं जो उन्‍हें सबसे ज्‍यादा पसंद होता है। बच्‍चा चाहे गरीब हो या अमीर सांता सबको सब प्‍यार करते हैं लेकिन ऐसा क्‍यों होता है कि सांता तोहफा देने उन्‍हीं बच्‍चों के घर जाते हैं जो अपने परिवार के साथ अपने सीमेंट कांक्रीट के घरों में रहते हैं।

हर क्रिसमस पर वे बच्‍चे क्‍यों तोहफों से वंचित रह जाते हैं जिनके माँ-बाप अपने लाड़लों को पक्‍का घर और अच्‍छी शिक्षा तो क्‍या दो वक्‍त की रोटी नहीं दे पाते। बल्कि इसके विपरीत ये गरीब माँ-बाप अपने मासूम बच्‍चों की मेहनत से कमाई रोटी पर गुजारा करते हैं।

ऐसा ही एक नजारा हाल ही में देखने को मिला, बाजार से गुजर रहा था तो देखा सिग्‍नल पर कुछ ऐसे ही बच्‍चे अपने सिर पर सांता क्‍लॉज की टोपी लगाए और अपने चेहरों पर सांता का मुखौटा लगाए सिग्‍नल पर रुकने वाली हर गाड़ी के पास जाकर उन्‍हें बेचने की कोशिश कर रहे थे। ताकि रात के लिए अपने और अपने परिवार के खाने की जुगत लगा सकें।

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इन बच्‍चों को शायद नहीं पता कि वे जिस सांता की टोपी और मुखौटा अमीर लोगों को बेच रहे हैं उनके बच्‍चे सांता को कुछ ज्‍यादा ही प्‍यारे हैं, सांता जब अपनी बग्‍घी पर सवार होकर तोहफे देने निकलते हैं तो उनकी बग्‍घी बड़े घरों और साफ-सुथरी कॉलोनियों से ही होकर गुजरती है न कि गंदगी और कीचड़ से सनी गलियों और टूटे हुए झोपड़ों के पास से।

सांता को प्‍यार करने वाले बच्‍चों की अगर बात करें तो शायद सड़क पर हर सिग्‍नल पर खड़े इन गरीब बच्‍चों के दिल में सांता के लिए अमीर घरों के बच्‍चों के मुकाबले ज्‍यादा प्‍यार और श‍िद्दत होगी क्‍योंकि उन्‍हें एक महीने पहले से पता है कि क्रिसमस आने वाला है और सांता इस दिन तोहफा देंगे लेकिन उनके लिए तो यही तोहफा काफी होगा कि क्रिसमस की रात को भी वे अपने परिवार के साथ दो रोटी खाकर सुख से सो सकें।

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जिन बच्चों को अपना वक्‍त किताबों और दोस्‍तों के बीच गुजारना चाहिए वे चौराहों पर छोटी-छोटी चीजें बेचकर और कचरे के ढेरों में प्‍लास्टिक और टीन के डब्‍बे ढूँढकर अपने बचपन को जीवन के संघर्ष की भट्टी में झोंक देते हैं। हर रोज पूरे दिन जद्दोजहद और लोगों के ताने सुनने के बाद ये बच्‍चे जब घर आते हैं तो शराबी बाप की गालियों और मार से बचाने वाला कोई नहीं होता।

अमीरों की उतरन पर जीने वाले, कपड़ों के नाम पर अपने शरीर पर फटे-पुराने कपड़े पहनने वाले, दिसंबर की इस ठंड में स्‍वेटर के बजाय गली के कचरे और टायरों को जलाकर हाथ तापने वाले इन गरीब बच्‍चों को भी काश सांता का प्‍यार उसी तरह मिल पाता जैसे अच्‍छे घरों में रहने वाले और साफ-सुथरे कपड़े पहनने वाले बच्‍चों को मिलता है तो शायद सांता के ये प्‍यारे बच्‍चों का बचपन इस तरह सड़कों पर न भटक रहा होता।