अच्छी बहू की तलाश है तो अच्छी बेटी ढूँढो
एक दिन औरंगाबाद जिले के चौंदी गाँव के पटेल मानकोजी शिंदे की बेटी अहिल्या ने रोज की तरह शिव मंदिर जाकर पूजा-आरती की। इसके बाद वह लोगों को प्रणाम कर अपने घर चली गई और माँ सुशीला के कामकाज में हाथ बँटाने लगी। माँ ने ही उसे कर्तव्यपरायण, धर्मपरायण और सरल सात्विक जीवन जीना सिखाया था। साथ ही पिता ने भी रूढ़ियों से हटकर उसे पढ़ना-लिखना सिखाया। होलकर साम्राज्य के संस्थापक मल्हारराव होलकर उस दौरान विश्राम के लिए चौंदी के मंदिर में रुके हुए थे। अहिल्या की गतिविधियों को देखकर वे उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। हालाँकि अहिल्या साँवले रंग की सामान्य नैन-नक्श वाली कन्या थी, लेकिन व्यक्तित्व की आभा से उसका चेहरा दमकता था। उसकी सादगी व विनम्रता देखकर मल्हारराव ने अपने पुत्र खांडेराव का विवाह उससे करने का फैसला किया। इस तरह एक साधारण गाँव की साधारण बेटी अपने असाधारण संस्कारों के बल पर होलकर वंश की पुत्रवधू बन गई। अहिल्याबाई के कदम पड़ते ही होलकर वंश की प्रतिष्ठा और वैभव में तेजी से प्रगति होने लगी। |
एक दिन औरंगाबाद जिले के चौंदी गाँव के पटेल मानकोजी शिंदे की बेटी अहिल्या ने रोज की तरह शिव मंदिर जाकर पूजा-आरती की। इसके बाद वह लोगों को प्रणाम कर अपने घर चली गई और माँ सुशीला के कामकाज में हाथ बँटाने लगी। |
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मायके से मिले संस्कारों की वजह से अहिल्याबाई ने ससुराल में भी सभी का दिल जीत लिया। उनकी सास गौतमाबाई तो उन्हें बेटी की तरह चाहने लगीं। उनकी बुद्धिमत्ता और जिज्ञासु प्रवृत्ति को देखकर सास-ससुर ने उन्हें राजकाज की शिक्षा देना शुरू कर दिया। खांडेराव स्वभाव से हठी, चिड़चिड़े और उद्दंड थे। अहिल्याबाई ने सेवा और स्नेह से उनके स्वभाव को भी बदल दिया। दोस्तो, कहते हैं कि यदि आपको अच्छी बहू की तलाश है तो किसी अच्छी बेटी को ढूँढो। यानी जिस लड़की को उसके माँ-बाप से अच्छे संस्कार मिले हैं, जिसने शिक्षा के साथ-साथ व्यावहारिक ज्ञान भी पाया है और जो घर-गृहस्थी के कामों को भी निपुणता से कर लेती है। कुल मिलाकर एक आदर्श बेटी, जिस पर उसके माता-पिता, परिजनों और परिचितों को गर्व हो, जो पालकों, भाई-बहन, भाभी, बच्चे आदि सभी को साथ लेकर चलना जानती हो, सभी के साथ तालमेल बिठाना जानती हो। ऐसी बेटी निश्चित ही अच्छी पत्नी और अच्छी बहू साबित होती है।
इस बात को इस तरह भी कहा जा सकता है कि यदि आप अपनी बेटी को उसके ससुराल में भी सुखी देखना चाहते हैं तो उसका पालन-पोषण सुशीला और मानकोजी की तरह ही करें। तभी आपकी लाड़ली बेटी आगे चलकर लाड़ली बहू बन पाएगी। ऐसा करने पर सम्मान भी तो आपका ही बढ़ेगा, बढ़ता है, क्योंकि तब सब यही कहेंगे ना कि मायके से अच्छे संस्कार लेकर आई है। इसके विपरीत जिस बेटी के काम, व्यवहार और आचरण से उसके घर के सदस्य ही अप्रसन्न रहते हैं, अनमने रहते हैं, ऐसी बेटी ससुराल में भी तमाशे ही करती है। ऐसा बहुत कम होता है कि वह वहाँ जाकर निभा ले। इसलिए जरूरी है कि वह सबसे निभा सके इसका प्रशिक्षण उसे मायके में ही मिले। और एक समझदार बेटी इस बात का विशेष ध्यान रखती है ताकि वह अपनी नई भूमिका के लिए खुद को तैयार कर सके। आप भी इस बात का ध्यान रखेंगी तो आप भी सुखी रहेंगी और अपनों को भी सुखी रख सकेंगी।दूसरी ओर, समाज को संस्कारित बनाना, घर का प्रबंध करना, स्नेह, प्रेम व सहनशीलता से जीवन की कठिनाइयों को सरल व सुखद बनाना नारी का ही काम है। अहिल्याबाई ने जीवनभर अपने कर्तव्यों का पूरी कुशलता से निर्वहन किया। आज की नारी को उनके जीवन से सीख लेनी चाहिए। वे न केवल राजकाज संभालती थीं, बल्कि घर-परिवार के कामों में भी पूरा ध्यान देती थीं। उन्होंने राजकीय व व्यक्तिगत जीवन में संतुलन बनाकर रखा था। यह नहीं कि राजकाज के चक्कर में दूसरे कामों की अनदेखी कर दें। यह बात वाकई सीखने की है।और अंत में, आज अहिल्याबाई होलकर जयंती है। इस अवसर पर प्रण करें कि उन्हीं की तरह एक अच्छी बेटी और अच्छी बहू बनने का प्रयत्न करेंगी। फिर देखिए, आप सबकी आँखों का तारा कैसे नहीं बनतीं। और हाँ, अहिल्याबाई की जीवनी को एक बार अवश्य पढ़ें, क्योंकि उनके जीवन के हर पहलू से कुछ न कुछ सीखा जा सकता है। क्या कहा, आपकी बहू तो बिलकुल बेटी की तरह व्यवहार करती है। भाग्यशाली हो भाई।