शनिवार, 26 अप्रैल 2025
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Written By समय ताम्रकर

हाउसफुल 2 : फिल्म समीक्षा

हाउसफुल 2
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बैनर : नाडियाडवाला ग्रेंडसन एंटरटेनमेंट, इरोज़ इंटरनेशनल, साजिद नाडियाडवाला प्रोडक्शन्स-यूके
निर्माता : साजिद नाडियाडवाला
निर्देशक : साजिद खान
संगीत : साजिद-वाजिद
कलाकार : अक्षय कुमार, असिन, जॉन अब्राहम, जैकलीन फर्नांडिस, रितेश देशमुख, जरीन खान, श्रेयस तलपदे, शाज़ान पद्मसी, ऋषि कपूर, रणधीर कपूर, मिथुन चक्रवर्ती, बोमन ईरानी, जॉनी लीवर, चंकी पांडे, मलाइका अरोरा खान
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 16 रील
रेटिंग : 3/5

साजिद खान पर सत्तर और अस्सी के दशक की मसाला फिल्मों का प्रभाव है। उस दौर की उन्होंने तमाम अच्छी-बुरी फिल्में देखी हैं और उन्हें उन फिल्मों के ढेर सारे संवाद और सीन याद हैं। साजिद की फिल्म मेकिंग पर भी उन फिल्मों का प्रभाव नजर आता है।

उस दौर की कमर्शियल फिल्में मल्टीस्टारर होती थी। उनमें चार-पांच गाने, तीन-चार धांसू फाइट सीन, एक कैबरेनुमा आइटम सांग, थोड़ी बहुत मस्ती, गलतफहमियां और हैप्पी एंडिंग होती थीं। यह बात साजिद की हाउसफुल में भी नजर आई और हाउसफुल 2 में भी।

हाउसफुल 2 में हाउसफुल की कहानी को थोड़ा-बहुत उलट-पुलट कर, और मसाले (कलाकार) डालकर जायकेदार बना दिया गया है। साजिद कहते हैं कि ‍वे फिल्म आम दर्शकों के लिए बनाते हैं न कि फिल्म समीक्षकों के लिए। महंगे टिकट खरीदकर सिनेमाघर आए दर्शक का मनोरंजन करना उनका उद्देश्य है और इस बार वे अपने उद्देश्य में सफल रहे हैं। हाउसफुल 2 में ढेर सारे ऐसे पल है जो गुदगुदाते हैं और भरपूर मनोरंजन करते हैं।

फिल्म की कहानी बेहद सामान्य है। थोड़ी-सी गलतफहमियां पैदा कर दी गई हैं और उसके सहारे पूरी कहानी को खींचा गया है। कहानी जब सामान्य हो तो स्क्रिप्ट, अभिनय, संवाद और निर्देशन दमदार होना चाहिए वरना फिल्म को बिखरते देर नहीं लगती।

हाउसफुल 2 की स्क्रिप्ट कुछ ऐसी लिखी गई है कि एक के बाद एक मजेदार सीन आते रहते हैं। लॉजिक पर या इस बात पर ध्यान नहीं जाता कि कहानी आगे बढ़ रही है या नहीं। खासतौर पर पहले घंटे में तो फिल्म बहुत ही मनोरंजक है। ऋषि-रणधीर के बीच के सारे दृश्य, अक्षय कुमार का पहला सीन, मगरमच्छ वाला दृश्य हास्य से भरपूर हैं।

कहानी को आगे बढ़ाने के लिए कुछ सब-प्लाट भी रखे गए हैं जो अच्छे हैं, जैसे सनी (अक्षय कुमार) और मैक्स (जॉन अब्राहम) कॉलेज में अच्छे दोस्त थे। फिर उनके बीच कैसे दुश्मनी हुई? कैसे फिर एक हुए? जेडी (मिथुन चक्रवर्ती) का अतीत और जेडी नाम रखने की कहानी भी दिलचस्प है।

