प्रायः जब हम निवेश की बात करते हैं तो हमारे मन में पैसे के निवेश का विचार ही आता है। लेकिन, देखा जाए तो किसी वस्तु या सेवा के उत्पादन के लिए जिन-जिन उपादानों (ingredients) की आवश्यकता होती है, उन सबका निवेश किया जाता है। तो एक ढंग से जिस किसी पदार्थ के उपयोग से हमें कोई उपलब्धि होती है, हम उस पदार्थ के निवेश की बात कर सकते हैं।
हम उपलब्धियां करने के लिए जिन संसाधनों का उपयोग करते हैं, उनमें समय एक बहुत महत्वपूर्ण संसाधन है। संसाधन वे उपादान होते हैं जिन्हें मिला-जुला कर हम किसी वस्तु का उत्पादन करते हैं या कोई सेवा उपलब्ध कराते हैं।
आइए एक दृष्टांत की सहायता से इस बात को समझने की कोशिश करते हैं। मान लीजिए कि एक विद्यार्थी को कल एक परीक्षा में बैठना है। उस परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए वह ज्ञान अर्जित करता है। वह बैठकर पढ़ता है। अपने समय का निवेश करता है। अपने शरीर में भोजन के आक्सीकरण से बन रही ऊर्जा का निवेश करता है। बल्ब या ट्यूब लाइट की रौशनी का उपयोग, यानि निवेश करता है। इसके अतिरिक्त बीते समय में पढ़ने-लिखने में जो दक्षता उसने हासिल कर रखी है उसका उपयोग करता है। इन सब के फलस्वरूप उसको अच्छे अंक प्राप्त होते हैं।
यही विद्यार्थी इन संसाधनों का उपयोग दूसरे कामों के लिए भी कर सकता था। वह फिल्म देख सकता था, अपने दोस्तों के साथ गप-गोष्ठी कर सकता था, या सो कर समय बिता सकता था। इस प्रकार हम अपने संसाधनों का उपयोग किस प्रकार करते हैं, इसका निर्णय हमें करना होता है। यही निर्णय इस बात का फैसला करता है कि हमारे काम-काज से हमें क्या लाभ या हानि होते हैं।
आइए इस संदर्भ में ‘दी इकानोमिस्ट’ द्वारा किए हुए एक विश्लेषण को देखते हैं। शायद आप ने भी यू-ट्यूब पर ‘गैंगनम-स्टाइल’ नामक वीडियो देखा होगा। ‘दी इकानोमिस्ट’ के अनुसार इस वीडियो को अब तक 2 अरब से अधिक लोग देख चुके हैं। इसे एक बार देखने में 2.12 मिनट लगते हैं। इस प्रकार यदि हिसाब लगाएँ तो कुल मिलाकर अब तक 14 करोड़ घंटे इस वीडियो को देखने में खपत किए जा चुके हैं। इस पूरे समय को वर्षों में बादल कर देखें तो 16000 वर्ष बनते हैं।
इस से क्या अर्थ निकालें? : ‘दी इकानोमिस्ट’ के गणित पर विचार करें तो, लोगों ने कुल मिलाकर जितना समय इस वीडियो को देखने में लगाया उतने समय में संसार की सबसे ऊंची इमारत दुबई की बुर्ज खलीफा जैसी 6 और इमारतें बनाई जा सकती थीं।
निम्नलिखित सारिणी ‘दी इकानोमिस्ट’ में से ली गई है। इसका अध्ययन करने से आप जान पाएंगे कि यदि संसार के सभी लोग ‘गैंगनम-स्टाइल’ वीडियो देखने में निवेश किए अपने समय को किसी दूसरे रचनात्मक काम में लगाते तो कैसी-कैसी उपलब्धियां की जा सकती थीं।
उपर्युक्त सारिणी का अध्ययन करने से आप को लगेगा कि जो समय वीडियो में अजीब ढंग से सिर हिलाते लोगों को देखने में हमेशा-हमेशा के लिए हाथ से निकल गया, उसी समय का रचनात्मक उपयोग करने से मानव जाति को आने वाले अनेक वर्षों के लिए बड़ी-बड़ी इमारतें मिल सकती थीं।
यह तो केवल एक वीडियो का गणित है। यदि इंटरनेट पर देखे जाने वाले अनगिनत वीडियो का लेखा-जोखा लिया जाए तो जाने क्या गणित उभरकर आएगा।
निष्कर्ष : हमारे देश को प्रकृति ने संसाधनों से माला-माल कर रखा है। फिर भी हम एक गरीब देश हैं। हम अपने लोगों को पर्याप्त भोजन, वस्त्र इत्यादि भी नहीं दे पाते। इसका कारण यह है कि हमने अपने श्रम को रचनात्मक ढंग से उपयोग करना नहीं सीखा।
एक प्रकार से देखा जाए तो प्रधानमंत्री जी का स्वच्छ भारत अभियान श्रम को रचनामक रूप देने की दिशा में ही एक कदम है। एक बार जब यह अभियान सफल हो जाता है तो इसी प्रकार के दूसरे कई सामाजिक अभियान चलाए जा सकते हैं।
मैं भी अपने e-Ashram के माध्यम से स्वच्छ भारत के लिए काम करना चाहता हूँ। यदि आप मेरे इस प्रयास में भाग लेना चाहें तो e-Ashram में शामिल होइए।
जहां एक ओर राष्ट्रीय स्तर पर कामकाज को रचनात्मक बनाने की आवश्यकता है, वहीं निजी स्तर पर भी हमें अपने कामों को रचनात्मक बनाना चाहिए। लेकिन, यह निर्णय करना कि कौनसा काम
रचनात्मक है और कौनसा नहीं यह थोड़ी टेढ़ी खीर है। हो सकता है कि जो युवक अपना बहुत-सा समय गीत-संगीत सुनने में लगाता है, वह बहुत बड़ा संगीतकार बन जाए।
तो यह निर्णय कैसे करें कि रचनात्मक कार्य कौनसा है और किस समय किस काम को प्राथमिकता देनी चाहिए? इसी विषय पर बात होगी अगले बुधवार। (ग्राफिक्स द इकानोमिस्ट से साभार)