• Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. »
  3. वेबदुनिया विशेष 07
  4. »
  5. बाल दिवस
Written By ND

गाँधीजी ने पं. नेहरू को ही उत्तराधिकारी क्यों चुना?

गाँधीजी ने पं. नेहरू को ही उत्तराधिकारी क्यों चुना? -
- मनोहरलाल तिवार

ND
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महात्मा गाँधी की शीर्षस्थ नेताओं की टीम में कई दिग्गज व्यक्ति थे, जैसे पं. जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, राजाजी (सी. राजगोपालाचारी), मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि। गाँधीजी ने अनेक बार घोषणा की थी कि पंडित नेहरू ही उनके उत्तराधिकारी होंगे। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी उन्होंने ही पं. नेहरू को प्रधानमंत्री बनवाया था।

गाँधीजी के जीवनकाल और वर्तमान में भी यह प्रश्न उठाया जाता रहा है कि गाँधीजी ने पं. नेहरू को ही अपना उत्तराधिकारी क्यों चुना? समय-समय पर गाँधीजी नेइसका उत्तर दिया था। इनके कुछ अंश नीचे दिए जा रहे हैं। इनमें पंडितजी की विभिन्न प्रतिभाओं का वर्णन किया गया है।

'हमें अलग करने के लिए केवल मतभेद ही काफी नहीं हैं। हम जिस क्षण से सहकर्मी बने हैं, उसी क्षण से हमारे बीच मतभेद रहा है, लेकिन फिर भी मैं वर्षों से कहता रहा हूँ और अब भी कहता हूँ कि जवाहरलाल मेरा उत्तराधिकारी होगा, राजाजी नहीं। वह कहता है कि मेरी भाषा उसकी समझ में नहीं आती। वह यह भी कहता है कि उसकी भाषा मेरे लिए अपरिचित है। यह सही हो या न हो, किंतु हृदयों की एकता में भाषा बाधक नहीं होती। और मैं जानता हूँ कि जब मैं चला जाऊँगा, जवाहरलाल मेरी ही भाषा में बात करेगा।' (हरिजन 25-1-42)
आपके कानूनी वारिस ने जापानियों के खिलाफ कावेबाजी से लड़ने की जो हिमायत की है, उसकी कल्पना आपको कैसी लगती है? जब जवाहरलाल खुल्लम-खुल्ला हिंसा का प्रचार कर रहे हैं और राजाजी सारे देश को शस्त्र और शस्त्रों की शिक्षा देना चाहते हैं, तो अहिंसा का क्या होगा


सवाल- आपने उस रोज वर्धा में कहा था कि जवाहरलाल आपके कानूनी वारिस हैं। आपके कानूनी वारिस ने जापानियों के खिलाफ कावेबाजी से लड़ने की जो हिमायत की है, उसकी कल्पना आपको कैसी लगती है? जब जवाहरलाल खुल्लम-खुल्ला हिंसा का प्रचार कर रहे हैं और राजाजी सारे देश को शस्त्र और शस्त्रों की शिक्षा देना चाहते हैं, तो आपकी अहिंसा का क्या होगा?

उत्तर : 'जिस तरह आपने लिखा है, उसे देखते हुए परिस्थिति भयंकर मालूम होती है, मगर आपको जितनी भयंकर वह लगती है, दरअसल उतनी है नहीं। पहली बात तो यह है कि मैंने कानूनी वारिस शब्द अपने मुँह से नहीं कहा। मेरी तकरीर हिन्दुस्तानी में थी। मैंने तो कहा था कि वेमेरे कानूनी वारिस नहीं, बल्कि असली वारिस हैं। मेरा मतलब यह था कि जब मैं न रहूँगा तो वे मेरी जगह लेंगे। उन्होंने मेरे तरीके को पूरी तौर पर कभी अंगीकार नहीं किया।

उन्होंने तो उसकी साफ-साफ आलोचना की है, परंतु बावजूद इसके कांग्रेस की नीति का उन्होंने वफादारी से पालन भी किया है। यह नीति या तो मेरी ही निर्धारित की हुई थी या अधिकांशतः मुझसे प्रभावित थी। सरदार वल्लभभाई जैसे नेता, जिन्होंने हमेशा बिना किसी प्रकार की शंका या सवाल के मेरा अनसरण किया है, मेरे वारिस नहीं कहे जा सकते। यह तो हर कोई स्वीकार करता है कि और किसी में जवाहरलाल की सी क्रियात्मक शक्ति नहीं है। और क्या मैं यह नहीं कह चुका हूँ कि मेरे चले जाने के बाद वे तमाम मतभेद को, जिसका जिक्र वे अक्सर किया करते हैं, भूल जाएँगे?' (हरिजन सेवक 26-4-42)

'कल मैंने जवाहरलालजी के अमूल्य काम के बारे में जिक्र किया था। मैंने उन्हें हिन्दुस्तान का बेताज बादशाह कहा था। आज जब अँगरेज अपनी ताकत यहाँ से उठा रहे हैं, तब जवाहरलाल की जगह कोई दूसरा ले नहीं सकता। जिसने विलायत के मशहूर स्कूल हैरो और कैम्ब्रिज के विद्यापीठ में तालीम पाई है और जो वहाँ बैरिस्टर भी बने हैं, उनकी आज अँगरेजों के साथ बातचीत करने के लिए बहुत जरूरत है।' (प्रार्थना प्रवचन 2-4-47)