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इंटरवल के बाद कुछ देर के लिए फिल्म में मनोरंजन का ग्राफ नीचे की ओर आता है। विंदू दारा सिंह के गुंडों के साथ अक्षय-जॉन-रितेश और श्रेयस की फाइटिंग वाला सीन केवल फिल्म की लंबाई बढ़ाता है। वहीं बोमन ईरानी वाला प्रसंग भी बोर करता है, लेकिन अंत में फिल्म फिर ट्रेक पर आ जाती है।

निर्देशक साजिद खान ने अपनी टारगेट ऑडियंस को खुश करने के लिए तमाम मसाले जुटाए हैं। आइटम सांग रखा है, हीरोइनों की ड्रेस छोटी रखी है, फाइट सीन रखा है, साथ ही कलाकारों से बेहतरीन अभिनय करवाया है और हंसाने वाली कई पंच लाइनें रखी हैं।

रंजीत, जो कि सत्तर और अस्सी के दौर की फिल्मों में ‘रेपिस्ट’ के नाम से मशहूर थे, को अक्षय कुमार का पिता बनाया है, जिससे अक्षय का कैरेक्टर एक अलग ही टच लिए हुए हैं। रंजीत की जो अदा अक्षय ने अपनाई है वो देखते ही बनती है। यह साजिद के दिमाग की ही उपज हो सकती है।

कुछ ऐसे सीन हैं जो फिल्मों के बारे में ज्यादा जानकारी रखते हैं उन्हें ज्यादा मजेदार लगेंगे। मसलन एक सीन में रणधीर कपूर को अक्षय कुमार पोंगा पंडित कहते हैं। रणधीर ने पोंगा पंडित नामक एक फिल्म में काम किया है।

साजिद ने बौने, काले और बहरे लोगों का कुछ जगह मजाक बनाया है जो अखरता है। फिल्म की लंबाई पर भी साजिद का नियंत्रण नहीं है और कुछ फाल्तू के दृश्य हटाए जा सकते हैं।

फिल्म का संगीत फिल्म की थीम के अनुरूप है। कुछ गाने अच्छे हैं तो कुछ ब्रेक लेने के काम आते हैं। ‘पप्पा तो बैंड बजाए’, ‘राइट नाऊ’ और ‘अनारकली’ की कोरियोग्राफी और फिल्मांकन उम्दा है। अनारकली के लिए अच्छी सिचुएशन बनाई गई है। साजिद-फरहद के लिखे संवाद उम्दा हैं।

अक्षय कुमार बेहतरीन फॉर्म में नजर आए। उनकी टाइमिंग, डायलॉग डिलेवरी और एक्सप्रेशन बढ़िया हैं। जॉन अब्राहम की एक्टिंग खराब है, लेकिन इस कॉमेडी फिल्म में उनकी इस कमी को खूबी बनाया गया है। रितेश देशमुख अच्छे हास्य कलाकार हैं, लेकिन उनका पूरा उपयोग नहीं किया गया है। श्रेयस तलपदे सिर्फ गिनती बढ़ाने के लिए हैं।

हीरोइनों में असिन और जैकलीन को ज्यादा फुटेज मिला है और जैकलीन की तुलना में असिन बेहतर रही हैं। जरीन और शाजान को सिर्फ ग्लैमर बढ़ाने के लिए रखा गया है।

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मिथुन चक्रवर्ती भी रंग में नजर आए। उनके तथा अक्षय के बीच के सीन अच्छे लिखे गए हैं। डब्बू (रणधीर कपूर) और चिंटू (ऋषि कपूर) हंसाने में सफल रहे हैं। बोमन ईरानी ने जमकर ओवर एक्टिंग की है। आखिरी पास्ता के रूप में चंकी पांडे और जॉनी लीवर ने भी अपना काम बखूबी किया है।

‘हाउसफुल 2’ माइंडलेस कॉमेडी होने के बावजूद मनोरंजन करती है। इसे दिमाग के साथ नहीं बल्कि कोला और पॉपकॉर्न के साथ देखा जाना चाहिए।