पुण्य से नहीं, पश्चाताप से ही कट सकता है पाप
एक क्रूर, अत्याचारी, अन्यायी राजा नित नए तरीके अपनाकर प्रजा के मन में भय बनाए रखता था ताकि कभी कोई उसके विरुद्ध बगावत करने की हिम्मत न जुटा सके। एक दिन अचानक उसने डोंडी पिटवा दी कि अब वह प्रजा पर कभी कोई अत्याचार नहीं करेगा। उसने अपनी बात पर अमल भी किया। यह देख उसके एक मंत्री ने एक दिन हिम्मत करके उससे पूछ ही लिया कि आखिर उसमें इतना बड़ा बदलाव आया कैसे। इस पर राजा बोला कि एक दिन जंगल में शिकार के दौरान मैंने देखा कि एक लोमड़ी के पीछे कुछ कुत्ते पड़े हैं। लोमड़ी के पूरी तरह बिल में घुसने से पहले एक कुत्ते ने उसका पाँव काट लिया, जिससे वह लँगड़ी हो गई। कुछ समय बाद उस कुत्ते को अपने ऊपर भौंकते देख एक राहगीर ने बड़ा-सा पत्थर मारा जिससे उसका एक पैर हमेशा के लिए बेकार हो गया। थोड़े आगे बढ़ने पर राहगीर को एक घोड़े ने दुलत्ती मारकर उसे एक पैर से अपाहिज बना दिया। |
एक क्रूर, अत्याचारी, अन्यायी राजा नित नए तरीके अपनाकर प्रजा के मन में भय बनाए रखता था ताकि कभी कोई उसके विरुद्ध बगावत करने की हिम्मत न जुटा सके। एक दिन अचानक उसने डोंडी पिटवा दी कि अब वह प्रजा पर कभी कोई अत्याचार नहीं करेगा। |
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इसके बाद घोड़े ने दौड़ लगाई और वह एक गड्ढे में जा गिरा। उसकी भी टाँग टूट गई। इस तरह मैंने देखा और समझा कि एक पाप से दूसरे पाप का जन्म होता है। अगर समय रहते मैं न बदलता तो मेरे पाप मुझ पर भारी पड़ते। राजा की बात सुनकर मंत्री वहाँ से यह सोचकर खुशी-खुशी चल दिया कि जल्द ही वह अपने राजा का तख्ता पलटकर सिंहासन हथिया लेगा। अचानक सीढ़ियों पर पैर गलत पड़ गया और वह धड़ाम से नीचे आ गिरा। उसकी गर्दन टूट गई।दोस्तो, इसे कहते हैं पाप का चक्र जो कि निरंतर गतिशील रहता है। हर होने वाले पाप से इसे गति मिलती जाती है। इसमें रिले रेस की तरह पाप का बैटन एक हाथ से दूसरे हाथ में बढ़ता चला जाता है बिना रुके, बिना थमे। अपने वाहक को ही अपना शिकार बनाते हुए। इसलिए यदि आप सोचते हैं कि पाप करके आप बच जाएँगे तो ऐसा संभव नहीं, क्योंकि पाप का दंड तो आपको भुगतना ही होगा। भले ही आप कितने ही पर्दों के पीछे छिपकर पाप क्यों न करें।
और कोई उन्हें भले ही न देख पाए, विधाता तो देख ही लेता है और वह अपने विधान पर अमल करते हुए उचित दंड भी देता है। इसलिए कोई भी अपराध, पाप, अत्याचार, दुष्टता करने से पहले हजार बार सोच लें कि आप जो करने जा रहे हैं, उसका फल आपको ही भुगतना है। जब आपके द्वारा किए गए पापों का घड़ा भरकर फूटेगा तो आपको भी उन स्थितियों से गुजरना पड़ेगा जिनसे कि गुजरने के लिए आपने दूसरों को मजबूर किया था। बहुत से लोग पाप और पुण्य दोनों की कमाई एक साथ करते हैं यानी वे पाप करने के साथ ही पुण्य के कार्य भी करते हैं। वे सोचते हैं कि पाप को पुण्य से काटा जा सकता है। यहीं वे गलती करते हैं, क्योंकि वे जानते नहीं कि पुण्य से पाप को काटा नहीं जा सकता। हाँ, कुछ समय के लिए टाला जरूर जा सकता है। पाप तो पश्चाताप से ही कटता है। महाभारत में कहा गया है जो व्यक्ति पाप हो जाने पर सच्चे हृदय से पश्चाताप करता है, वह उस पाप से छूट जाता है, उबर जाता है, मुक्त हो जाता है। 'फिर कभी ऐसा दुष्कर्म नहीं करूँगा' ऐसा दृढ़ निश्चय कर उस पर अमल करके वह भविष्य में हो सकने वाले पापों से भी बच जाता है। शिवपुराण में भी पाप से मुक्ति का यही उपाय बताया गया है। यह वैज्ञानिक तथ्य भी है। यदि आपको अपने किए पर पछतावा है, तो आप पाप से बच सकते हैं बशर्ते पछतावा दिखावटी न हो। दिखावटी होने पर आप एक और पाप के भागीदार बन जाते हैं। दूसरी ओर, पाप करने की सोचना भी पाप की श्रेणी में आता है। यानी आपके मन में आने वाले किसी भी मैले और दुष्टता भरे विचार का परिणाम भी बुरा ही होता है, क्योंकि यही विचार मनुष्य को दुष्कर्म करने के लिए प्रेरित करते हैं। इसलिए उसे अपना मन साफ रखना चाहिए यानी मानसिक पापों का परित्याग करना चाहिए तभी वह सच्चे मन से अपने किए पर पछताता है और पाप से मुक्त होता है।और अंत में, आज पापमोचनी एकादशी है। आज पापों के प्रायश्चित का और कभी जाने-अनजाने में हमसे पाप न हों, इसके दृढ़ निश्चय का दिन है। इसलिए आप आज सच्चे हृदय से प्रायश्चित करें। आपको मुक्ति मिलेगी। अरे भई, अच्छा हुआ जो समय रहते सुधर गए, वर्ना....।