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Last Updated : गुरुवार, 11 जुलाई 2024 (14:17 IST)

What is Budget : बजट क्या होता है?

What is Budget : बजट क्या होता है? - what is budget
संविधान में ‘बजट’ शब्द का जिक्र नहीं है जिसे बोलचाल की भाषा में आम बजट कहा जाता है उसे संविधान के आर्टिकल 112 में एनुअल फाइनेंशियल स्टेटमेंट कहा गया है। फाइनेंशियल स्टेटमेंट अनुमानित प्राप्तियों और खर्चों का उस साल के लिए सरकार का विस्तृत ब्योरा होता है।

आम बजट में सरकार की आर्थिक नीति की दिशा दिखाई देती है। इसमें मंत्रालयों को उनके खर्चों के लिए पैसे का आवंटन होता है। बड़े तौर पर इसमें आने वाले साल के लिए कर प्रस्तावों का ब्योरा पेश किया जाता है।

आम बजट में क्या शामिल होता है? : बजट डॉकेट में करीब 16 दस्तावेज होते हैं, इसमें बजट भाषण होता है। इसके अलावा हरेक मंत्रालय के खर्च प्रस्तावों का विस्तृत ब्योरा होता है। साथ यह रकम कहां से आएगी, इसके प्रस्ताव भी बजट में बताए जाते हैं।

फाइनेंस बिल और एप्रोप्रिएशन बिल भी इस डॉकेट में शामिल होते हैं। फाइनेंस बिल में अलग-अलग टैक्सेशन कानूनों में प्रस्तावित संशोधन होते हैं। जबकि एप्रोप्रिएशन बिल में सभी मंत्रालयों को होने वाले आवंटनों का लेखा-जोखा होता है।

वित्तमंत्री के बजट भाषण में दो हिस्से होते हैं। पार्ट-ए और पार्ट बी। पार्ट-ए में हर सेक्टर के लिए आवंटन का मोटे तौर पर जिक्र होता है। इनके लिए सरकार की नई योजनाओं का ऐलान होता है। इस तरह से इससे सरकार की नीतिगत प्राथमिकताओं का पता चलता है। पार्ट-बी में सरकार के खर्च के लिए पैसा जुटाने के लिए टैक्सेशन के प्रस्ताव होते हैं।

संसद में बजट पेश किए जाने के बाद क्या होता है? : बजट भाषण के पढ़े जाने के बाद बजट उपायों पर एक आम चर्चा होती है। बहस में हिस्सा लेने वाले सदस्य बजट के प्रस्तावों और नीतियों पर चर्चा करते हैं। इस आम-चर्चा के बाद संसद आमतौर पर करीब तीन हफ्तों की छुट्टी पर चली जाती है। इस दौरान विभागों की स्थायी समितियां मंत्रालयों के अनुमानित खर्चों का विस्तार से अध्ययन करती हैं, इन्हें डिमांड्स फॉर ग्रांट्स (अनुदान मांग) कहा जाता है।

समितियां इसके बाद हरेक मंत्रालय की डिमांड्स फॉर ग्रांट्स पर अपनी रिपोर्ट जमा करती हैं। समितियों के रिपोर्ट जमा कर देने के बाद इन अलग-अलग मंत्रालयों की अनुदान मांगों पर लोकसभा में चर्चा और वोटिंग होती है। बजट पास होने की अंतिम तारीख तक जिन डिमांड्स पर वोटिंग नहीं हो पाती है उन सभी पर एकसाथ वोटिंग हो जाती है।

समितियां हरेक मंत्रालय की डिमांड्स फॉर ग्रांट्स पर रिपोर्ट जमा करती हैं और अनुदान मांगों को एप्रोप्रिएशन बिल में समाहित किया जाता है। इसे संसद से पास किया जाना जरूरी है। तभी सरकार द्वारा पारित खर्चों के लिए कंसॉलिडेटेड फंड से रकम की निकासी मुमकिन हो सकती है। अंत में फाइनेंस बिल पर वोटिंग होती है। फाइनेंस बिल के पास होने के साथ बजटीय प्रक्रिया समाप्त हो जाती है।

बजट में वित्तीय प्रावधानों पर लोकसभा की ज्यादा भूमिका होती है और यहां मंत्रालयों की मांगों पर चर्चा होती है। राज्यसभा में मंत्रालयों के कामकाज पर चर्चा होती है। मंत्रालयों के कामकाज की बहस में मंत्रालयों के कामों, उनकी उपलब्धियों, भविष्य के रोडमैप और खामियों की चर्चा की जाती है।

2017 से रेल बजट को भी आम बजट में समाहित कर दिया गय है। 1924 से ही संसद में एक अलग रेल बजट पेश किया जाता है। इस तरह से आम बजट में वे सभी प्रस्ताव भी शामिल होंगे जो रेल बजट में अलग से होते थे।

अब तक, रेलवे मंत्रालय को केंद्र सरकार से ग्रॉस बजटरी सपोर्ट मिलता रहा है ताकि वह अपने नेटवर्क का विस्तार समेत अन्य काम कर सके। रेलवे इस इनवेस्टमेंट के बदले एक रिटर्न सरकार को देती है, जिसे डिविडेंड (लाभांश) कहा जाता है। इस साल से, रेलवे को इस तरह के डिविडेंड को सरकार को नहीं चुकाना होगा।

योजनागत और गैर-योजनागत खर्चों का वर्गीकरण इस बार क्यों नहीं है? : पहले सरकारी खर्च को दो तरीकों से वर्गीकृत किया जाता था। योजनागत और गैर-योजनागत खर्च और कैपिटल और रेवेन्यू एक्सपेंडिचर।

यहां कुछ ऐसे बिंदु दिए जा रहे हैं जो आपको बजट दस्तावेज में देखने को मिलेंगे जो इस प्रकार हैं :
कैपिटल एक्सपेंडिचर (पूंजीगत खर्च) : यह फंड्स का आउटफ्लो (खर्च) है। इससे संपत्तियां (एसेट्स) खड़ी होती हैं या कर्ज के बोझ कम होते हैं। उदाहरण के तौर पर, सड़कों का निर्माण या लोन चुकाने को कैपिटल एक्सपेंडिचर में डाला जाता है।

रेवेन्यू एक्सपेंडिचर (राजस्व खर्च) : कैपिटल एक्सपेंडिचर में वर्गीकृत किए गए खर्चों को छोड़कर सभी खर्च रेवेन्यू एक्सपेंडिचर में आते हैं। इससे एसेट्स या लाइबिलिटीज (दायित्वों) में कोई फर्क नहीं पड़ता है। तनख्वाह, ब्याज भुगतान और अन्य प्रशासनिक खर्चे रेवेन्यू एक्सपेंडिचर में आते हैं। रेवेन्यू और कैपिटल एक्सपेंडिचर वर्गीकरण सरकारी प्राप्तियों (रिसीट्स) पर भी लागू होते हैं।

रेवेन्यू रिसीट्स : ये आमतौर पर करों, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों से मिलने वाले डिविडेंड्स और सरकार द्वारा दिए गए कर्जों से मिलने वाले ब्याज से आते हैं।

कैपिटल रिसीट्स : ये आमतौर पर सरकार की अलग-अलग जरियों से ली गई उधारियों से आते हैं। इसके अलावा राज्य सरकारों के केंद्र से लिए गए कर्जों पर किए गए भुगतान भी इसमें आते हैं। सरकारी कंपनियों के विनिवेश से मिलने वाली रकम भी इसी कैटेगरी में आती है।
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